Jhuth Bole Kauva Kaate! टूलकिट के जाल में तो नहीं अग्निपथ बवाल ?

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Jhuth Bole Kauva Kaate! टूलकिट के जाल में तो नहीं अग्निपथ बवाल ?

केंद्रीय गृह मंत्रालय सहित कई राज्यों ने कहा है कि वे अपने बलों की भर्ती में ‘अग्निवीरों’ को वरीयता देंगे। इसके बावजूद अग्निपथ स्कीम को वापस लेने की मांग करते हुए कई जगह आगजनी-हिंसा हुई, रेल मार्ग-सड़क मार्ग को रोका गया। शांतिपूर्ण प्रदर्शन की बजाय विरोध के इस हिंसक तरीके को कहीं सुनियोजित टूलकिट से तो अंजाम नहीं दिया गया, यह चर्चा और निश्चय ही जांच का विषय है। पैगंबर निंदा, किसान आंदोलन, कोरोना की दूसरी लहर, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट, शाहीनबाग जैसे मुद्दों पर आग लगाने वाले टूलकिट लोग भूले नहीं हैं।

दरअसल, टूलकिट वह डिजिटल हथियार है जो सोशल मीडिया पर एक बड़े वर्ग को टारगेट करते हुए  किसी आंदोलन को हवा देने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को उसमें जोड़ने के लिए प्रयोग किया जाता है। टूलकिट में वो सभी चीजें मौजूद होती हैं, जो लोगों को अपनाने की सलाह दी जाती है ताकि आंदोलन भी बढ़े और किसी तरह की कोई बड़ी कार्रवाई भी न हो सके।

Jhuth Bole Kauva Kaate! टूलकिट के जाल में तो नहीं अग्निपथ बवाल ?

हाल ही में तत्कालीन भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद को लेकर की गई टिप्पणी के बाद अरब देशों समेत इस्लामिक देशों को भड़काने में पाकिस्तान में तैयार किए गए टूलकिट की अहम भूमिका का भंडाफोड़ हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, निलंबित भाजपा नेता को निशाना बनाने के लिए कई फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट और पत्रकारों और कई राजनेताओं के अकाउंट का इस्तेमाल भारत के खिलाफ अरब जगत में माहौल बनाने के लिए किया गया।


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इसी तरह जब किसान आंदोलन चल रहा था तो उसके समर्थन में ग्रेटा थनबर्ग ने एक ट्वीट किया और टूलकिट नाम का एक डॉक्यूमेंट साझा किया, जिस पर सोशल मीडिया पर काफी हंगामा हुआ तो ग्रेटा ने ट्वीट डिलीट करके दूसरे ट्वीट से दूसरा टूलकिट डॉक्यूमेंट साझा कर दिया। ग्रेटा द्वारा शेयर की गई इस टूलकिट में किसान आंदोलन के बारे में जानकारी जुटाने और आंदोलन का साथ कैसे करना है इसका पूरा ब्यौरा दिया गया। इस टूलकिट में स्पष्ट शब्दों में समझाया गया कि आखिरकार कैसे भारत में चल रहे किसान आंदोलन के बारें जरूरी अपडेट लेने हैं? अगर कोई यूजर किसान आंदोलन पर ट्वीट कर रहा है तो उसे कौन सा हैशटैग लगाना है? अगर कोई दिक्कत आए तो किन लोगों से संपर्क करना हैं।

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कोरोना महामारी की दूसरी लहर में पूरे भारत में हाहाकार मचा था, तो कुछ राजनैतिक गिद्ध अवसर तलाश रहे थे। आरोप है कि एक प्रमुख दल ने अपने कार्यकर्ताओं के लिए ऐसी ही एक टूल किट तैयार की जिसमें कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए गए थे कि इस आपदा में कैसे प्रधानमंत्री मोदी की छवि खराब की जाए ? कैसे इस आपदा को और बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाए ? कैसे कुंभ के मेले को कोरोना संक्रमण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए ? कैसे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को बदनाम किया जाए और इसे मोदी का घर बताया जाए ?

वायरल टूलकिट में कथित तौर पर पार्टी कार्यकर्ताओं से लाशों और अंतिम संस्कार की नाटकीय तस्वीरों का इस्तेमाल करने को कहा गया था। तथाकथित टूलकिट में कहा गया कि लोगों को ‘सुपर स्प्रेडर कुंभ’ याद दिलाते रहना है। यह ज़रूरी है क्योंकि यह भाजपा की हिंदू राजनीति है जो इतना संकट पैदा कर रही है। यह भी कहा गया कि कुंभ और ईद के बीच में आने से बचें क्योंकि भाजपा इसका काउंटर करेगी। ईद की बधाई पर कमेंट न करें। टूलकिट में कहा गया कि विदेशी पत्रकारों और विदेशी प्रकाशनों में भारतीय लेखकों से संपर्क किया जाए और उन्हें इन मुद्दों पर बातचीत करने को कहा जाए। विदेशी मीडिया जिस तरह की नाटकीय तस्वीरों का इस्तेमाल कर रही है, उनकी रिपोर्टिंग को बढ़ाया जा सकता है। पीएम मोदी के लिए अपमानजक वाक्यों का इस्तेमाल किया जाए।

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झूठ बोले कौआ काटेः बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित कई राज्यों में राजमार्गों और रेलवे को जिस तरह प्रमुखता से निशाना बनाया गया, उससे तो यही आशंका बलवती होती है कि  अग्निपथ स्कीम पर विमर्श के दौरान ही इसके विरोध के रणनीतिक टूलकिट पर विध्नसंतोषियों ने तैयारी कर ली थी। फिर, जैसे ही केंद्र सरकार ने इसकी आधिकारिक घोषणा की, विरोध की एक जैसी आग देखते ही देखते अनेक राज्यों में फैल गई जिसमें कई जगह ट्रेनों में आग तक लगा दी गई, हिंसा भड़काने की पूरी कोशिश हुई।


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सेना में भर्ती अवरूद्ध होने से सेना में स्थाय़ी नौकरी के इच्छुक युवाओं में रोष होना तो स्वाभाविक है। कोरोना के चलते सेना में भर्ती अटकी रही, लेकिन नौसेना और वायुसेना में भर्ती जारी रही। 21 मार्च को राज्यसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया था कि दो साल तक सेना में भर्ती नहीं हुई, लेकिन इसी दौरान नौसेना में 8,319 और वायुसेना में 13,032 भर्तियां हुईं। युवाओं का आरोप है कि उन्होंने फिजिकल और मेडिकल टेस्ट पास कर लिया है, लेकिन भर्ती परीक्षा नहीं होने से वह ओवरएज हो जा रहे हैं और बाद में वे सेना में भर्ती के योग्य नहीं रहेंगे। सेना में भर्ती के लिए 23 साल की आयुसीमा है। पिछले महीने ही हरियाणा के भिवानी में 23 साल पवन पंघाल ने इसलिए आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि वो ओवरएज हो गया था। पवन 15 साल की उम्र से सेना में जाने की तैयारी कर रहा था। उसने फिजिकल और मेडिकल टेस्ट पास कर लिया था, लेकिन भर्ती रुकने से वो ओवरएज हो गया था।

बोले तो, इन तथ्यों के बावजूद विरोध के इस बवाली तरीके को कत्तई उचित नहीं ठहराया जा सकता। लोकतंत्र में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की मनाही नहीं है। स्कीम में कमियां हो सकती हैं, लेकिन यह भी सही है कि सरकार ने साफ कहा है कि सेना से रिटायर होने के बाद ऐसे ‘अग्निवीर’ जो कारोबार शुरू करना चाहेंगे उन्हें वित्तीय मदद दी जाएगी। उन्हें बैंक लोन भी मिलेगा। ऐसे ‘अग्निवीर’ जो आगे पढ़ाई करना चाहेंगे उन्हें 12वीं कक्षा के बराबर का सर्टिफिकेट एवं ब्रिजिंग कोर्स की सुविधा भी मिलेगी। इन्हें सीएपीएफ एवं राज्यों की पुलिस की भर्ती में वरीयता दी जाएगी। सरकार के अन्य उपक्रमों में भी इन्हें समायोजित किया जाएगा। सेना में इस तरह की सीमित सेवा की व्यवस्था ज्यादातर देशों में है। इस व्यवस्था को पहले से ही परखा जा चुका है। बूढ़ी होती सेना एवं युवाओं के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था माना जाता है। पहले साल भर्ती होने वाले ‘अग्निवीरों’ की संख्या सशस्त्र सेनाओं की संख्या की मात्र 3 फीसदी होगी।


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इस योजना से सेना में युवाओं के लिए अवसर कम नहीं, बल्कि बढ़ेंगे। आने वाले वर्षों में सेना में ‘अग्निवीरों’ की भर्ती मौजूदा समय से करीब तीन गुना बढ़ जाएगी। सेना के रेजिमेंटल व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा है। वास्तव में ‘अग्निवीरों’ के आने से रेजिमेंट की भावना और बढ़ेगी क्योंकि इसमें सर्वोत्तम जवान चुने जाएंगे। सेना में युवा जवानों की संख्या अनुभवी सैनिकों से ज्यादा हो जाए, ऐसा कभी समय नहीं आएगा। इस योजना के तहत धीरे-धीरे ‘अग्निवीरों’ की संख्या बढ़ाई जाएगी वह भी अनुभवी सैनिकों की तादाद को देखते हुए।

यह आरोप कि ‘अग्निवीर’, आतंकवादी बन सकते हैं, भारतीय सेना के मूल्यों एवं परंपरा के खिलाफ है। एक बार सेना की वर्दी पहन चुके युवा हमेशा देश और समाज के प्रति वफादार रहेंगे। सशस्त्र सेनाओं से हर साल हजारो लोग रिटायर होते हैं, उनके पास कौशल होता है, वह देशविरोधी गतिविधियों में शामिल हुए हों, ऐसा कोई उल्लेखनीय उदाहरण नहीं है। यह आरोप भी सही नहीं है कि बीते दो सालों में सशस्त्र सेनाओं में सेवारत अधिकारियों से इस योजना पर व्यापक विचार-विमर्श नहीं हुआ। इस योजना का प्रस्ताव डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री ऑफिसर्स के अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया।

और ये भी गजबः भ्रष्ट उपायों से नौकरी पाने का शार्टकट तरीका प्रायः बेरोजगार युवाओं को ठगों के जाल में फंसने को मजबूर करता रहता है। यदा-कदा ऐसी ठगी की खबरें जानने-पढ़ने को मिलती रहती हैं। पिछले महीने, राजस्थान के चूरू जिले के सालासर क्षेत्र के गुड़ावडी गांव निवासी बेरोजगार युवक राजेश कुमार ने लक्ष्मणगढ़ थाने में मामला दर्ज करवाया कि फरीदाबाद निवासी राहुल आर्य ने आठ लाख रुपए लेकर गारंटी के साथ सेना में भर्ती करवाने की बात कही थी। पर, आज तक न जॉब मिली न पैसा। मिला केवल नौकरी का फर्जी पेपर। राहुल आर्य सितंबर 2020 में लक्ष्मणगढ़ उपखंड क्षेत्र के हापास गांव में रिश्तेदार के यहां शादी कार्यक्रम में आया था, जहां राजेश से उसकी भेंट हुई थी।

ठगी के खेल में हद तो यहां तक है कि गिरोह बाकायदा फर्जी ट्रेनिंग तक कराने से नहीं चूकता है। पिछले साल आर्मी इंटेलिजेंस यूनिट मेरठ ने सेना भर्ती के नाम पर देश में जाल फैलाकर ठगी करने वाले गिरोह के तीन लोगों को गिरफ्तार किया जो शॉर्टकटी युवकों को सेना में भर्ती के नाम पर फर्जी ट्रेनिंग कराने का काम करते थे। इसके एवज में इन युवाओं से मोटी रकम ली जाती थी। आर्मी इंटेलिजेंस की सूचना पर पुलिस ने एक होटल से महाराष्ट्र के 10 युवकों को पकड़ा था जिन्हें सेना में भर्ती के नाम पर फर्जी नियुक्ति पत्र तक दिये गए थे। इस गिरोह में डॉक्टर तक शामिल था।

Arrested by Kolkata Police

पिछले महीने कोलकाता में पांच लोग गिरफ्तार किये गए, जिनमे से दो ने सेना की वर्दियां पहन रखी थीं और कॉलर बैज भी सेना जैसा ही था। आरोपित स्वयं को सेना में उच्च पदों पर पदस्थ बताते थे। इनके पास फर्जी पहचान पत्र भी था। इन घटनाओं से यह सवाल तो उठता ही है कि रिश्वत देकर नौकरी पाने का कारोबार आखिर कबतक ?