अष्टधातु के 21 फीट ऊंंचे परशुराम, आज गुफा मंदिर को बनाएंगे अपना धाम…

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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल अब भगवान परशुराम की विश्व में सबसे बड़ी 21 फीट ऊंंची अष्टधातु की प्रतिमा के लिए भी जानी जाएगी। वर्ष 2022 के मई महीने की तीसरी तारीख और अक्षय तृतीया का दिन मंगलवार इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनेगा, जब मंत्रोच्चार के साथ भोपाल के गुफा मंदिर में यह प्रतिमा स्थापित होगी। यह संयोग ही है कि विष्णु के छठें अवतार, क्षत्रिय ओज से युक्त ब्राह्मण श्रेष्ठ और पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियहीन करने वाले भगवान परशुराम का अक्षय तृतीया को जन्म हुआ था और इसी दिन परशुराम की मूर्ति राजधानी में स्थापित हो रही है।
अलग-अलग मतों में से एक मत माना जाए तो मालवा में इंदौर के पास स्थित जानापाव पहाड़ी परशुराम की जन्मस्थली है। और प्रतिमा के स्वागत में मालवा स्थित उज्जैन के ढोलों की थाप से भोपाल का आकाश गुंजायमान होगा। तो पुलिस बैंड की धुन भी माहौल को गरिमामय बनाएगी। दलों के भेद से दूर इस धार्मिक आयोजन के सहभागी सभी राजनैतिक दलों के नेता बनेंगे। महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी, विधायक पीसी शर्मा सहित सभी समाजों के विशिष्ट व आमजन समारोह में मौजूद रहेंगे।
महापौर रहते भाजपा नेता आलोक शर्मा ने सभी समाजों के आह्वान पर मूर्ति स्थापना का प्रस्ताव पारित किया था। लेकिन पिछले दो साल से कोरोना महामारी की आपदा के चलते यह संकल्प जमीं पर नहीं उतर पाया। दो साल में आईं कोरोना की तीन लहर के बाद अब जाकर परशुराम का दिन आया है और सभी समाजों के लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए हाथ में परशु लिए राममय इस ऋषि की प्रतिमा के ओज से भोपाल की धरती का मान बढ़ने जा रहा है।
इस अवसर पर रंगारंग आतिशबाज़ी के साथ मालवा के ढोल और परशुराम रथ आकर्षण का केंद्र रहेगा। 1100 ब्राह्मण एक साथ स्वस्तिवाचन करेंगे। तब गुफा मंदिर में भव्य मंदिर में भगवान परशुराम की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया जाएगा। परशुराम के बारे में कहा जाता है कि त्रेता में शिव धनुष पर प्रपंचा साधने पर राम-लक्ष्मण पर क्रोधित हुए। पर राम का स्वरूप जान वह सीधे तप करने के लिए महेंद्रगिरी पर्वत को गमन कर गए।
तो द्वापर में वह भीष्म, द्रोण और कर्ण के गुरू बने। पर वर्ण छिपाने पर कर्ण को भी उनके कोपभाजन का शिकार होना पड़ा। और परशुराम का यह कोप ही कर्ण की मृत्यु की वजह बना। तो अंबा का हरण करने पर भीष्म से युद्ध किया और इच्छामृत्यु के वरदान ने ही भीष्म की रक्षा की। पिता जमदग्नि की आज्ञा से मां रेणुका का सिर काटने वाले परशुराम का बुद्धिचातुर्य ही था कि पिता ने वरदान दिया तो फिर मां और भाईयों का जीवनदान मांग लिया। इस महान ऋषि की कहानियां बहुत हैं और इनकी वीरता सभी को ओज से भर देती है।
वर्णन मिलता है कि परशुराम त्रेता में थे, द्वापर में थे और  कलियुग में कल्कि अवतार के रूप में जन्म लेकर कलियुग का अंत करेंगे। तो शिव प्रदत्त परशु यानि कुल्हाड़ी जिनका अस्त्र है, ऐसे परशुराम को बारंबार प्रणाम। गुफा मंदिर में उनका नया धाम आस्थावान श्रद्धालुओं की आस्था का परमधाम अवश्य बनेगा।