Law & Justice: गर्भ समापन कानून और महिलाओं के अधिकार

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हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भ के चिकित्सकीय समापन के अधिकार से वंचित किए जाने का कोई आधार नहीं है। अन्य श्रेणी की महिलाओं को यह अधिकार प्राप्त हैं। न्यायालय ने एक अविवाहित महिला को चौबीस सप्ताह की अवधि के गर्भपात की अनुमति प्रदान की। उस महिला का गर्भ परस्पर सहमति से बने रिश्ते से ठहरा था। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अधिनियम की धारा 3 (2) के स्पष्टीकरण में ‘पति’ शब्द को ‘साथी’ शब्द के साथ प्रतिस्थापित किया। यह स्पष्टीकरण एक ऐसी स्थिति पर विचार करता है जिसमें अवांछित गर्भावस्था शामिल होती है, जो किसी महिला अथवा उसके साथी द्वारा बच्चों की संख्या को सीमित करने या गर्भावस्था को रोकने के उद्देश्य से उपयोग किए जाने वाले किसी उपकरण अथवा विधि की विफलता के परिणाम स्वरूप होती है। संसदीय मंशा स्पष्ट रूप से इस अधिनियम के लाभकारी प्रावधानों को केवल वैवाहिक संबंध से जुड़ी स्थिति तक सीमित रखना नहीं है। एक 25 वर्षीय महिला को राहत देने के लिए यह फैसला दिया गया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी एक ऐसी महिला के गर्भ का चिकित्सकीय समापन करने की अनुमति दी है, जिसने गर्भ के 22 सप्ताह पूरे कर लिए थे। उक्त भ्रूण कई असामान्यताओं से पीड़ित था।

गर्भावधि का आशय गर्भधारण के समय से जन्म तक भ्रूण के विकास काल से है। भारत में गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम के तहत गर्भपात की अनुमति के लिए गर्भधारण की अधिकतम अवधि 20 सप्ताह निर्धारित की गई है। इसके बाद भ्रूण का गर्भपात वैधानिक रूप से अस्वीकार्य है। गर्भ के चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 को सुरक्षित गर्भपात के संबंध में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण पारित किया गया। प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक आम नागरिकों की पहुंच प्रदान करने के एक ऐतिहासिक कदम में भारत ने व्यापक गर्भपात देखभाल प्रदान करके महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाने के लिए इस अधिनियम में 1971 में संशोधन किया गया। नए गर्भ के चिकित्सकीय समापन (संशोधन) अधिनियम 2021 को व्यापक देखभाल के लिये एवं सबकी पहुंच सुनिश्चित करने हेतु चिकित्सकीय, उपचारात्मक, मानवीय अथवा सामाजिक आधार पर सुरक्षित और वैध गर्भपात सेवाओं का विस्तार करने हेतु लाया गया है।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को कानूनी तौर पर मंजूरी देने वाले पांच दशक पुराने ऐतिहासिक रो बनाम वेड फैसले को पलट दिया है। ऐसे में अब अमेरिकी महिलाओं के लिए गर्भपात के हक का कानूनी दर्जा खत्म हो जाएगा। हालांकि राहत की बात यह है कि अमेरिका के सभी राज्य गर्भपात को लेकर अपने-अपने अलग नियम बना सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान गर्भपात का अधिकार प्रदान नहीं करता है। उन्होंने यह भी बताया कि गर्भपात को विनियमित करने का अधिकार लोगों और उनके चुने हुए प्रतिनिधियों को वापस कर दिया गया है। बहुमत से लिए गए फैसले को सुनाते हुए न्यायमूर्ति सैमुअल अलिटो ने कहा कि गर्भपात एक गहरा नैतिक मुद्दा प्रस्तुत करता है, जिस पर अमेरिकी तीव्र परस्पर विरोधी विचार रखते हैं। संविधान प्रत्येक राज्य के नागरिकों को गर्भपात को विनियमित करने या प्रतिबंधित करने से प्रतिबंधित नहीं करता।
गर्भ के चिकित्सकीय समापन संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधानों में अधिनियम के तहत गर्भनिरोधक विधि या उपकरण की विफलता के मामले में यह प्रावधान है कि एक विवाहित महिला द्वारा 20 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त किया जा सकता है। यह विधेयक अविवाहित महिलाओं को भी गर्भनिरोधक विधि या डिवाइस की विफलता के कारण गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है। लेकिन गर्भ की समाप्ति के लिये चिकित्सकों से राय लेना आवश्यक है। गर्भधारण से 20 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिये एक पंजीकृत चिकित्सक की राय की आवश्यकता होती है। गर्भधारण के 20-24 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिये दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय आवष्यक होगी। भ्रूण से संबंधित गंभीर असामान्यता के मामले में 24 सप्ताह के बाद गर्भ की समाप्ति के लिए राज्य-स्तरीय मेडिकल बोर्ड की राय लेना आवष्यक होगा। महिलाओं की विशेष श्रेणियों (इसमें दुष्कर्म तथा अनाचार से पीड़ित महिलाओं तथा अन्य कमजोर महिलाओं जैसे दिव्यांग महिलाएं और नाबालिग आदि) के लिए गर्भकाल अवधि की सीमा 20 से 24 सप्ताह करने का प्रावधान किया गया है। इसमें यह भी प्रावधान है कि गर्भ को समाप्त करने वाली किसी महिला का नाम और अन्य विवरण, वर्तमान कानून में अधिकृत व्यक्ति को छोड़कर किसी के भी समक्ष प्रकट नहीं किए जाएगें।
नया कानून सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा तथा रोकथाम योग्य मातृ मृत्यु दर को समाप्त करने में महत्वपूर्ण साबित होगा। इसका लक्ष्य क्रमांक 3.1 मातृ मृत्यु अनुपात को कम करने से संबंधित है। जबकि लक्ष्य क्रमांक 3.7 और 5.6 यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा अधिकारों तक सार्वभौमिक पहुंच से संबंधित है। यह संशोधन सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक महिलाओं के दायरे और पहुंच को बढ़ाएगा। साथ ही उन महिलाओं के लिये गरिमा, स्वायत्तता, गोपनीयता एवं न्याय को भी सुनिष्चित करेगा जिन्हें गर्भावस्था को समाप्त करने की आवष्यकता है। सतत विकास लक्ष्य सभी के स्वस्थ जीवन स्तर में सुधार लाने से संबंधित है। इन लक्ष्यों को सन् 2015 में संयुक्त राष्ट्र ने सन् 2016 से सन् 2030 तक के लिए स्वीकार किया गया है।
गर्भपात से संबंधित भिन्न-भिन्न मुद्दों पर विचार आवश्यक है। इस पर एक राय यह है कि गर्भावस्था को समाप्त करना गर्भवती महिला की पसंद और उसके प्रजनन अधिकारों का हिस्सा है। दूसरी राय यह है कि राज्य का दायित्व है कि वह जीवन की रक्षा करें और इसलिए उसे भ्रूण को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। विश्व के देशों ने भ्रूण के स्वास्थ्य और गर्भवती महिला के लिये जोखिम के आधार पर गर्भपात की अनुमति देने हेतु अलग-अलग शर्तें और समय सीमाएं निर्धारित की हैं। अधिनियम 24 सप्ताह के बाद गर्भपात की अनुमति केवल उन मामलों में देता है जहां एक मेडिकल बोर्ड पर्याप्त भ्रूण असामान्यताओं का निदान करता है। बलात्कार के कारण गर्भपात की 24 सप्ताह से अधिक समय वाले मामले में न्यायालय के समक्ष संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत याचिका ही एकमात्र उपाय है।
अधिनियम में केवल स्त्री रोग या प्रसूति में विशेषज्ञता वाले डॉक्टरों द्वारा गर्भपात कराए जाने का प्रावधान है। भारत में चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऐसे डाॅक्टरों की कमी है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात के लिए सुविधाओं तक पहुंचना एक कठिन कार्य है। इस बात की सराहना की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार ने विविध संस्कृतियों, परंपराओं और विचारों के समूहों को संतुलित करते हुए साहसिक कदम उठाया है। हालांकि, संशोधन में अभी भी महिलाओं को विभिन्न शर्तों के साथ छोड़ दिया गया है जो कई मामलों में सुरक्षित गर्भपात तक पहुंच में बाधा बन सकता है। न्यायमूर्ति केएस पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ और अन्य मामले में न्यायालय ने प्रजनन संबंधी विकल्प को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में महिलाओं के संवैधानिक अधिकार को मान्यता दी है।
राज्यसभा ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 में संशोधन करने के उद्देश्य से 16 मार्च 2021 को गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक, 2021 को मंजूरी दे दी। इस विधेयक को लोकसभा द्वारा 17 मार्च 2020 को मंजूरी दी गई। भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है अगर कोई गर्भवती स्त्री स्वेच्छा से गर्भपात कराती है और यदि ऐसा उस स्त्री का जीवन बचाने के लिए आवश्यक नहीं है तब यह एक अपराध होगा। अपराधी को 3 साल के कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडनीय है। भारत में भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत स्वेच्छा से गर्भपात करना फौजदारी अपराध माना जाता है। गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 आईपीसी के अपवाद के रूप में काम करता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत गर्भ का चिकित्सीय समापन कुछ परिस्थितियों में कराया जा सकता है। गर्भ के चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 में गर्भ के चिकित्सीय समापन की कोई परिभाषा या अर्थ नहीं दिया गया है। लेकिन, गर्भ के चिकित्सीय समापन संशोधन, 2020 अनुसार ‘गर्भ के चिकित्सीय समापन का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसमें गर्भ का मेडिकल और सर्जिकल माध्यम से समापन किया जाता है।’
गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 अनुसार कोई गर्भ राष्ट्रीय कृत चिकित्सा व्यवसाई द्वारा समाप्त किया सकता है, जहां गर्भ 12 सप्ताह से अधिक का न हो, जहां गर्भ 12 सप्ताह से अधिक का हो किन्तु 20 सप्ताह से अधिक का न हो, वहां यदि दो से पंजीकृत चिकित्सा व्यावसायियों ने सद्धापूर्वक यह राय कायम की हो कि गर्भ के बने रहने से गर्भवती स्त्री का जीवन जोखिम में होना, उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति की जोखिम होना अथवा बच्चा पैदा होने की स्थिति में शारीरिक या मानसिक अप्रसामान्यताओं से पीड़ित होना अथवा गंभीर रूप से विकलांग होने की दषा में गर्भ पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा समाप्त किया जा सकेगा। किसी गर्भ के बारे में गर्भवती स्त्री द्वारा यह अभिकथन किया जाए कि वह बलात्संग द्वारा हुआ तो ऐसे गर्भ के बारे में यह उपधारणा की जाएगी कि वह गर्भवती स्त्री के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति है।
यह विधेयक महिलाओं की सुरक्षा एवं कल्याण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे कई महिलाएं लाभान्वित होंगी। हाल ही में विभिन्न महिलाओं की ओर से भ्रूण की असामान्यताओं अथवा यौन हिंसा के कारण हुए गर्भधारण के तर्क के आधार पर गर्भ काल की वर्तमान मान्य सीमा से परे जाकर गर्भपात की अनुमति के लिए न्यायालयों में कई याचिकाएं प्रस्तुत हुई है। इन संशोधनों से सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक महिलाओं के दायरे एवं पहुंच में वृद्धि होगी। साथ ही ये ऐसी महिलाओं के लिए गरिमा, स्वायत्तता, गोपनीयता और न्याय सुनिश्चित करेगा, जिन्हें गर्भ को समाप्त करने की जरूरत है।