Indore : राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष शोभा ओझा ने आज अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने शिवराज सरकार पर आरोप लगाया कि संवैधानिक रूप से गठित कार्यकारिणी को न्यायालय में उलझाकर, हजारों महिलाओं को न्याय से वंचित कर दिया गया। राजनीतिक स्वार्थों की खातिर महिला सुरक्षा की बलि चढ़ाने का पाप पूरी तरह से अस्वीकार्य और अक्षम्य है। अधिकारहीन कर दिए महिला आयोग के अध्यक्ष पद की संवैधानिक बाध्यताओं को त्याग कर अब मैं महिला सुरक्षा, न्याय और उनके अधिकारों की लड़ाई अन्य मंचों से लड़ती रहूंगी।
प्रेस कांफ्रेंस में घोषणा करते हुए कांग्रेस विधायक, पूर्व मंत्री शोभा ओझा ने कहा कि आप सभी जानते ही हैं कि महिलाओं के साथ हो रहे दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म, हत्या, अत्याचार, अपहरण, महिला तस्करी खरीद-फरोख्त, ब्लैकमेल, मारपीट, दहेज प्रताड़ना, नाबालिग बच्चियों के विरुद्ध अपराध और घरेलू हिंसा के मामलों में मध्यप्रदेश देश के अव्वल राज्य है। प्रदेश सरकार नारी सुरक्षा के नाम पर समय-समय पर ‘बेटी बचाओ’ जैसे निरर्थक जुमले और खोखले नारे उछालने के साथ ही दिखावटी कदम भी उठाती रहती है। पर, वस्तुस्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि नारी सुरक्षा जैसे गंभीर मामले में प्रदेश सरकार, उसका प्रशासन और राज्य का पुलिस तंत्र न केवल असंवेदनशील और लापरवाह है, बल्कि पूरी तरह से नाकारा और निष्ठुर भी सिद्ध हो रहा है। प्रतिवर्ष आने वाली एनसीआरबी ((National Crime Records Bureau) की रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती रहती है।
शोभा ओझा ने कहा कि महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार, छेड़छाड़ और दुष्कर्म की घटनाओं के कई ऐसे मामले उजागर हुए हैं जब सत्ताधारी भाजपा के नेताओं, विधायकों और यहां तक कि मंत्रियों के परिवारजनों और रिश्तेदारों के नाम भी सामने आए हैं। भाजपा नेताओं और अपराधियों के संबंधों के सामने आने के बाद अधिकांश मामलों में पुलिस का पीडिता के असहयोगात्मक और निष्ठुर व्यवहार समय-समय पर पुलिस कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े करता रहा है। लेकिन, ऐसे मौकों पर सरकार के साथ ही गृहमंत्री और मुख्यमंत्री की रहस्यमय चुप्पी, नारी सुरक्षा के नाम पर किए उनके वादों का मखौल उड़ाती रही है।
अधिनियम-1995 की धारा-3 के तहत राज्य महिला आयोग जो महिलाओं के शुभचिंतक, परामर्शदाता, मित्र, प्रशिक्षक तथा श्रोता के रूप में कार्य करने के लिए एक संवैधानिक निकाय के रूप में गठित किया गया था। इसके पास सिविल न्यायालय के अधिकार प्राप्त है, उसकी संवैधानिक रूप से गठित वर्तमान कार्यकारिणी को राज्य सरकार ने राजनीतिक द्वेष व स्वार्थवश कानूनी पेचीदगियों में उलझाकर हजारों पीड़ित महिलाओं को न्याय से वंचित कर रखा। क्या यही शिवराजसिंह व उनकी सरकार की संवेदनशीलता है! प्रदेश के महिला आयोग के पास न्याय की गुहार लेकर पहुंची महिलाओं को अब तक न्याय से महरूम रखने का जिम्मेदार आखिर कौन है! क्या राज्य सरकार और स्वयं मुख्यमंत्री इसके दोषी नहीं हैं. उन्हें स्पष्ट करना चाहिए।
उन्होंने आरोप लगाया कि शिवराज सरकार की मनमानी का आलम यह है कि वह आयोग के नियमों की लगातार धज्जियां उड़ा रही है। आयोग के नियम/अधिनियम की धारा-09 की उपधारा-02 द्वारा शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए यह तय किया है कि राज्य महिला आयोग अपने कार्य संचालन के लिए प्रक्रिया विनियम-1988 के अनुसार बिंदु क्र. 06 से 09 तक में उल्लेखित कार्यशैली के अनुरूप आयोग में प्राप्त होने वाली शिकायतों पर दो सदस्यीय बेंच द्वारा अग्रिम कार्यवाही के संबंध में निर्णय करेगा। उसके बाद ही आयोग कार्यालय द्वारा उस आवेदन पर बेंच द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार संबंधित अधिकारी को जांच हेतु पत्र प्रेषित कर प्रतिवेदन की कार्यवाही की जाएगी।
आयोग के सदस्य सचिव शिवकुमार शर्मा द्वारा आयोग में प्राप्त आवेदनों को आवश्यक कार्यवाही के लिए संबंधित अधिकारियों को पत्राचार किया जा सकता है, तो आयोग में अध्यक्ष / सदस्यों की नियुक्ति का कोई औचित्य नहीं है। इस प्रकार का कृत्य और मनमाने तरीके से की जा रही कार्यवाही विधि सम्मत नहीं है। यह आयोग के अध्यक्ष / सदस्यों को विधि द्वारा प्रदत्त अधिकारों का पूर्णतः हनन है। यह भी दुःखद है कि फिलहाल आयोग के पास महिला अत्याचारों की लगभग 17500 शिकायतें लंबित हो चुकी है। लेकिन, सरकार की हठधर्मिता के कारण जनवरी- 2019 के बाद से महिला आयोग के सदस्यों की संयुक्त बेंच भी अब तक नहीं बैठ पाई। यह मध्यप्रदेश के लिए शर्मनाक है कि एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार औसतन 137 महिलाओं के साथ प्रतिदिन कोई न कोई अपराध घटित हो रहा है। यदि दुष्कर्म की बात करें तो पिछले वर्ष 2339 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुईं अर्थात करीब 6 महिलाएं प्रतिदिन दुष्कर्म की शिकार हुई।
सुश्री ओझा ने कहा कि मैं आपके सामने स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई मेरे लिए नई नहीं है। महिलाओं के विरुद्ध अत्याचारों के खिलाफ में वर्षों से अपनी आवाज बुलंद कर उन्हें इंसाफ दिलाने का विनम्र प्रयास करती रही हूं। मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में, महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग की चेयरपर्सन के रूप में आपने मुझे महिलाओं के हक की आवाज उठाते, उनके लिए संघर्ष करते देखा है। लिहाजा मैं भारी मन से राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे रही हूं। जिससे मैं एक अधिकारविहीन, शक्तिहीन बना दिए गए आयोग के मुखिया के दायित्व की संवैधानिक बाध्यताओं से मुक्त होकर, उन्मुक्त और खुले मन से पीड़ित, शोषित और दमित महिलाओं की व्यथा और वेदना को स्वर देने का अपना अनवरत् संघर्ष अन्य मंचों से जारी रख सकूं।