अब सीधी चुनौती मोदी-शाह (Modi-Shah) को है…

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अब सीधी चुनौती मोदी-शाह (Modi-Shah) को है…

यह आतंकवादी हैं। इनकी कोई जाति और कोई मजहब नहीं है। यह दया, करुणा, प्रेम, भाईचारा और मानवता जैसे शब्दों से कोई सरोकार नहीं रखते। इनका नाता सिर्फ क्रूरता, घृणा, अवसरवादिता, वैमनस्यता और कटुता जैसे नकारात्मक शब्दों से है। इनकी दुश्मनी कश्मीरी पंडितों या हिंदुओं से नहीं है, बल्कि इनका भरोसा तो आतंक को बनाए रखने में है। इसके जरिए यह लोग अपना अस्तित्व बनाए रखना चाहते हैं। अब तो यह अपनी इन घिनौनी और घटिया कायराना हरकतों से यह जताना चाहते हैं कि मोदी-शाह कुछ भी कर लें, लेकिन कश्मीर में आतंक का राज स्थापित रहेगा और उनकी बिना मर्जी के यहां पत्ता भी नहीं हिल सकेगा।

वह मोदी-शाह (Modi-Shah) को यह बताना चाहते हैं कि ‘कश्मीर फाइल्स’ उस दौर में भी सच था और ‘कश्मीर फाइल्स’ इस दौर में भी सच है। विवेक अग्निहोत्री की इच्छा है तो वह एक बार  ‘कश्मीर फाइल्स-पार्ट 2’ बनाकर फिर चर्चित हो जाएं और फिल्म का प्रमोशन कर लें, पैसे कमा लें। पर कश्मीर में तो आतंक ही राज करेगा। दु:ख की बात यह है कि यह निर्दयी हत्यारे न हिंदुओं के हैं और न मुस्लिमों के हैं और न ही इंसानियत में इनका कोई भरोसा है। कश्मीर की अधिकतर आबादी छोटे-छोटे काम कर अपनी जीविका का उपार्जन करती है। पर्यटक न आएं तो कश्मीरी आबादी के भूखों मरने की नौबत आ जाए। चाहे धार्मिक पर्यटन हो या कश्मीरी आबोहवा, नैसर्गिक सुंदरता और वादियों का आकर्षण हो। आतंकवादियों के मंसूबे यही हैं कि कश्मीर को भय और मौत की घाटी बना दिया जाए।

और अगर बहुत करीब से देखा जाए, तो अमन पसंद मुस्लिमों के मन में भी इन आतंकवादियों के प्रति उतनी ही घृणा है…जितना गैर मुस्लिम पीड़ित वर्ग के मन में है। और वह मुस्लिम आबादी भी इन आतंकवादियों के निशाने पर रहती है। पर उनकी पीड़ा यह भी है कि वह पलायन करके जाएं भी, तो कहां जाएं। और वह यही समझकर संतोष कर लेते हैं कि माथे की लकीरों में सुख-दु:ख भोगने की जगह कश्मीर ही लिखी है। पलायन भी करेंगे, तो भी सूरत में इन आतंकियों की परछाई देख लोग या तो मुंह फेर लेंगे या फिर जिस घृणा की नजर से देखेंगे…उससे जीना दूभर हो जाएगा। सो आधे पेट भूखे रहकर ही सही, सुखों से ज्यादा दुखों की पोटली ढोकर ही सही…अपनी माटी में ही दफन होना बेहतर मानते हैं।

पर कश्मीर में हिंदुओं की लक्षित और सुनियोजित हत्याओं का खामियाजा आतंक के इन चेहरों को भुगतना पड़ेगा। बात यहां मोदी-शाह पर आकर नहीं ठहरती। बात यहां इस राष्ट्र के माथे को कलंकित करती है। और बात जब राष्ट्र पर आती है, तो पड़ोसी देशों को सबक सिखाने की तुलना में आस्तीन के सांपों से निपटना थोड़ा ज्यादा चुनौती भरा भले ही हो…लेकिन फन तो कुचला ही जाता है और फिर विषधर विषहीन हो तड़पकर जान दे देता है या जगह छोड़ने पर मजबूर हो जाता है। कृष्ण और कालिया नाग की कथा सभी को पता है।

यमुना नदी में कालिया नाग रहता था। पांच फनों वाला नाग बहुत खतरनाक और विषधर था। उसके विष से यमुना काली हो रही थी और उसी जहर के कारण गोकुल के पशु यमुना का पानी पीकर मर रहे थे। खेल-खेल में यमुना में गई गेंद निकालने के बहाने कान्हा ने कालिया नाग से युद्ध किया।  उसके फन पर चढ़कर उसका सारा विष निकाल दिया। विषहीन होने और थक जाने पर कालिया नाग ने कृष्ण से हार मानकर उनसे माफी मांगी। कृष्ण ने उसे पत्नियों सहित सागर में जाने का आदेश दिया। खुद कालिया नाग भगवान को अपने फन पर सवार करके यमुना के तल से ऊपर लेकर आया। कालिया नाग चला गया और यमुना को उसके विष से मुक्ति मिल गई।

तो अब वह वक्त आ चुका है कि कालिया नाग रूपी यह विषधर आतंकवादी जो पड़ोसी देश पाकिस्तान से विषपोषित हैं और वित्त पोषित हैं, इन्हें विषहीन कर दिया जाए। आज यह कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के बहाने मोदी-शाह (Modi-Shah) और केंद्र सरकार पर वार करने का संदेश दे रहे हों, लेकिन इन्हें भी पता है कि अब इनका समय खत्म हो चुका है। इन्हें जल्दी ही विषहीन होकर जीते जी मौत को गले लगाना ही पड़ेगा। और तब ही कश्मीर की वादियां अमन-चैन की सांस ले सकेंगीं। कश्मीर की इन घृणित हरकतों को केंद्र की भाजपा सरकार या कांग्रेस में बांटकर नहीं देखा जा सकता। यह तो विशुद्ध आतंक का तांडव है, जिसकी किसी भी सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है।

अब अगर निर्दोष हिंदुओं की हत्या कर कश्मीर से सीधी चुनौती मोदी-शाह (Modi-Shah) को दी जा रही है, तो मोदी-शाह (Modi-Shah) उठो, जागो और तब तक चैन की सांस मत लेना जब तक कश्मीर की घाटी सभी आतंकवादियों की कब्रगाह न बन जाए। आतंकियों की यह साजिश कभी कामयाब नहीं होगी कि कश्मीर को गैर-मुस्लिमों से खाली कर सकें। हिंदू कुछ समय के लिए अगर घाटी से पलायन कर जम्मू आ भी गए, तो आने वाले समय में उससे कई गुना अधिक संख्या में कश्मीर की वादियों में आशियाना भी बनाएंगे। और तब सरकार और गैर-मुस्लिम तो ठीक है, कश्मीर का मुस्लिम समाज ही इन आतंकवादियों का कफन बन चौराहों-चौराहों पर इनका फन कुचलकर खुशियां मनाएगा। और अब वह दिन बहुत दूर नहीं है। दिलसुख, गोरिया, रजनीबाला और विजय जैसे निर्दोष भारतीयों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी, बल्कि इस देश को आतंकवादियों से मुक्ति दिलाकर ही रहेगी।