हंगामा हैै क्यों बरपा (Why Is There A Ruckus)…!
जब से राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम घोषित हुए हैं, तब से हंगामा बरपा है। देश के अन्य राज्यों सहित मध्यप्रदेश भी इसमें शामिल है। मध्यप्रदेश में यह सभी को पता है कि हंगामा क्यों बरपा है? हंगामा इसलिए बरपा है कि ह्रदयप्रदेश में यूपीए के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को कुल 79 वोट मिले हैं, जबकि एनडीए की राष्ट्रपति प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को 146 वोट मिले हैं। यही बात हंगामे की मूल जड़ है। दलीय गणित के हिसाब से 19 ज्यादा वोट एनडीए प्रत्याशी के खाते में जमा हुए हैं। पांच मत निरस्त हुए हैं। किसका मत निरस्त हुआ है, उसकी चिंता किसी को नहीं है।
चिंता इस बात की है कि क्रॉस वोटिंग करने वालों में कांग्रेसी विधायक कौन-कौन हैं? क्या कांग्रेस की किस्मत में बस यही है कि पार्टी की सीमा रेखा को क्रॉस करने का जब भी मौका मिले, तब क्रॉस कर दूसरे पाले में खड़े दिखाई दो। और इससे यह साबित हो गया है कि वोट की अपील करने आए यूपीए प्रत्याशी यशवंत सिन्हा की चिंता वाजिब ही थी कि हॉर्स ट्रेडिंग का प्रयास है। पर बात अब “अंतरात्मा की आवाज” पर टिक गई है। और “अंतरात्मा” से आगे बढ़कर “आदिवासी हितैषी” और “आदिवासी विरोधी” मानसिकता तक खिंच गई है। यह लकीर 2023 विधानसभा पर जाकर अटक रही है कि आखिर वह कौन है जो “अंतरात्मा की आवाज” पर राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी आदिवासी महिला को वोट देने का विरोधी है।
और मध्यप्रदेश की बीस फीसदी से ज्यादा आदिवासी जनसंख्या का विधानसभा की 47 सीटों पर प्रतिनिधित्व है। ऐसे में क्या यह 47 सीटों की आदिवासी जनता 2023 के विधानसभा चुनाव में “आदिवासी विरोधी” इस सोच पर जवाब देने को तैयार है? तो फिर क्या क्रॉस वोटिंग पर कांग्रेस को अपने दल के विधायकों की पार्टी निष्ठा से अलग जाने पर उंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं है? या फिर यह विधायक अगले विधानसभा चुनाव में भगवा रंग ओढ़कर मैदान में नजर आएंगे, यह भी तय हो चुका है। ऐसे में कांग्रेस का 2023 में सत्ता वापसी का दावा क्या अपने ऐसे ही विधायकों पर भरोसे पर टिका था? फिर कांग्रेस कहां-कहां तक धोखा खाएगी। घात भी हो रहा है और आदिवासी विरोधी घेराबंदी भी यानि मार भी खानी पड़ रही और दर्द भी बयां नहीं कर पा रहे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुकेश नायक की प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने अंतरात्मा की आवाज सुनने वाले विधायकों को चिन्हित करने की बात कही है, तो इन्हें आस्तीन का सांप तक कह डाला। यह भी कहा कि इनको चिन्हित करके पार्टी से बाहर करना चाहिए। नायक का आरोप है कि क्रॉस वोटिंग के लिए पैसों का बड़ा खेल हुआ है। मांग की है कि जिन विधायकों ने घात लगाकर पार्टी के साथ धोखा किया है उनको बख़्शा नहीं जाना चाहिए। तो कृषि मंत्री कमल पटेल ने इन विधायकों के भाजपा में आने पर स्वागत की बात कही है। पर कांग्रेस को तो हर तरफ से मुंह की खानी पड़ रही है। अकेले कमलनाथ मध्यप्रदेश में कांग्रेस का भविष्य संवारने में कैसे कामयाब हो पाएंगे, सबसे बड़ा सवाल यह है।
आज अंतरात्मा की आवाज पर “क्रॉस वोटिंग”, तो कल अंतरात्मा की आवाज पर विचारधारा में परिवर्तन और परसों मैदान में भाजपा का दामन थामकर आदिवासी हितैषी के दावे के साथ चुनने की मतदाता से अपील। अब तो चुनाव में पंद्रह महीने ही बचे हैं। खास बात है कि राष्ट्रपति चुनाव में मतदान के आधार पर विधायकों की सदस्यता खत्म करने की अपील भी नहीं की जा सकती है। तो भाजपा आनंद का उत्सव मना रही है। शिवराज सिंह चौहान की खुशी जाहिर है। उन्होंने कहा है कि आप देखिए! मध्यप्रदेश में वैसे भी दलों की सीमाओं से उठकर भारतीय जनता पार्टी के अलावा भी कई विधायक मित्रों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर द्रौपदी मुर्मू जी को वोट दिया है। मैं सारे विधायक साथियों को जो बीजेपी के नहीं है लेकिन मुर्मू जी को वोट किया है उनका भी आभार व्यक्त करता हूं। हृदय से धन्यवाद देता हूं।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ पर हमला बोला है कि अंतरात्मा की आवाज पर मतदान का विरोध करने वाले विधायकों का विरोध करना क्या उनकी आदिवासी विरोधी मानसिकता है। बताएं कि वह आदिवासी हितैषी हैं या आदिवासी विरोधी? पर नाथ बोलें भले ही कुछ न, लेकिन हर घटना पर बारीकी से नजर तो रखे ही होंगे। सही समय पर क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों का हिसाब भी करेंगे और उनका पक्ष लेने वालों का भी। पर 2023 के लिए आखिर किस-किस का मुकाबला करने की तैयारी करें वह। अपने विधायकों की बगावत का, चुनौती बनने आ रही आम आदमी पार्टी का या ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन या एआईएमआईएम का और फिर सबसे बड़ी चुनौती भाजपा तो सामने है ही। ओवैसी ने बुरहानपुर और आम आदमी पार्टी ने सिंगरौली में ट्रेलर दिखा दिया है। दोनों की निगाहें कांग्रेस पर घात करने की ही हैं। फिर दुनिया की सबसे बड़ी पॉलिटिकल पार्टी भाजपा तो सरकार बनाने के बाद भी सरकार चलाने की मोहलत नहीं देती। एक अकेली कांग्रेस और नाथ… और सामने आघात ही आघात।
सवाल यह है कि “अंतरात्मा” की आवाज का दायरा बड़ा है। तेरह राज्य असम, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, मेघालय, हरियाणा, गोवा, अरुणाचल प्रदेश में क्रॉस वोटिंग हुई है। कहीं आदिवासी प्रेम जागा है, तो कहीं सिन्हा की उम्मीदवारी के विरोध में द्रौपदी प्रेम जागा है, तो कहीं दूसरे फैक्टर भी हो सकते हैं। पर यह बात गले के नीचे नहीं उतरती कि खाली जीत का अंतर बढ़ाने के लिए खरीद जैसा खेल खेला जाए और यह बात भी बेमानी लगती है कि राष्ट्रपति चुनाव के संवैधानिक अधिकार के लिए कोई जनप्रतिनिधि खुद को बेचने पर उतारू होने तक गिर जाए। तो 64 फीसदी मत पाकर देश की 15 वीं राष्ट्रपति चुनीं गईं मुर्मू को अंतरात्मा संग बहुत बधाई और स्वस्थ लोकतंत्र में हार तय में भी विपक्ष के उम्मीदवार बने देश के वरिष्ठतम राजनेताओं में शुमार यशवंत सिन्हा को भी बहुत साधुवाद। और एक नजर अकबर इलाहाबादी की मशहूर गजल की शुरुआत पर, जिसे गुलाम अली की आवाज ने सबकी जुबां पर लाया था। इसके बोल हैं हंगामा है क्यों बरपा…। क्रॉस वोटिंग के बाद के हालातों को थोड़ा फेरबदल के साथ यह लिखा जा सकता है कि “हंगामा है क्यों बरपा, मुर्मू को वोट जो दी है…डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है। ना तज़ुर्बाकारी से, वाइज़ की ये बातें है,इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी की है। हंगामा है क्यों बरपा…।