टेनिस कोर्ट का नियम और उस भोले ग्रामीण का अल्पज्ञान!

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टेनिस कोर्ट का नियम और उस भोले ग्रामीण का अल्पज्ञान!

वक्त के साथ आपकी चाहत के पैमाने भी बदलते रहते हैं । अरेरा क्लब में जहाँ सुबह का समय हम टेनिस खेलने में बिताते हैं , वहाँ आजकल सभी खिलाड़ी इस ताक में रहते हैं , कि किसी तरह उस कोर्ट में खेलने मिल जाए , जहाँ छाँव रहती है । क्लब में कुल मिलाकर टेनिस के चार कोर्ट हैं , जिनमें दो में घने पेड़ों की छाँव रहती है । कुछ दिनों पहले ठण्ड के दिनों में ये चाहत खिली धूप वाले कोर्ट के लिए होती थी ।

दरअसल क्लब में ये नियम है कि जो पहले आएगा उसे पहले खेलने मिलेगा , इसी नियम की वजह से ख़ाली कोर्ट पर भी उसका ही अधिकार होता है जो पहले पहुँच जाते हैं , यानी यदि चार खिलाड़ी हो गए तो जो कोर्ट ख़ाली है उस पर खेलने का अधिकार उनका है । पर यहाँ भी मोह माया व्याप जाती है , और चिलचिलाती धूप में खेल रहे खिलाड़ी यदि ये पाते हैं की छाँव वाला टेनिस कोर्ट ख़ाली हो गया है , तो चलते गेम के बीच भी वे कोर्ट चेंज कर लेते हैं । यहाँ भी , हालाँकि नियम ये है कि , यदि खेल चालू हो गया है तो ख़ाली हुए टेनिस कोर्ट पर जाने का अधिकार उन नए खिलाड़ियों का है जो बाद में आए हैं और इसी बात पे कभी कभी आपस में कुछ नोंक-झोंक भी हो ज़ाया करती है ।

पिछले दिनों ऐसा ही वाक़या हुआ कि छाँव वाले कोर्ट का खेल समाप्त हुआ तो पड़ोस में धूप में खेल रहे खिलाड़ियों ने छाँव वाले कोर्ट का रुख़ कर लिया जबकि चार नए खिलाड़ी तैयार थे । नए खिलाड़ियों ने इसका विरोध किया , लेकिन धूप वाले कोर्ट में खेल रहे खिलाड़ी उसे अनसुना कर गए । नए ग्रूप के खिलाड़ियों में से एक जो भारतीय प्रशासनिक सेवा की ऊँची पायदान से रिटायर हुए हैं , ने बड़े क्षोभ से कहा अरे जाने दो इन्हीं को छाँव में खेल लेने दो , अब तो लोग लिहाज़ भी नहीं पालते ।

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मैंने चलते चलते ये सुना और सोचा कि लिहाज़ का दुःख मनाने के बजाय उन्हें नियम का पालन कराने का यत्न करना था क्योंकि लिहाज़ और रौब की अपेक्षा का लिहाफ़ तो बरसों पहले रिटायरमेंट के साथ हम सबने उतार फेंका है और आम जनता तो वैसे भी हमारी इन धारणाओं से परे ही है । इसी के साथ मुझे एक बड़ी पुरानी घटना याद आ गयी ।

उन दिनों मैं राजनांदगाँव ज़िले के कवर्धा विकासखंड में परिवीक्षा अवधि के दौरान विकास खंड अधिकारी की ट्रेनिंग ले रहा था और पद रिक्त था अतः बी डी ओ के चार्ज में भी था । कलेक्टर ने कुछ दिन पहले , अपने दौरे में राहत कार्य के दौरान खुद रहे एक तालाब में गड़बड़ी की शिकायत पायी थी सो मुझे एक दिन फ़ोन आया कि कल विभागीय समीक्षा बैठक में आते हुए उस तालाब की नापजोख और ग्रामवासियों से पूछताछ कर अपनी रिपोर्ट लेते आइएगा । मैं दूसरे दिन तैयार होकर अपने सब इंजीनियर के साथ उस ग्राम में पहुँचा ।

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मौक़े पर पहुँचने के पहले मैंने सब इंजीनियर से कहा कि वो ग्रामवासियों को बुला ले तब तक मैं तालाब का निरीक्षण करता हूँ । तालाब के पास पहुँच कर मैंने देखा कि एक ग्रामीण तालाब की पाल के पास बकरियाँ चरा रहा है । मैंने ड्राइवर से कह कर उसे बुलाया और पूछा कि कुछ दिन पहले क्या यहाँ कलेक्टर साहब आए थे ? उसने जवाब दिया की कोई आया तो था पर कलेक्टर था कि नहीं ये नहीं पता । मैंने उसे उपहास पूर्ण स्वर में टोका “ अरे कलेक्टर था या नहीं तुम्हें ये भी नहीं मालूम ? उसने बड़े भोलेपन से जवाब दिया “ हम बिना पढ़ा लिखा आदमी हमको क्या मालूम कि कौन क्या है , अब आप ही बोल रहे हो कि आप बी डी ओ हो पर हम क्या जाने कि तुम सही में बी डी ओ हो कि चपरासी हो “