संगठन की मजबूती के मोदी के आठ साल…,सुमित्रा-कविता जैसे कार्यकर्ताओं को टिकट और परिवारवाद पर रोक हैं मिसाल…

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संगठन की मजबूती के मोदी के आठ साल...सुमित्रा-कविता जैसे कार्यकर्ताओं को टिकट और परिवारवाद पर रोक हैं मिसाल...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आठ साल के उपलक्ष्य में पूरे देश में आयोजनों की धूम मची है। उपलब्धियां गिनाई भी जा रही हैं और उपलब्धियों से मुंह भी नहीं मोड़ा जा सकता, हालांकि अपने-अपने नजरिए से कोसा जरूर जा सकता है। मोदी की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक यह भी है कि भाजपा संगठन की मजबूती के साक्षी यह आठ साल भी बने हैं। पार्टी में परिवारवाद रूपी विष बेल को फलने-फूलने से रोकने के लिए इन आठ साल में बहुत कुछ हुआ है।
और प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में भाजपा नेता अब यह भली भांति समझ गए हैं कि राजनीति को अब खानदानी धंधा नहीं बनाया जा सकता। पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और सांसद-विधायक रहे नंदकुमार सिंह चौहान जब नहीं रहे, तब सभी को यह लग रहा था कि सहानुभूति वोट और नंदू भैया को श्रद्धांजलि के बतौर ही सही उनके बेटे को खंडवा लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ाया ही जाएगा। पर टिकट वितरण का यह नजरिया पूरी तरह से यू टर्न ले गया।
संगठन की मजबूती के मोदी के आठ साल...सुमित्रा-कविता जैसे कार्यकर्ताओं को टिकट और परिवारवाद पर रोक हैं मिसाल...
और चेहरा बन गए ज्ञानेश्वर पाटिल। ठीक इसी तरह रैगांव विधानसभा उपचुनाव में परिवारवाद को ताक पर रखकर टिकट मिला था प्रतिमा बागरी को। खंडवा में भाजपा जीती और रैगांव सीट भाजपा ने खो दी, लेकिन जो स्पष्ट संदेश पार्टी ने दिया वह यही कि जिस परिवारवाद का पार्टी हर सभा मेें विरोध कर रही है…उस परिवारवाद को पार्टी में भी जगह नहीं देंगे। और यह सीधा संदेश पार्टी के दिग्गजों की समझ में भी आ गया है।
और यह बात कार्यकर्ताओं को सुकून देने वाली भी है, क्योंकि संगठन की मजबूती का यही आधार स्तंभ है। यदि सेवा करनी है तो राजनेताओं के बेटे-बेटियां मिसाल पेश करने को स्वतंत्र हैं, लेकिन राजनैतिक गद्दी के उत्तराधिकारी बन राजतंत्र की परंपरा कायम कर कार्यकर्ताओं को धोखा देने के खेल पर रोक लगाकर कमल के खिले रहने की संभावनाओं को मोदी के आठ साल में पर्याप्त उर्वरता का मिलना एक सुखद संकेत है।
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और इसी के चलते पार्टी में जो युवा और नया नेतृत्व विकसित हो रहा है, वही सुमित्रा और कविता को राज्यसभा की उम्मीदवार बनाए जाने के रूप में फल-फूल रहा है। बाहरी तौर पर कांग्रेस के नेता भले ही भाजपा को कोसने का कोई मौका न छोड़ें, लेकिन मन ही मन वह भी भाजपा के ऐसे फैसलों की सराहना भी करते होंगे और अपनी पार्टी को खोखला करती परिवारवाद की वंश-बेल को कोसते भी होंगे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कांग्रेस को चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। शिवराज ने इस मुद्दे पर मोदी की तारीफ में कहा कि “आप राजनीति का एजेंडा देख लीजिए, बदल गया है।परिवारवाद, अब कांग्रेस को कहना पड़ रहा है कि एक परिवार में एक ही टिकट देंगे। ये चमत्कार कौन कर सकता था? भारतीय राजनीति के एजेंडे को विकास और सुशासन से जोड़ा है तो प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी ने जोड़ा है।”
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राज्यसभा टिकट की चर्चा करें तो सुमित्रा बाल्मीकि को टिकट मिलना वास्तव में कीचड़ में कमल के खिलने जैसा ही है। आजादी के 75 साल बाद राजनीतिक वातावरण पर नजर डालें तो शायद गरीब दलित वर्ग की पार्टी कार्यकर्ता सपने में भी नहीं सोच पाएगी कि सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा और वह राज्यसभा में पहुंचकर इसका जीता जागता प्रमाण बनेगी। ठीक यही स्थिति कविता पाटीदार की भी है।
कविता भले ही राजनैतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से हैं, लेकिन संगठन में पद मिलते समय उन्होंने भी यह नहीं सोचा होगा कि पार्टी उन्हें राज्यसभा में भेजने का बड़ा तोहफा देने जा रही है। और वह कांग्रेस जो ओबीसी के नाम पर भाजपा को कोस रही है, उसे कविता पाटीदार और सुमित्रा बाल्मीकि को टिकट मिलने पर यह समझ में आया ही होगा कि एजेंडा तो बदलना ही पड़ेगा।
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प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा भी कांग्रेस को आइना दिखाने का मौका नहीं छोड़ते।वीडी शर्मा ने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ प्रदेश नेतृत्व यानि शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश से राज्यसभा के लिए दो महिला कार्यकर्ताओं का चयन कर सौ प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने का काम किया है।


पार्टी ने सबका साथ-सबका विकास के मंत्र के आधार पर एक ओबीसी वर्ग और एक दलित समाज की महिला कार्यकर्ता को राज्यसभा के लिए अवसर दिया है। यह सिर्फ भारतीय जनता पार्टी में ही संभव है। और अब ठीक ऐसे ही अवसर पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा मध्यप्रदेश के दौरे पर आ रहे हैं। तो पार्टी के ऐसे फैसलों के साथ सरकार और संगठन के कार्यों की सराहना के साथ मोदी के आठ साल की उपलब्धियों पर चर्चा होनी है, इसमें परिवारवाद पर जीरो टॉलरेंस की मोदी की उपलब्धि भी केंद्र में रहेगी। जिसकी मिसाल भाजपा पेश कर रही है और सुमित्रा बाल्मीकि और कविता पाटीदार जैसी जमीनी कार्यकर्ता उच्च सदन में बैठने का गौरव हासिल कर रही हैं।