यह है नेतन की नगरिया तू देख बबुआ…

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महाराष्ट्र में आखिर एकनाथ-देवेंद्र सरकार ने बहुमत हासिल कर लिया। कांग्रेस के कई विधायक गैरहाजिर रहे या कई दूसरे विधायक, यह कोई मायने नहीं रखता। विपक्ष 99 पर अटक गया और सरकार बहुमत से 18 कदम आगे रही। विपक्ष ने नारे लगाए कि ईडी की सरकार है, तो सरकार की तरफ से खुद उपमुख्यमंत्री फडणवीस ने मुहर लगा दी कि हां ईडी की सरकार है। ईडी यानि एकनाथ-देवेंद्र की सरकार है। तो यह भी साबित हो गया कि क्रम न बिगड़े, इसलिए ही फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री बनने की हामी भर दी हो ताकि ईडी की सरकार पर कोई आंच न आए। तो सरकार ईडी की रजामंदी से ही बनी है। पर सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया।
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कभी फडणवीस मुख्यमंत्री बन अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठाना चाहते थे। पर फडणवीस अब एक पायदान नीचे गिरकर उपमुख्यमंत्री पर अटके, तो अजीत पवार सरकारी रिंग से बाहर उछलकर नेता प्रतिपक्ष के ओहदे पर टिक गए। पर अब सरकार-विपक्ष की ट्यूनिंग बेहतर रहेगी। इसी बीच शरद पवार ने फिर नया जुमला छोड़ दिया है कि शिंदे सरकार की उम्र छह माह नहीं करेगी पार। अब पवार ने पहले फडणवीस के शपथ लेने और खुद पवार के भतीजे पर कुदृष्टि डालने के बाद यह घोषणा कर दी थी कि सरकार नहीं बन पाएगी, तो सरकार नहीं बना पाए थे फडणवीस। फिर जब ढाई साल बाद हवा बदली, तब पवार ने मास्टर स्ट्रोक जड़ा कि शिंदे को सीएम बना दिया जाए। बात वहीं पहुंच गई और शिंदे सीएम बन गए।
बेचारे फडणवीस को शाह-नड्डा ने डिप्टी बनने का फरमान सुनाकर पीछे धकेल दिया। पर पवार की बात सौ आने सच साबित हुई। अब पवार ने ईडी सरकार की उम्र छह माह घोषित कर यह बताया है कि फडणवीस अपमान का घूंट इससे ज्यादा समय तक नहीं पी पाएंगे। वैसे महाराष्ट्र की राजनीति गुटर-गु स्टाइल में ही पींगें भर रही है। कबूतर जा-जा-जा, कबूतर जा-जा-जा, मेरे प्यार की पहली चिट्ठी साजन को पहुंचा। फडणवीस का राज प्रेम चिट्ठी स्टाइल में ही आगे बढ़ गया है। चिट्ठी भेजने की जगह फडणवीस खुद ही राज साहब के दरबार में हाजिर होने का ऐलान कर दिए हैं। उधर शिंदे हैं कि बालासाहेब और दिघे के शिवसैनिक बनकर पूरा आनंद उठा रहे हैं। उद्धव से तो मानो जैसे कोई नाता ही न रहा हो। महाराष्ट्र सरकार रंगमंच बना दिख रहा है। जहां प्रेम, रोमांस, सस्पेंस, इमोशंस, एक्शन, डांस, मस्ती के साथ-साथ बेहतरीन डायलॉग डिलीवरी का तड़का लगने से फिल्म सुपरहिट हो गई है। जिसमें सुपर एक्टर बने शरद पवार की डिमांड सबसे ज्यादा है।
इधर मध्यप्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव के पहले चरण का प्रचार-प्रसार थम गया है। भोपाल, इंदौर, खंडवा, बुरहानपुर, ग्वालियर, जबलपुर, छिंदवाड़ा, उज्जैन, सागर, सतना, सिंगरौली नगर निगम के प्रत्याशियों की किस्मत बुधवार को ईवीएम में कैद हो जाएगी। गणेश जी किस पर कितनी कृपा करेंगे, यह बाद में पता चलेगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रचार में दिन-रात एक कर दिया तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने कोरोना होने पर भी चैन की सांस नहीं ली, मैदान में नहीं जा पाए तो कार्यालय से वर्चुअली ही प्रचार पिच पर पूरे समय बल्लेबाजी करते रहे और फिर निगेटिव रिपोर्ट थाम  मैदान में धूमधाम मचाने लगे।
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अंतिम दिन तो बाइक चला-चला हर बूथ पर कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल करने का दावा भी ठोक दिया। तो उधर नाथ ने तो घोषणा ही कर दी है कि नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव अपनी जगह हैं, पर पंद्रह माह बाद फिर एक बार कांग्रेस सरकार की वापसी है। इसलिए उन्हें कोई चिंता ही नहीं है। पंचायत-नगरीय निकाय चुनाव में नेता एक-दूसरे पर छींटाकसी करने में कोई कोताही नहीं बरत रहे। संकल्पों की बाढ़ आ गई है तो मानसूनी बारिश ने शहरों में बाढ़ सी ही ला दी है। इंद्र देवता मतदान के दिन भी कितनी मेहरबानी दिखाते हैं, यह गौर करने लायक होगा। वैसे अगर सांसद-विधायकों की सिफारिश पर अमल करने के लिए इंद्र देेेव बाध्य होते तो शायद नगरीय निकाय चुनाव के चलते बारिश के टाइमटेबल को रिशेड्यूल करने पर बहुमत की मोहर लग ही चुकी होती। और इंद्रदेव फरमान पर अमल करते हुए मध्यप्रदेश में बारिश का नया शेड्यूल जारी कर चुके होते।
खैर नेताओं के बारे में जितना लिखा जाए, उतना ही कम है। अभी यह भी वायरल हो रहा है कि पार्थ महाराष्ट्र फतह हो चुका है, अब रथ को राजस्थान लेकर चलो…। इसके बाद लोग इसमें झारखंड जोड़ने का शिगूफा भी छोड़ रहे हैं। वैसे चुनाव के समय नेताओं के तेवर अलग और चुनाव के बाद अलग…। इसीलिए यह कहकर अपनी बात को विराम देते हैं कि यह है नेतन की नगरिया, तू देख बबुआ…। हर राज्य, नगर पर टिकी है नेतन की नजर बबुआ…।