छोड़ना नहीं….छोड़ना नहीं…खत्म कर..खत्म कर..मार न…मारेगा तो ही टारगेट पूरा होगा… इस मार..मार के खेल में हाल ही में लखनऊ में एक किशोर ने अपनी मां को ही गोली से उड़ा दिया। बेचारी बेटे को गेमिंग के लिए रोकती जो थी। पबजी और ऐसे ही अन्य ऑनलाइन गेम की लत के शिकार किशोर और युवा यही कर रहे। हत्या, कभी अवसाद में आत्महत्या, पैसे के लिए सच्चा-झूठा अपहरण, चोरी, माता-पिता के खाते से गेम के लिए पैसे उड़ा देना आदि-इत्यादि।
बोले तो, शहर हो या गांव, घर हो या पार्क, बस हो या ट्रेन कहीं न कहीं लोग ये गेम खेलते मिल ही जाएंगे। चर्चा है कि लखनऊ में घटी दर्दनाक घटना से एक दिन पहले मां ने बेटे को पबजी गेम खेलने पर पीटा था। बताते हैं कि 10,000 रुपए कैबिनेट से गायब थे। अगले दिन 16 वर्षीय बेटे ने अपने पिता की लाइसेंसी रिवॉल्वर से मां को गोली मार दी, जब वह उसकी बहन के साथ एक कमरे में सो रही थीं। लड़के की बहन ने पुलिस को बताया कि भाई ने किसी को बताने पर उसे भी जान से मारने की धमकी दी थी। लड़के के पिता सेना में है और फिलहाल पश्चिम बंगाल में तैनात हैं।
छः माह पूर्व राजस्थान के नागौर में 16 साल के नाबालिग को ‘पबजी’, ‘फ्री फायर’ और ‘तीन पत्ती’ की लत में अपने 12 साल के चचेरे भाई की गला दबा कर हत्या करने के आरोप में पकड़ा गया। लगातार हुई हार से उस पर कर्ज चढ़ गया था। बड़ी बात यह है आरोपी नाबालिग ने सिर्फ अपने चेचरे भाई की हत्या ही नहीं की। बल्कि, मासूम की किडनैपिंग के बाद 4 दिन तक चचरे मासूम भाई की तलाश में आरोपी परिजनों के साथ ही बेखौफ घूमता भी रहा। हद तो तब हो गई जब 2019 में मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में परासिया निवासी एक युवक को पबजी गेम खेलने के दौरान प्यास लगी।
वह गेम में इतना मशगूल था कि बिना गौर किय़े पानी की बोतल की जगह एसिड की बोतल उठाकर गटकने लगा। जबतक उसे समझ में आता तब तक देर हो चुकी थी। इसी तरह, तेलंगाना के जगतैल जिले का रहने वाला सागर 45 दिनों से लगातार पबजी मोबाइल गेम खेल रहा था, जिसके कारण उसके गर्दन में काफी तेज दर्द होने लगा। असहनीय दर्द होने के बाद उसे हैदराबाद के अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां उसने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
मुम्बई में ‘पबजी’ खेलने की लत का शिकार एक 16 वर्षीय युवक अपनी मां के डांटने पर उनके बैंक अकाऊंट से 10 लाख रुपए निकलवा कर घर से भाग गया। मध्य प्रदेश के सिंगरौली में ‘पबजी’ के खेल में अपने दोस्त से जीते हुए 50 रुपए न मिलने पर 10वीं कक्षा के एक छात्र ने अपने मित्र को पत्थर पर पटक कर बेरहमी से उसकी हत्या कर दी और शव तालाब में फेंक दिया। मृत युवक अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था।
राजस्थान के झालावाड़ शहर में रहने वाला एक 13 वर्षीय लड़का ‘पबजी’ की लत में इतना डूब गया कि उसने ‘पबजी’ की खातिर अपने घर की तिजोरी से ही 3 लाख रुपए उड़ा दिए। उसके परिजनों का कहना है कि उनके बेटे की इस लत का फायदा पड़ोस में ई-मित्र की दुकान चलाने वाले युवक ने उठाया। छत्तीसगढ़ में अंबिकापुर के सोनपुर कलां में रहने वाला ‘पबजी’ खेलने की लत का शिकार 19 वर्षीय युवक 15,000 रुपए लेकर घर से भाग गया और अपने ही अपहरण की कहानी रच कर घर वालों से 4 लाख रुपए की फिरौती की मांग की। मध्य प्रदेश के छतरपुर में ऑनलाइन गेम में 40 हजार रुपए गंवाने के बाद 13 वर्षीय एक लड़के ने आत्महत्या कर ली।
मुंबई के लिए एक लड़के को घरवालों ने ‘पबजी’ खेलने के लिए 37,000 रुपये का फोन नहीं दिया तो उसने आत्महत्या कर ली। पंजाब के खरड़ में ‘पबजी’ खेलने के लिए 17 साल के बच्चे ने पिता के बैंक अकाउंट से 16 लाख रुपये खर्च कर डाले। यह घटना की है। पंजाब के मोहाली में 15 साल के बच्चे ने ‘पबजी’ खेलने के लिए अपने दादा जी के अकाउंट से दो लाख रुपये खर्च कर दिए।
यह सब तब है, जब भारत सरकार द्वारा 2 सितंबर, 2020 को पबजी मोबाइल पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। दस महीनों के भीतर, इसे बैटलग्राउंड मोबाइल इंडिया (बीजीएमआई) के रूप में फिर से लॉन्च किया गया। बीजीएमआई उन चीनी ऐप्स में सबसे बड़ा है, जिन्हें समान विशेषताओं के साथ पुन: लॉन्च और रीब्रांड किया गया और वे जांच को धोखा देने में कामयाब रहे।
भारत में इस समय गूगल प्ले स्टोर पर 30 लाख से ज़्यादा मोबाइल फ़ोन एप्लीकेशन मौजूद हैं। इनमें से 4 लाख 44 हज़ार 226 ऑनलाइन गेमिंग एप्स है। इनमें से 19 हज़ार 632 एप भारत में ही बनाए गए हैं। यही नहीं, पिछले साल भारत में हुए एक सर्वे में 20 साल से कम उम्र के 65 प्रतिशत बच्चों ने माना था कि वे ऑनलाइन गेम खेलने के लिए खाना और नींद तक छोड़ सकते हैं। बहुत से बच्चे इसके लिए अपने अभिभावकों का पैसा तक चुराने के लिए तैयार हैं।
झूठ बोले कौआ काटेः पिछले साल भारत के राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से अभिभावकों ने शिकायत की थी कि ऑनलाइन गेमिंग साइट्स बच्चों में जुआ, सट्टेबाजी और शोषण की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही हैं। बोले तो, कोरोना महामारी के दौरान बच्चों की पढ़ाई जब डिजिटल रूप से होने लगी, गेमिंग की बीमारी को फलने-फूलने का पूरा मौका मिला। बच्चों के लिए उनका लैपटॉप, कम्प्यूटर और मोबाइल फोन ही नया प्लेग्राउंड बन गया है। अनुमान है कि वर्ष 2022 में भारत में ऑनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या 51 करोड़ हो जाएगी।
बच्चों की छोड़िए, अपने गिरेबां में झांकिये। ख़रीददारी के लिए बाज़ार जाने की जहमत उठानी आपने बंद कर दी है। सुबह सबसे पहले उठते ही अपने सोशल मीडिया के अपडेट्स चेक करते हैं? रात को वॉशरूम जाने के लिए उठते हैं तो मोबाइल पर एक नजर डालने से नहीं चूकते हैं। विज्ञान की भाषा में इसे इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर या कंपल्सिव इंटरनेट यूज़ (सीआईयू) भी कहते हैं। जैसे ड्रग्स या अल्कोहल हमारे मस्तिष्क के प्लेज़र सेंटर्स को उत्तेजित करते हैं, इंटरनेट एडिक्शन भी दिमाग़ पर बिल्कुल वैसा ही असर डालता है।
इंटरनेट पर समय बिताने के दौरान डोपामाइन का स्राव होता है, जिससे आपको अच्छा महसूस होता है। अच्छा महसूस करने के लिए दूसरी गतिविधियों में ख़ुद को व्यस्त करना होगा। लोगों से मिलना शुरू करें, फ़िज़िकल गेम्स खेलें। परिवार के साथ घुले-मिलें, घूमने जाएं। किताबें पढ़ें, डायरी लिखना शुरू करें। यदि आपको इन आसान उपायों से इंटरनेट एडिक्शन से छुटकारा पाने में मदद न मिले तो मनोचिकित्सक की सहायता लें।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि गेमिंग बहुत से मामलों में लाभदायक भी है, बशर्ते कि नियंत्रित हो। वीडियो गेम खेलने से प्लेयर के रेस्पांस सिस्टम और रिफ्लेक्स में सुधार होता है। यह टीम वर्क सिखाता है और कॉग्निटिव फंक्शन को बेहतर करता है। इसलिए, माता-पिता को बच्चों की उम्र के अनुसार गेम कंटेंट पर ध्यान देना चाहिए। उनके मोबाइल-लैपटॉप पर लिमिट लगानी चाहिए। स्क्रीन टाइम तय करना चाहिए। साथ ही बच्चों को समय-समय पर ब्रेक लेने को कहना चाहिए। तय समय के बाद वाईफाई बंद कर देना चाहिए। नहीं तो, उपर लिखित घटनाएं दोहरायी जाती रहेंगी।
और ये भी गजबः
रायपुर के एक निजी स्कूल की छात्राओं ने लगभग तीन साल पहले ‘नो पबजी गेम’ क्लब बनाया है। इस क्लब में वे छात्राएं शामिल हैं, जो पहले पबजी गेम खेलती थीं या कभी न कभी उसकी आदी रही हैं। 6वीं से लेकर 12वीं कक्षा तक के ये बच्चे रोजाना हैंड बैंड लगाकर स्कूल आते हैं, जिसमें नो पबजी गेम लिखा हुआ है। छात्राओं की मेहनत और इस अभियान के चलते 2019 में 40 से ज्यादा बच्चे इस गेम की लत से बाहर आ चुके थे। ये बच्चियां रक्षाबंधन में अपने हाथ से नो पबजी गेम लिखे स्लोगन वाली राखी बनाकर उन्हें अपने भाईयों को बांध रहीं। वे उपहार में भी इस खेल को न खेलने की कसम लेती हैं।
दरअसल, रायपुर की पुरानी बस्ती स्थित छत्रपति शिवाजी गर्ल्स स्कूल के प्रबंधन को कई परिजनों से लगातार शिकायत मिल रही थी कि उनका बच्चा दिनभर मोबाइल में लगा रहता है। उसका व्यवहार बदलने के साथ वह चिड़चिड़ा हो रहा है। जून में स्कूल सत्र खुलने के बाद प्रबंधन ने स्कूल के शिक्षकों से इस मुद्दे पर बात की और एक अभियान चलाने की तैयारी की। सभी बच्चियों को इस तरह के गेम से होने वाले मानसिक व शारीरिक नुकसान को लेकर बताया। इसके बाद ऐसे बच्चियों की पहचान की गई, जो पबजी गेम खेलती थीं। उन्हें खुद इस आदत को छोड़ने और दूसरों साथियों को जागरूक करने की पहल की गई।