Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: क्या फीका पड़ने लगा सिंधिया का दबदबा!

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क्या फीका पड़ने लगा सिंधिया का दबदबा!

कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में आए और मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह की फिर सरकार बनाने की आधारशिला रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक धमक लगता है अब कमजोर पड़ने लगी है। जब वे 22 विधायक का झुंड लेकर भाजपा में आए थे, तो उनकी हर इच्छा को पूरा किया जा रहा था। उन्होंने जिसे चाहा वो मंत्री बना, वो भी मनपसंद विभाग पाकर। लेकिन, नगर निकाय चुनाव में उनकी पकड़ कमजोर दिखाई दी। कई जगह उनके कहे जाने वाले लोग पार्षद के टिकट से भी वंचित रहे।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: क्या फीका पड़ने लगा सिंधिया का दबदबा!

लेकिन, सबसे बड़ा उलटफेर ग्वालियर में हुआ जहां उनकी मर्जी के बगैर सुमन शर्मा को पार्टी ने महापौर का टिकट दिया। इसके लिए कई बार उठा पटक के हालात बने। इसके लिए वे व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री से मिले और संगठन के वरिष्ठ नेताओं पर दबाव भी डाला। बात ग्वालियर और भोपाल से आगे दिल्ली तक पहुंची। अंततः नरेंद्र तोमर का सिक्का चला और पार्टी ने सुमन शर्मा का टिकट एक दिन पहले फाइनल किया। बात महज एक टिकट की नहीं, राजनीतिक दबदबे की है, जिसमें सिंधिया का सिक्का कमजोर पड़ गया। लगता है यह इसकी शुरुआत है। उनके असल प्रभाव का पता तो विधानसभा चुनाव के समय लगेगा जब टिकट बटेंगे। तब सिंधिया अपने लोगों को फिर से टिकट दिला पाते हैं या नहीं ये देखना होगा।

शिवराज से जीतने की कला सीखना होगी पुष्यमित्र को

बीजेपी ने हाईकोर्ट के अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे पुष्यमित्र भार्गव को इंदौर से महापौर पद का उम्मीदवार बनाया है। वे कानून के अच्छे खासे जानकार होने के साथ उनके पास कई डिग्रियां भी हैं। लेकिन, उन्हें नेतागिरी का अनुभव नहीं है। पर, वे कांग्रेस के उम्मीदवार की तरह ब्राह्मण जरूर हैं, तो पलड़ा उनकी तरफ झुक गया। उन्होंने ABVP से जुड़कर काम जरूर किया, पर कोई चुनाव नहीं लड़ा और न किसी नेता को नजदीक से चुनाव लड़ते देखा है!  ऐसे में उनमें नेतागिरी के मूल गुण नहीं आ सके! अब उन्हीं गुणों का अभाव उनके जनसंपर्क में साफ दिखाई दे रहा है। वे लोगों से मिल तो रहे हैं, पर नेता का अंदाज नदारद है। उनके जनसम्पर्क में कारपोरेट वाला अंदाज ज्यादा है। उनके साथ शहर के बड़े नेता भी नजर नहीं आ रहे, जो उन्हें चुनावी हथकंडे सिखाएं। उनके साथ बड़े और चुनाव लड़ने के सिद्धहस्त नेताओं के बजाए ABVP के स्टूडेंट ज्यादा दिखाई दे रहे हैं।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: क्या फीका पड़ने लगा सिंधिया का दबदबा!

वास्तव में नेतागिरी में अनुभवहीन होने से पुष्यमित्र को चुनाव जीतने की कला का अभाव ही नजर आ रहा है। क्योंकि, चुनाव लड़ने की अपनी मजबूरियां हैं जिनको चाहे न चाहे अपनाना ही पड़ता है। अभी भी वक़्त हैं, यदि वे ऐसा कर सके तो वैतरणी पार भी लग सकती है। जहां तक चुनाव जीतने की कला की बात है तो उन्हें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से ये सीखना चाहिए। क्योंकि, वे खुद तो बरसों से जीतते ही रहे हैं, कई और को भी चुनाव जितवा देते हैं।


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सत्तन गुरु की उम्मीद से कहीं ज्यादा खरी खरी!

इंदौर के पुराने और मुखर भाजपा नेता सत्यनारायण सत्तन को अपनी मुखरता के लिए जाना जाता है। वे सही बात कहने में कभी झिझकते नहीं और न कभी किसी का लिहाज करते हैं। झांसी की रानी के बलिदान दिवस के मौके पर उन्होंने मंच से जो कहा उसकी खासी चर्चा है। उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने पर बदली भाजपा पर कई कटाक्ष किए। उन्होंने अंग्रेजों के हाथों रानी लक्ष्मीबाई के मारे जाने की पुरानी बातों को भी छेड़ा और उस पर तंज किया कि जो सत्य है वो नित्य है। सबसे खास बात यह कही कि जो अब कांग्रेस में बचे हैं, वो असली राष्ट्रभक्त हैं। वे देश, समाज और संगठन के प्रति समर्पित कार्यकर्ता हैं। उन्होंने इस मंच से कांग्रेस के लोगों की जमकर तारीफ की और भाजपा पर बार-बार कटाक्ष किए। उनकी हर बात पर तालियां भी खूब बजी।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: क्या फीका पड़ने लगा सिंधिया का दबदबा!

ये पहला मौका नहीं है जब सत्तन गुरू ने चौके-छक्के मारे हों। उन्हें जब भी जहां भी मौका मिलता है किसी न किसी की शामत आ ही जाती है। ‘इंदौर गौरव दिवस’ तय करने के लिए बुलाई गई बैठक में भी सत्तन गुरु की यही मुखरता दिखाई दी थी। बैठक से बाहर आते ही उन्होंने मीडिया के सामने लंबा बयान दिया था। जिसका निचोड़ था कि जब सब कुछ प्रशासन को ही तय करना था, तो हमको क्यों बुलाया!

इस विभाग ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल की शर्तों के साथ अनुमति दी
रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले रक्षा लेखा विभाग ने पहली बार अपनी सोशल मीडिया पालिसी बनाई है। यह पालिसी इलैक्ट्रानिक तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइंस के अनुरूप बनाई गई है। इसकी मुख्य बात यह है कि विभाग ने अपने अधिकारियों को इसके प्रयोग के लिए कई निर्देश भी दिए हैं। रक्षा लेखा मंत्रालय का पहला विभाग है जिसने काफी देर से अपने अधिकारियों को आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया के इस्तेमाल की शर्तों के साथ अनुमति दी है।

इसलिए नहीं हो सकी मुख्य सतर्कता आयुक्त के चयन की बैठक
मुख्य सतर्कता आयुक्त के चयन के लिए होने वाली बैठक राजनीतिक कारणों से टाल दी गई। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में होने वाली यह बैठक गत सोमवार को आयोजित की गई थी, लेकिन उसी दिन ईडी द्वारा राहुल गांधी को पूछताछ के लिए बुलाए जाने से नाराज कांग्रेस ने आंदोलन कर दिया। लोकसभा में सबसे बडे दल के नेता अधीर रंजन चौधरी भी उसमें शामिल थे। उन्हें बुलाने के लिए बताया जाता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से कई बार फौन किए गए लेकिन चौधरी ने मीटिंग में शामिल होने से कथित रूप से मना कर दिया और मीटिंग को टालना पडा।


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अग्निपथ: बिहार में ही यह आंदोलन सबसे ज्यादा उग्र क्यों हुआ?
अग्निपथ रिक्रूटमेंट के खिलाफ चल रही आंदोलन की आग को शांत करने के लिए लगभग सारी सरकारी मशीनरी दिन रात काम कर रही है। गलियारों में इस बात की खास चर्चा है कि बिहार में ही यह आंदोलन सबसे ज्यादा उग्र क्यों हुआ हुआ? भाजपा के नेताओं को ही निशाना क्यों बनाया गया? सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड के नेताओं को छुआ तक नहीं जाना।

DOPT के पत्रों की अनदेखी
केंद्रीय सचिवालय सेवा (सी एस एस) के 58 अधिकारियों की सतर्कता रिपोर्ट के बारे में डी ओ पी टी पिछले तीन महीनों में तीन पत्र विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को लिख चुका है, लेकिन संबंधित विभाग लगता है इस मामले में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। डी ओ पी टी ने चौथी बार कार्यालय ज्ञापन भेज कर सभी मंत्रालयों और विभागों से मांगी गई जानकारी भेजने में प्राथमिकता अपनाने पर बल दिया है। अब देखना है इस ज्ञापन को कितनी गंभीरता से लिया जाता है।