Jhuth Bole Kauva Kaate: द्रौपदी मुर्मू के बहाने एक तीर, कई निशाने
राष्ट्रपति चुनाव में भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने विपक्षी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के मुकाबले द्रौपदी मुर्मू को मैदान में उतारने की घोषणा करके एक तीर से कई निशाने साध लिए। न केवल विपक्षी एकता के मंसूबे धराशायी होते नजर आ रहे, 2024 के आम चुनाव और उसके पहले होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों पर भी इसका असर राजग के पक्ष में होने की संभावना मजबूत हो गई है।
2017 में लो-प्रोफाइल दलित नेता रामनाथ कोविंद को चुनकर नरेंद्र मोदी ने देश को चौंका दिया था। 2022 में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित कुछ अन्य दिगग्जों के नाम शीर्ष पद के लिए हवा में तैर रहे थे, उस आदिवासी महिला के नाम पर मुहर लगाना जिसने युवावस्था तक शौच के लिए बाहर जाने का अभिशप्त जीवन जीया, देश को एक बार फिर चौंकाने वाला सिद्ध हुआ। आर्ट्स ग्रैजुएट द्रौपदी मुर्मू ने अपने करियर की शुरुआत एक क्लर्क के रूप में की थी, फिर वो टीचर बन गईं। बाद में उन्होंने राजनीति का रुख किया और 1997 में पहली बार निगम पार्षद बनीं। ओडिशा के रैरंगपुर विधानसभा सीट से दो बार भाजपा विधायक बनने के बाद वो सन् 2000 से 2004 के बीच नवीन पटनायक सरकार में मंत्री भी बनीं। फिर, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने द्रौपदी मुर्मू को 2015 में झारखंड का राज्यपाल बनाया। उनका कार्यकाल पिछले वर्ष 2021 में खत्म हुआ। मुर्मू का निजी जीवन बेहद उतार चढ़ाव वाला रहा। मुर्मू के पति और दोनों बेटों की दुर्भाग्य से मृत्यु हो चुकी है। एक बेटी है, जिसका विवाह हो चुका है। 2016 में मुर्मू ने रांची के कश्यप मेडिकल कॉलेज द्वारा आयोजित किए गए रन ऑफ विजन प्रोग्राम में अपनी आंखें दान करने की घोषणा भी की थी।
दूसरी ओर, राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा राजनीति का एक चर्चित चेहरा हैं। बिहार में पैदा हुए और बिहार-कैडर के दबंग आईएएस अधिकारी, सिन्हा ने 1984 में प्रशासनिक सेवा छोड़ दी और जनता पार्टी में शामिल हो गए। सिन्हा 1988 में राज्यसभा के सदस्य बने। बाद में वह जनता दल से जुड़े और चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री भी रहे। बाद में भाजपा में शामिल हो गए। वे वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रहे। 2018 में उन्होंने भाजपा भी छोड़ दी और 2021 में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। यह अलग बात है कि नीतीश न सही यशवंत ही सही, प्रेसिडेंट इलेक्शन का बिहार कनेक्शन भी बरकरार है। य़शवंत सिन्हा चाहे प्रशासनिक सेवा में रहे या राजनीति में अपने अक्खड़ स्वभाव और विवादित बयानों के लिए चर्चित रहे।
यशवंत सिन्हा ने भले ही राजग प्रत्याशी का नाम न लिया हो, लेकिन विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार चुने जाने के बाद अपनी पहली बैठक में ही खरी-खरी कहा कि देश में रबर-स्टाम्प राष्ट्रपति नहीं चाहिए। राष्ट्रपति चुनाव व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है बल्कि देश के सामने खड़े मुद्दों की लड़ाई है। दूसरी ओर, राज्यपालों पर भी केंद्र की तरफ झुके रहने का आरोप लगता रहा है लेकिन मुर्मू अपने राज्यपाल-कार्यकाल के दौरान तटस्थ रहने के लिए जानी गईं। एक मौका ऐसा भी आया था जब मुर्मू ने भाजपा की रघुबर दास सरकार को नसीहत देते हुए, उनके विधेयक को बिना लाग-लपेट लौटा दिया था।
झूठ बोले कौआ काटेः
राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल के पास वोटों के कुल वेटेज की संख्या 10,98,903 है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा का वोट मूल्य 6,264 है, जो फिलहाल निलंबित है। इसे घटाने के बाद राष्ट्रपति चुनाव के लिए बहुमत का जादुई आंकड़ा 5,46,320 सिमटकर रह गया है। बोले तो, केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की देश के 17 राज्यों में सरकारें हैं। भाजपा के पास 4,65,797 वोट हैं, जबकि इसके सहयोगी दल के पास 71,329 वोट हैं। इन दोनों को मिला दिया जाए तो राजग के पास कुल 537,126 वोट हैं, जो बहुमत से करीब 9,194 वोट कम है। लेकिन, राष्ट्रपति चुनाव में क्षेत्रीय दलों और विपक्षी खेमे से पाला बदल समर्थन की घटनाएं नई नहीं हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही होना दिख रहा है।
द्रौपदी मुर्मू ओडिशा से ही हैं इसलिए उम्मीद के अनुरूप बीजद ने उनके समर्थन का भी ऐलान कर दिया है। बीजद के समर्थन से एनडीए के पास जो एक फीसदी मतों की कमी थी, वह दूर होती नजर आ रही है। राजग उम्मीदवार को जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) का भी समर्थन मिला है। वहीं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी उनको समर्थन देने की घोषणा कर दी है। दूसरी ओर, विपक्ष के साझा उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा को उतारने के लिए झामुमो ने भी हस्ताक्षर किया था, लेकिन राजग की ओर से आदिवासी उम्मीदवार को उतारे जाने के बाद शिबू सोरेन की अगुआई वाली पार्टी पर भी अपना स्टैंड बदलने का जबर्दस्त दबाव है।
उधर, भाजपा के आदिवासी दांव ने ‘आप’ को भी दुविधा में डाल दिया है। ‘आप’ के लिए मुर्मू का समर्थन न करना गुजरात चुनाव की वजह से भी मुश्किल है। पार्टी गुजरात विधानसभा में पूरा जोर लगा रही है, जहां आदिवासियों की बड़ी आबादी है। राज्य में करीब 90 लाख आदिवासी हैं और 14 जिलों में चुनावी हार जीत तय करने में इनकी भूमिका अहम होती है। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में चल रही सियासी उथल-पुथल भी भाजपा के पक्ष में ही जाती हुई दिख रही है। शिवसेना के बागी विधायकों के भाजपा के साथ जाने से भाजपा की राज्य में सरकार तो बनेगी ही, राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी और समर्थन मिल जाएगा।
दिलचस्प यह भी है कि यशवंत सिन्हा के पुत्र हजारीबाग से भाजपा सांसद जयंत सिन्हा भी भाजपा प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में ही मतदान करेंगे। वहीं, यशवंत सिन्हा के राष्ट्रपति चुनाव जीतने की उम्मीद पर उनकी पत्नी नीलिमा सिंह का कहना है कि जीतने की उम्मीद तो कोई खास नहीं है, क्योंकि बहुमत भाजपा के पास है और उम्मीदवार भी उन्होंने अच्छा चुना है। फिर भी, देखते हैं क्या होता है।
बोले तो, 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीतिक दृष्टि से भी एक निर्विवाद आदिवासी महिला नेता को शीर्ष पद का उम्मीदवार बनाना भाजपा के लिए फायदे का कदम साबित हो सकता है। देश की करीब 55-60 लोक सभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर आदिवासी वोटर सीधे असर रखते हैं। इसके अतिरिक्त 9 राज्य ऐसे हैं, जहां पर आदिवासी समुदाय का बेहद असर है। और इनमें से 5 राज्यों में 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले विधानसभा चुनाव होंगे। अर्थात्, एक तीर कई निशाने !
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और ये भी गजबः
भारत के राष्ट्रपति का सरकारी निवास ‘राष्ट्रपति भवन’ इटली के रोम स्थित क्यूरनल पैलेस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निवास स्थान है। इसे तैयार होने में पूरे 17 वर्षों का समय लगा था। इसका निर्माण कार्य 1912 में शुरू हुआ था और 1929 में यह बन कर तैयार हुआ था। इसके निर्माण कार्य में करीब 29000 लोग लगाए थे। इसमें राष्ट्रपति कार्यालय, अतिथि कक्षों समेत 300 से भी अधिक कमरे हैं। इसकी इमारत तब अस्तित्व में आई जब भारत की राजधानी को कोलकत्ता से दिल्ली में स्थानांतरित किया गया। राष्ट्रपति भवन सन् 1950 तक वायसराय हाउस कहलाता था।
इस इमारत का नक्शा बनाया एडविन लुटियंस ने। लुटियंस ने हर्बट बेकर को 14 जून, 1912 को इस आलीशान इमारत का नक्शा बनाकर भेजा। राष्ट्रपति भवन यानी उस समय के वायसराय हाउस को बनाने के लिए 1911 से 1916 के बीच रायसीना और मालचा गांवों के 300 लोगों की करीब 4 हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया। इमारत बनाने में करीब 70 करोड़ ईंटों और 30 लाख पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। उस वक्त इसके निर्माण में 1 करोड़ 40 लाख रुपये खर्च हुए थे। राष्ट्रपति भवन में प्राचीन भारतीय शैली, मुगल शैली और पश्चिमी शैली की झलक देखने को मिलती है। राष्ट्रपति भवन का गुंबद इस तरह से बनाया गया कि ये दूर से ही नजर आता है।
प्रत्येक वर्ष फरवरी के महीने में राष्ट्रपति भवन के पीछे बने मुग़ल गार्डन को उद्यानोत्सव नाम के त्योहार के दौरान जनता के लिए खोला जाता है। राष्ट्रपति भवन के बैंक्वेट हॉल में एक साथ 104 अतिथि बैठ सकते हैं। राष्ट्रपति भवन के अशोका हॉल में मंत्रियों के शपथग्रहण आदि जैसे समारोह होते हैं। सबसे अद्भुत राष्ट्रपति भवन का विज्ञान एवं नवाचार गैलरी है। इसमें एक रोबोट कुत्ता है, जिसका नाम क्लम्सी है जो बिलकुल असली कुत्ते जैसा दिखता है। प्रत्येक शनिवार को सुबह 10 बजे से 30 मिनटों तक चलने वाला “चेंज ऑफ गार्ड ” समारोह आयोजित किया जाता है और यह जनता के लिए भी खुला होता है।