Half Justice: GMC, Bhopal के छात्र को 13 साल बाद मिला न्याय पर मृत महिला को अभी भी न्याय का इंतज़ार

जो murder किया नहीं, उसके लिए 13 साल जेल में काटे, अब निर्दोष साबित

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Jabalpur: MP Highcourt ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि ‘देर भले ही हो पर अंधेर नहीं है’। प्रेमिका की हत्या के आरोप में सजा काट रहे MBBS छात्र को 13 साल बाद मध्य प्रदेश के Jabalpur High Court से न्याय मिला है।

हाई कोर्ट ने भोपाल की अदालत के आदेश पर उम्रकैद की सजा पाए व्यक्ति को न केवल निर्दोष करार दिया, बल्कि उसे 42 लाख रुपये का मुआवजा भी देने का निर्देश दिया है।

हाई कोर्ट ने सरकार को 90 दिनों के अंदर इस राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया है। अगर निर्धारित सीमा में राशि का भुगतान नहीं किया जाता है तो सालाना 9 फीसदी ब्याज भी देना होगा।

मानवीय दृष्टि से देखा जाए तो यह Half Justice ही है क्योंकि एक पक्ष को तो अभी न्याय मिल गया पर मारी गई दुर्भाग्यशाली महिला को 14 साल बाद आज भी न्याय का इंतज़ार है कि उसके कातिल कब पकड़े जाएंगे।

पर इस मामले से जुड़े अनेक सवाल अभी भी अनुत्तरित है।क्या 13 साल जेल में काटने के एवज में 42 लाख रुपये देकर शासन व्यवस्था अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो सकती है? उस युवक के करियर की भरपाई कैसे होगी?
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उसने मानसिक संताप जो भोगा है, क्या उसे कोई व्यवस्था माप सकेगी? उन सुनहरे सपनों की क्या कोई कीमत लगाई जा सकती है जो चंद्रेश ने उस वक्त खुली आँखों से देखे थे?

इस दौरान चंद्रेश के परिवार ने जो संताप व क्लेश भोगा, उसे किस तराजू में तौला जा सकता है?

जांच में लापरवाही बरतने वाले पुलिस अफसरों की क्या कोई ज़िम्मेदारी फ़िक्स नहीं होनी चाहिए?

कायदे से तो दिया जाने वाला 42 लाख का मुआवज़ा उन लापरवाह पुलिस अफसरों से वसूला जाना चाहिए जिन्होंने जांच में कोताही की थी।

न्याय पालिका को भी अपनी गिरहबान में झांकना होगा कि इस पूरी प्रक्रिया में आखिर 13 साल का समय क्यों लगा? न्यायपालिका के लिए यह गंभीर चिंता की बात होनी चाहिए क्योंकि Justice delayed is justice denied यानी देर से मिला न्याय न मिलने के बराबर ही माना जाता है।

इस प्रकरण ने पूरा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है जिसके समाधान खोजने के लिए नए सिरे से विचार मंथन की ज़रूरत है।

उल्लेखनीय है कि यह चर्चित मामला बालाघाट निवासी चंद्रेश मर्सकोले का है।

दरअसल, साल 2009 में भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में MBBS के फाइनल ईयर के छात्र चंद्रेश मर्सकोले पर अपनी प्रेमिका की हत्या का आरोप लगा था।आरोप था कि 19 अगस्त 2008 को छात्र ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर शव पचमढ़ी के पास एक नदी में फेंक दिया था।

घटना के दिन चंद्रेश ने अपने सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर हेमंत वर्मा से होशंगाबाद जाने के लिए गाड़ी मांगी थी।घटना के बाद भोपाल की अदालत ने 31 जुलाई 2009 को चंद्रेश मर्सकोले को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

याचिकाकर्ता के वकील एचआर नायडू के अनुसार इसके बाद चंद्रेश ने इसको लेकर हाई कोर्ट में अपील की थी।चंद्रेश की ओर से हाई कोर्ट में दलील दी गई कि असल में डॉ. हेमंत वर्मा ने युवती की हत्या की थी और खुद को बचाने के लिए उसने चंद्रेश को झूठे केस में फंसा दिया।

याचिका में उठाए गए तर्कों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने माना कि पुलिस जांच में गड़बड़ी हुई। इस मामले में निर्दोष को 13 साल जेल में काटने पड़े।

चंद्रेश मर्सकोले को हाई कोर्ट ने निर्दोष करार देते हुए उसे 42 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश जारी किया है।

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