Khelo India’ में विन्ध्य की वर्षा,29 मई पर सब की नजर

राष्ट्रीय अखाड़ों में गाँव की बेटी का बंजारा दाँव, एशियाड दो कदम दूर

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Khelo India’ में विन्ध्य की वर्षा,29 मई पर सब की नजर

जिस गाँव की महिलाओं को घूँघट से निकलने में सदियाँ लग गईं उसी गांव की बेटी ने कुश्ती की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कामयाबी का झंडा गाड़ दिया।

जी हाँ 17 वर्ष की वर्षा पान्डेय ने बेंगलुरू में चल रही खेलो इंडिया की राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में रजत पदक हासिल किया है।

वर्षा रीवा जिले के कनौजा गाँव के एक साधारण परिवार की हैं और मध्यप्रदेश की स्पोर्ट्स अकादमी भोपाल में प्रशिक्षण ले रही हैं।

वर्षा बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल की छात्रा हैं व  Khelo India’ में बीयू का प्रतिनिधित्व करती हैं।

बेंगलुरू में 30 अप्रैल को हुए फायनल के मुकाबले में महिला कुश्ती की संभावनाओं पर सब की नजर लगी हुई थी। कड़े और रोमांचक मुकाबले में वर्षा को रजत पदक में संतोष करना पड़ा।

जूनियर वर्ग की वर्षा को उसकी कामयाबी के ट्रैक रिकॉर्ड देखते हुए सीनियर वर्ग में उतारा गया था।

अब 29 मई को राँची में रैंकिंग के लिए होने वाली कुश्ती प्रतियोगिता में यदि वर्षा कामयाब रहती है तो एशियाड और ओलिंपिक ट्रायल के लिए उसका रास्ता साफ हो जाएगा।

कुश्ती में वर्षा का ट्रैक रिकॉर्ड

वर्षा सरकार के उसी सिस्टम की खोज का परिणाम है जिस सिस्टम को प्रायः हम गाली देते नहीं थकते। स्पोर्ट्स टैलेन्ट सर्च स्कीम के तहत खेल अधिकारियों ने वर्षा को उसके गाँव कनौजा से खोज निकाला।

2017 में उसे मध्यप्रदेश की स्पोर्ट्स एकडमी में दाखिला मिला।

मेधावी वर्षा ने 2018 से अब तक प्रदेश में कुश्ती की विभिन्न प्रतियोगिताओं में लगातार आठ बार मुख्यमंत्री कप के साथ स्वर्ण पदक जीते।

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2019 में खेलो इंडिया की राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में सिल्वर व नेशनल स्कूल्स गेम्स में भी सिल्वर मेडल जीते।

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दो वर्ष कोरोना में व्यर्थ होने के बाद इस 2022 में वह जूनियर होते हुए भी कुश्ती के सीनियर वर्ग के अखाड़े में उतरी एक प्वाइंट के अंतर से वह रजत पदक तक ही रह गई।

Khelo India’: साक्षी मलिक है वर्षा की आदर्श

ओलिंपिक के अखाड़े में भारतीय कुश्ती के धमक की आकांक्षा रखने वाली वर्षा की आदर्श साक्षी मलिक है। वही साक्षी मलिक जो 2016 के रियो-डि-जेनेरियो में कांस्य पदक प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं।

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वर्षा तब छोटी थी और पहली बार साक्षी को टीवी में विक्ट्री पोडियम में देखा था। अब न वह सिर्फ साक्षी से कई बार मिल चुकी वरन लखनऊ और पटियाला में उनसे टिप्स भी लिए।

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कुश्ती की ओर रुझान कैसे हुआ? इस पर वर्षा बताती है कि उसने अपने दादा के मुँह से रीमा राज्य के गामा पहलवान की कुश्ती के बारे में सुन रखा था।

Khelo India’,गांव में गामा के नाम से तंज

इस मुकाम तक पहुँचने के पीछे वर्षा अपनी माँ को श्रेय देती है। माँ ब्रजेश्वरी देवी एक शिक्षक हैं व पिता वीरेन्द्र पान्डेय डिस्ट्रिक्ट कोर्ट अधिवक्ता। स्पोर्ट्स टैलेंट सर्च में माँ ही वर्षा की अँगुली पकड़ कर ले गईं थी।

कबड्डी, तैराकी, एथलेटिक्स के भी विकल्प थे लेकिन कुश्ती वर्षा का प्रेम था। माँ ने भी इसी दिशा में प्रोत्साहित किया।

वर्षा बताती है कि मेरे लिए माँ को बहुत कुछ सुनना व सहना पड़ा है – ‘बड़ी चली है बिटिया को गामा बनाने’। माँ ने कभी भी ऐसी उलाहना की परवाह नहीं की वे आज भी मेरी ऊर्जा की स्त्रोत हैं।

गामा से जुड़ी है रीवा की कुश्ती परंपरा

रीवा में राजाओं के जमाने से कुश्ती की उज्ज्वल परंपरा रही है। महाराज व्येंकटरमण ने गामा पहलवान को प्रश्रय दिया। गामा का उत्कर्ष रीवा में ही हुआ। वे अमहिया(रीवा का एक मोहल्ला) के सरदार अखाड़े में अभ्यास करते थे और नए पट्ठों को पहलवान बनाते।

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रीमा राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए वे राष्ट्रीय चैम्पियन बने यहीं से इंग्लैंड गए जहाँ विश्व विजेता का खिताब मिला। गामा के प्रमुख शिष्यों में रीवा जिले के बड़ी हर्दी गाँव के पहलवान रामभाऊ शुक्ल थे जो वर्षों तक रीवा राज्य के चैम्पियन रहे। उनके पुत्र कैप्टन बजरंगी प्रसाद तैराकी के ओलंपियन व प्रथम अर्जुन पुरस्कार विजेता बने।

जिस वातावरण से निकल कर बजरंगी प्रसाद ओलिंपिक तक पहुंचे देश का सबसे प्रतिष्ठित अर्जुन अवार्ड(1962 में प्रथम) अर्जित किया, वैसी ही पृष्ठभूमि वर्षा पान्डेय की भी है। जिद-जज्बा-जुनून ऐसे ही बना रहा तो आज नहीं कल एशियाड और ओलिंपिक की टिकट पक्की।

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