New Delhi : कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को NIA की विशेष अदालत ने बुधवार को उम्र कैद की सजा सुनाई। उसे अब आखिरी सांस तक जेल में रहना होगा। उस पर आतंकवाद के लिए पैसा जुटाने समेत कई मामलों में ये सजा दी गई। सवाल उठता है कि ऐसी कौनसी घटना थी, जिसने यासीन मलिक को कश्मीर का इतना बड़ा आतंकवादी बनाया।
उस घटना के पन्ने पलटे जाएं, तो वो मामला 8 दिसंबर 1989 का है जब यासीन ने अपने साथियों के साथ तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की छोटी बेटी रूबिया सईद का अपहरण कर लिया था। इससे पहले 2 दिसंबर 1989 को विश्वनाथप्रताप सिंह की सरकार ने शपथ ली और मुफ्ती मोहम्मद सईद को गृहमंत्री बनाया था। उन्हें गृहमंत्री बनाने की वजह साफ थी कि घाटी में बढ़ रहे असंतोष और आतंकवादी घटनाओं के मद्देनजर कश्मीरियों को भरोसा दिलाया जा सके! लेकिन, यासीन मलिक के आतंकी संगठन JKLF (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) ने उस भरोसे को चकनाचूर कर दिया।
रुबिया की आजादी की कीमत सरकार को पांच आतंकियों को रिहा करके चुकानी पड़ी। 122 घंटे बाद रूबिया रिहा तो हुई, पर मुफ्ती मोहम्मद के दामन पर षड्यंत्र का दाग लग गया। जो आतंकी रिहा किए गए थे उनमें शोख मोहम्मद, शेर खान, नूर मोहम्मद कलवल, जावेद जरगार और अल्ताफ बट शामिल थे।
रूबिया अपहरण मामले में यासीन मलिक समेत 10 पर आरोप लगे। रूबिया सईद के अपहरण मामले में आरोपियों पर हत्याएं, हत्या के प्रयास और अब खत्म किए जा चुके टाडा अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए। आरोपियों में अली मोहम्मद मीर, मोहम्मद जमां मीर, इकबाल अहमद, जावेद अहमद मीर, मोहम्मद रफीक, मंजूर अहमद सोफी, वजाहत बशीर, मेहराजुद्दीन शेख और शौकत अहमद बख्शी भी शामिल हैं। रूबिया का आतंकियों ने उस समय अपहरण कर लिया था जब वह ललदद अस्पताल से ड्यूटी पूरी होने के बाद घर के लिए निकली थी।
रुबिया की रिहाई के बदले में आतंकियों ने साथी आतंकियों को छोड़ने की मांग रखी थी। इस घटना का राज्य पर दूरगामी प्रभाव देखा गया। कहा जाता है कि इस अपहरण कांड के बाद से ही घाटी में आतंकवाद तेजी से बढ़ा और 1990 से वादी में कश्मीरी पंडितो के विस्थापन की कहानी शुरू हुई।
रुबिया अपहरण के बाद आतंकवाद पनपा
इससे पहले तक घाटी में आतंकवाद सिर उठाने में सक्षम नहीं था। लेकिन, अपहरण और उसके बदले 5 आतंकियों की रिहाई ने आतंकवाद को पनपने का मौका दे दिया। 1990 में फिर कश्मीरी पंडितो के विस्थापन की कहानी प्रारंभ हुई जो घाटी से उनके सफाए पर खत्म हुई।1990 से 1995 तक अपहरण का एक लंबा दौर चला। देश में उन दिनों इस बात पर काफी बहस चली कि अगर वीपी सिंह की सरकार ने रूबिया सईद के मामले में घुटने नहीं टेके होते तो शायद आतंकवादियों को इतनी शह नहीं मिल पाती।
आतंकवाद को हवा मिली
बिगड़ते हालात के बीच देश के तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया के अपहरण की घटना ने सूबे में आतंकवाद को हवा दी। रूबिया की सुरक्षित वापसी के बदले आतंकियों ने जेल में बंद अपने पांच साथी रिहा करवा लिए। अपहरण की इस घटना के पीछे अलगाववादी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के यासीन मलिक का हाथ होने की आशंका जताई। यह आशंका गलत नहीं थी। हाल में अदालत में दाखिल आरोप-पत्र में भी यासीन मलिक को ही इसका मुख्य साजिशकर्ता बताया गया है। रुबिया के अपहरण की घटना से निपटने में राज्य व केंद्र सरकार के रवैये ने सुरक्षाबलों का मनोबल तोड़ दिया। जबकि, आतंकियों के हौसले बुलंद कर दिए। वे मनमानी पर उतर आए थे।