मध्यप्रदेश में इस समय पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव की धूम है। जुलाई में जहां राष्ट्रपति चुनाव पर देश की निगाहें होंगीं, तो मध्यप्रदेश में पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव के परिणामों पर। इन परिणामों में जीत-हार का नजरिया तो है ही, पर उससे ज्यादा निर्णायक होने वाली है बूथों की परीक्षा। हर बूथ पर जीत का भाजपा के संकल्प का लिटमस टेस्ट साबित होने वाले हैं यह चुनाव। मध्यप्रदेश में जहां कसौटी पर बूथ हैं, तो पूरे देश की निगाहें भोपाल-इंदौर में छह महीने पहले लागू हुए पुलिस कमिश्नर सिस्टम पर भी हैं।
छह महीने में बच्चा चलना नहीं सीख पाता, लेकिन पुलिस कमिश्नर सिस्टम को आंखें दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। पहले तो जो सिस्टम लागू हुआ, वह तब जब पूरे देश के बड़े शहरों में लागू होने के बाद परिणाम सामने पहले से ही थे। जिसकी ओट में सिस्टम को मध्यप्रदेश की जमीन पर पैर रखने में ही जमाना गुजर गया। और उस पर भी सबसे कमजोर दुबला पतला कमिश्नर सिस्टम अगर पैदा हुआ तो मध्यप्रदेश के भोपाल और इंदौर में। जहां कलेक्टर सिस्टम पर आंच नहीं आई और पुलिस कमिश्नर सिस्टम भी खड़ा कर दिया गया। उस पर भी छह महीने में ही कसौटी पर परखे जा रहे पुलिस कमिश्नर सिस्टम की खैर नहीं…की तर्ज पर पूरा माहौल बन गया है। तो बूथ और पुलिस कमिश्नर सिस्टम अब कसौटी पर सबसे अहम हैं।
भाजपा अब चुनाव में जीत की माइक्रो लेवल प्लानिंग के तहत “बूथ” पर लक्ष्य केंद्रित कर रही है। विधानसभा में फाइनल टेस्ट से पहले भाजपा ने बूथ को जीत के मॉडल के रूप में नगरीय निकाय चुनावों में कसौटी पर परखने की पूरी तैयारी कर ली है। तो गैर दलीय पंचायत चुनावों में भी भाजपा समर्थित उम्मीदवारों के जरिए गांव-गांव में भी बूथ की परीक्षा ली जाएगी। इसके लिए भाजपा ने नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव के बूथों पर 10 जून को ‘बूथ विजय संकल्प’ अभियान चलाना तय किया है।
प्रदेश के 65 हजार से अधिक बूथों पर पार्टी के कार्यकर्ता बूथ विजय का संकल्प लेंगे और बूथ विजय की रणनीति बनायेंगे। इसके बाद योजनाओं के लाभार्थियों से संपर्क के लिए निकल पडेंगे। “जीतेगा बूथ, जीतेगी भाजपा” का नारा हर बूथ पर गूंजेगा। मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष के अलावा सांसद, विधायक, वरिष्ठ नेतागण और कार्यकर्ता बूथ पर जाएंगे। केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के हितग्राहियों से मिलेंगे और अपेक्षा करेंगे कि हर बूथ पर योजनाओं का लाभ मिलने की झलक पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव में दिखनी चाहिए।
ताकि दुनिया के सबसे बड़े राजनैतिक दल में इस प्रयोग की सफलता की मिसाल मध्यप्रदेश बन जाए। भाजपा के श्रेष्ठतम संगठन का परचम मध्यप्रदेश लगातार फहराता रहे। तो सरकार के कामों पर फाइनल से पहले ही इस सेमीफाइनल में मुहर भी लग जाए। तो परीक्षा कड़ी है, जिसमें प्रदेश भाजपा के बूथ त्रिदेव और बूथ पर सबकी निगाहें रहेंगीं।
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पर छह महीना गुजर नहीं पाए और प्रदेश में पुलिस कमिश्नर सिस्टम के सिर पर पत्थर बरसना शुरू हो गए हैं। हालांकि नई व्यवस्था के आकलन के लिए यह अवधि बहुत कम है। वैसे भी राज्य सरकार ने यह सिस्टम लागू कर प्रशासन के हाथ से लड्डू नहीं छीना है, बल्कि पुलिस के हाथ में भी एक लड्डू थमा दिया है। यानि कि सर्वे भवंतु खुशिन: के मंत्र पर अमल कर दिया है। चूंकि सरकार के फैसले पर बोलने का हक तो नौकरशाहों और सरकारी सेवकों को नहीं है, सो फिलहाल तर्कों से अपने कामों का बखान कर दोनों शहरों के पुलिस कमिश्नर भरोसा दिला रहे हैं कि काम बेहतर हो रहा है।
जब कोई नया-नया धंधा शुरू करता है और किसी को बताएं कि नया व्यवसाय शुरू किया है, तो सामने वाला यह ढ़ाढस तो बंधा ही देता है कि दो-तीन साल का समय तो लग ही जाता है नया धंधा जमने में। फिर पुलिस कमिश्नर सिस्टम का छह महीने में आकलन कर नई व्यवस्था के साथ अन्याय करना शायद ठीक नहीं है। हालांकि अब कमिश्नर सिस्टम लागू हो गया है, सो आकलन करने से न तो सरकार का यह फैसला बदलने वाला है और न ही पुलिस कमिश्नरी खत्म होने वाली है। पर ऐसी चर्चा से मन में मायूसी तो छाती ही है, भले ही उसकी उम्र पल-दो-पल की ही क्यों न हो।
पर इसका सकारात्मक पक्ष भी है कि ऐसी तुलना से व्यवस्था को और ज्यादा दुरुस्त करने की चुनौती स्वीकारने का साहस भी पैदा होता है। जो कि अपराधमुक्त मध्यप्रदेश और अपराधमुक्त भोपाल-इंदौर बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी भी है। और अब तो हर महीने और हर बड़ी वारदात के समय यह सिस्टम आकलन करने वालों की निगाहों में रहेगा।
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तो अगले साल जहां मध्यप्रदेश में चुनावी साल होगा, तो कसौटी पर परखे जा चुके बूथ और पुलिस कमिश्नर सिस्टम के नतीजे ही भाजपा और कानून व्यवस्था की अगली रणनीति में कारगर भूमिका निभाएंगे। प्रदेश में अगली सरकार बनाने में बूथ और कमिश्नर सिस्टम दोनों ही महत्वपूर्ण रहेंगे।
हर बूथ पर जीतकर ही दल दलदल में जाने से बचेंगे। वहीं अपराध में कमी यदि इन दो बड़े शहरों में नहीं हुई तो पूरे प्रदेश में कानून-व्यवस्था की हालत का हवाला देते हुए सरकार को मतदाताओं की अदालत के कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की जाएगी। इसलिए ‘बूथ’ और ‘पुलिस कमिश्नर सिस्टम’ को कसौटी पर खरा उतरना ही होगा, नहीं तो भाजपा संगठन और सरकार की खैरियत पर डर का साया नुमायां होता नजर आएगा।