अग्निकांडों से बचाव की तरकीब

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पिछले चार साल में दिल्ली में आगजनी की भयंकर घटनाएं हुई हैं। लेकिन न तो जनता ने कोई सबक सीखा और न ही सरकारों ने कोई मुस्तैदी दिखाई। इसीलिए दिल्ली के मुंडका क्षेत्र में जबर्दस्त लोमहर्षक अग्निकांड हो गया है।

एक चार मंजिला भवन में कुछ कंपनियों के दफ्तर चल रहे थे। वहां न तो कोई कारखाना था और न ही कोई भट्टी या चूल्हा था। शायद बिजली की खराबी से आग लगी। लगभग 30 लाशें तो कल ही मिल गई थीं और 30 से भी ज्यादा लोग अभी तक लापता हैं। जो लाशें मिली हैं, वे इस बुरी तरह जल गई हैं कि उन्हें पहचानना भी मुश्किल है। कई लोग खिड़कियों से कूदे तो उनके हाथ पावं टूट गए, कुछ लोग अपने अधजले शरीरों के साथ बाहर भागे और कुछ लोग उस भवन से इसलिए बाहर नहीं भाग पाए कि नीचे उतरने के लिए सिर्फ एक ही संकरी सीढ़ी थी। उस सीढ़ी पर भयंकर धकापेल थी और धुएं व आग ने उन्हें बिल्कुल बेकार बना दिया था।

delhi fire breaks out in a building near pillar no 544 mundka metro station 24 fire tenders have 1652446982

दिल्ली और केंद्र की सरकार ने हताहतों को काफी मुआवजे की घोषणा कर दी है लेकिन क्या किसी की जान को रूपयों से तोला जा सकता है? दिल्ली में ही नहीं, देश के हर शहर में आजकल ऊँचे-ऊँचे भवनों का निर्माण हो रहा है। हर ऊँचा भवन खतरे की घंटी बजाता रहता है। उसमें कभी भी आग लग सकती है और उसका कारण कुछ भी हो सकता है। सरकारों ने ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कानून-कायदे जरुर बनाए हैं लेकिन उन्हें लागू करने में सर्वत्र ढिलाई देखी जाती है। भवन-निर्माता लोग सुरक्षा प्रमाण-पत्र आसानी से हथिया लेते हैं। जब आग लग जाती है, तब मालूम पड़ता है कि वह सुरक्षा पत्र उन्हें रिश्वत के बदले मिला है। अग्नि सुरक्षा से संबंधित सभी अफसरों और कर्मचारियों को इस तरह के अग्निकांड होने पर जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाता? जब-जब इस तरह के अग्निकांड होते हैं तो हमारी फायर ब्रिगेड के कर्मचारी अपनी जान पर खेलकर नागरिकों की सुरक्षा करते हैं। उनकी बहादुरी सराहनीय है।

इसी प्रकार आस-पास रहने वाले नागरिक भी अग्निपीड़ितों को बचाने की भरपूर कोशिश करते हैं। वे सीढ़ियां लगा देते हैं, ऊपर से कूदनेवालों के लिए नीचे तिरपाल थामे रहते हैं, जलते हुए भवन में अंदर घुसकर हताहतों को बाहर निकाल लाते हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि अभी तक किसी सरकारी या गैर-सरकारी संगठन ने अग्निकांड से बचाव का ऐसा इंतजाम नहीं खोजा है कि जिससे सैकड़ों लोगों की जान तुरंत बचाई जा सके।

मध्यप्रदेश में सतना के एक युवा अजयपाल सिंह ने आज ही मुझे एक ऐसी यांत्रिक तरकीब से परिचित करवाया, जिससे सैकड़ों लोग की जान मिनिटों में बच सकती है, चाहे वे 50 मंजिले भवन की आग में ही क्यों न फंसे हो। यदि हमारे व्यापार और उपभोक्ता मंत्री पीयूष गोयल कुछ पहल करें तो इस विभीषिका से वे भारत को ही नहीं, संसार के सभी देशों को बचा सकते हैं। इस यांत्रिक तरकीब से, जो मंहगी भी नहीं है, भारत चाहे करोड़ों-अरबों डाॅलर भी कमा सकता है।