Flash Back: पदस्थापना का अंतिम सुखद कालखंड और सेवानिवृत्ति का स्वतंत्र संसार!

जम्मू कश्मीर के स्पेशल DG CRPF के कठिन, हिंसक एवं संघर्षमय कार्यकाल के बाद मैंने दिनांक 25 अक्टूबर, 2010 को नई दिल्ली में डायरेक्टर NCRB, गृह मंत्रालय के पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया। यह मेरे सेवाकाल की अंतिम तथा नई दिल्ली में प्रथम पदस्थापना थी।यद्यपि नियमानुसार कश्मीर पदस्थापना के समय मुझे नई दिल्ली में सत्य मार्ग, चाणक्यपुरी में सरकारी बंगला मिल गया था परंतु अब मैं वस्तुतः उसमें तथा नई दिल्ली की शासकीय संस्कृति का भाग बन गया था। मेरे बंगले के पास ही बहुत बड़ा और सुंदर नेहरू पार्क था जहाँ सुबह मेरे ब्रिस्क वॉक करने की सुविधा थी।मेरा कार्यालय आर के पुरम में था जो मेरे निवास के बहुत पास था। भव्य शासकीय भवनों, फ़ाइव स्टार होटलों तथा ल्युटियन दिल्ली की शानदार सड़कों और घनी हरियाली के बीच यह अपना एक अलग संसार था।

NCRB का मुख्य कार्य पूरे भारत के अपराध और अपराधियों की जानकारी रखना है जो पुलिस का मूलभूत कार्य है।भारत के सभी राज्यों से एकत्र किए गए अपराधियों के फिंगरप्रिंट भी यहीं रहते हैं। जघन्य अपराधों के अनुसंधान, गुमशुदा व्यक्तियों और बच्चों की तलाश तथा अनजान मृतक लोगों की पहचान आदि में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। विदेशों से आए युवा पुलिस अधिकारियों को फॉरेंसिक साइंस का प्रशिक्षण देने का संवेदनशील कार्य भी है। फिंगर प्रिंट के कार्य की गुणवत्ता एवं उपयोगिता बढ़ाने के लिए भोपाल में 38 राज्य/UT की ऑल इंडिया कांफ्रेंस आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता मैंने भोपाल आकर की।

NCRB के सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र इसके द्वारा एक महत्वपूर्ण प्रतिवर्ष ‘क्राइम इन इंडिया’ का श्रमसाध्य प्रकाशन है जिसमें भारत के सभी प्रकार के अपराध संबंधी आंकड़े तथा विश्लेषण दिये जाते हैं। इन आंकड़ों के आधार पर न केवल समाजशास्त्री और पुलिस प्रशासक अपनी नीतियों का निर्धारण करते हैं बल्कि भारत की संसद और देश की विधानसभाओं में इसके आंकड़ों पर बहुत ज़ोरदार बहस होती हैं। 2010 की ‘क्राइम इन इंडिया’ पुस्तक के प्रकाशन के बाद इसका विधिवत लोकार्पण तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम द्वारा किया गया।इसको लेकर अनेक राष्ट्रीय TV और प्रिंट मीडिया लगातार मेरे पास आते रहते थे और उन्हें बहुत सधी हुई जानकारी देनी पड़ती थी।

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NCRB में 2000 करोड़ रुपये की CCTNS (Crime and Criminal Tracking and Networks) योजना का चुनौतीपूर्ण कार्य था।इस योजना के अन्तर्गत भारत के सभी पुलिस स्टेशनों का समस्त कार्य कंप्यूटर नेटवर्क पर करने के लिए सॉफ़्टवेयर डेवलप करना तथा साथ ही उपकरण एवं प्रशिक्षण भी प्रदान करना था। भारत के सभी अपराध, अपराधियों की FIR, विवेचना और फिंगर प्रिंट आदि को एक स्थान पर एकत्र करना तथा संभावित अपराधी का तुरंत सुझाव देना इसका उद्देश्य था।मेरे कार्यालय में विप्रो सॉफ़्टवेयर कम्पनी के लगभग 30 कर्मचारी बैठकर सॉफ़्टवेयर निर्माण का कार्य करते थे तथा कंसल्टेंट कम्पनी PWC इस योजना के पर्यवेक्षण में मेरी सहायता करती थी।इस योजना के लिए मुझे अक्सर गृह मंत्रालय की बैठकों में नॉर्थ ब्लॉक जाना पड़ता था। अपने स्तर पर मुझे भारत के सभी राज्यों के स्टेट क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठकें बुलानी पड़ती थी। मुझे गृह मंत्री तथा सचिव के साथ संसदीय समिति के समक्ष उपस्थित होना पड़ा जहाँ सदस्य सांसदों ने बहुत ही आक्रामक प्रश्न किये।

अमेरिका के FBI सेमिनार से लौट कर मुझे फिर दुबारा अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी (गृह मंत्रालय) द्वारा आमंत्रित किए जाने पर भारत के दल का नेतृत्व कर वहाँ जाना था। अमेरिका में अपराधियों का कंप्यूटरीकृत रिकॉर्ड उच्च तकनीक से बहुत ही व्यवस्थित रखा जाता है और वे अपना कौशल हमें बताना चाहते थे। कुछ ही दिनों पूर्व मैं लखनऊ अपनी अम्मा का स्वास्थ्य देखने गया था। अमेरिका से लौटते ही पुनः इस दूसरी यात्रा पर जाने के पूर्व दिनांक 7 मई, 2011 को मुझे अपनी अम्मा के निधन का दुखद समाचार मिला।मुझे उनसे बहुत लगाव था। लखनऊ की सुबह की पहली फ़्लाइट में बैठने से पहले मैं मैक्स हॉस्पिटल, साकेत अपनी निर्धारित ट्रेडमिल की सामान्य जाँच के लिए गया तो मेरी माँ के निधन का सुन कर डॉक्टर ने जाँच करना अस्वीकार कर दिया।

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लखनऊ पहुँच कर मैं अंतिम संस्कार में बहुत उद्वेलित मन से सम्मिलित हुआ। परंपरा के साथ आधुनिक विचारों वाली मेरी अम्मा ने पहले से ही कह रखा था कि उनकी तेरहवीं केवल तीन दिन में ही कर दी जाए जिससे किसी का भी अनावश्यक कोई कार्य न रुके। संयोगवश इसी कारण मैं भारी मन से 14 मई को अपने दल के चार सदस्यों के साथ अमेरिका रवाना हो सका। वाशिंगटन में हमें प्रतिष्ठित रिट्ज़ कार्लटन होटल में ठहराया गया और वहाँ अनेक वरिष्ठों से हमारी चर्चा हुई जिसमें अमेरिका की उप गृह मंत्री भी थी।हम लोग वेस्ट वर्जीनिया राज्य की सुरम्य पहाड़ियों के बीच में बने क्रिमिनल जस्टिस इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ डिवीज़न, क्लार्क्सबर्ग गए जहाँ पर पूरे अमेरिका के अपराधियों का रिकॉर्ड कम्प्यूटर में रखा जाता है।फुटबॉल फ़ील्ड के बराबर उनके बेसमेंट में डाटा सर्वरों का जाल फैला था।यह रिकॉर्ड अपराधों की गुत्थी सुलझाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। वाशिंगटन पहुँच कर हम लोग वर्जीनिया की राजधानी रिचमंड गए और वहाँ पर हमने पुलिस द्वारा कंप्यूटरीकृत जानकारी के व्यावहारिक उपयोग को देखा। पुनः वाशिंगटन लौटने पर भारत की राजदूत श्रीमती मीरा शंकर ने हम लोगों को दूतावास में विशेष रूप से आमंत्रित किया। भारत लौटते समय मैं न्यू जर्सी से अपने कुछ स्थानीय मित्रों के साथ 4 सौ किलोमीटर दूर स्थित अटलांटिक सिटी गया जो अमेरिका के पूर्वी तट पर कैसीनों का बड़ा केंद्र है। वहाँ पर राष्ट्रपति ट्रंप के होटल ताज महल में रात्रि विश्राम का मुझे अवसर मिला।

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मुझे भारत सरकार द्वारा दिल्ली के सभी केन्द्रीय कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी को प्रोत्साहन देने के लिए मुख्य समन्वयक नियुक्त किया गया था। सितंबर में हिंदी पखवाड़े में एक दिन दिल्ली के सभी कार्यालयों के नोडल अधिकारियों की कार्यशाला आयोजित की और उन्हें शासकीय नीति के अनुरूप राजभाषा हिन्दी का अन्य कार्यों के साथ ही साथ तकनीकी कार्यों में भी अधिकाधिक प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया।

CCTNS का सॉफ़्टवेयर बन जाने के बाद उसके पायलट प्रोजेक्ट के लिए तीन राज्यों का चयन किया जाना था। मैंने केरल, आसाम और उत्तर प्रदेश का चयन किया जो भूगोल और भाषा की दृष्टि से तर्क संगत था। मैंने इन सभी राज्यों का भ्रमण किया। इन प्रत्येक राज्यों में तीन-तीन थानों में योजना का परीक्षण किया जाना था। उत्तर प्रदेश में मैंने नोएडा, लखनऊ तथा गोरखपुर ग्रामीण के तीन थानों का चयन किया। लखनऊ में इसके हज़रतगंज थाने में संचालन के उद्घाटन के समय वहाँ के पुलिस महानिदेशक और मेरे पूर्व परिचित श्री बृजलाल भी उपस्थित हुए। मैंने तकनीकी रूप से पिछड़े राज्यों बिहार, झारखंड और त्रिपुरा की यात्राएं की और वहाँ कार्य के साथ दर्शनीय स्थल भी देखे। मुझे 31 अगस्त को सेवानिवृत्त होना था परन्तु अचानक मुझे सूचना मिली कि मेरा कार्यकाल गृहमंत्री द्वारा तीन महीने के लिए इस योजना के लिए बढ़ा दिया गया है। इस बढ़ी हुई अवधि के कारण मैं भारत के राज्यों और केन्द्र सरकार के पुलिस महानिदेशकों की वार्षिक कॉन्फ़्रेन्स में भाग ले सका। इस कांफ्रेन्स में दो दिवसीय विचार विमर्श के साथ ही एक संध्या प्रधानमंत्री निवास पर श्री मनमोहन सिंह के साथ हाई टी तथा दूसरी संध्या को राष्ट्रपति भवन में श्रीमती प्रतिभा पाटिल के साथ डिनर का अवसर मिला। इस अवसर पर औपचारिक फ़ोटो भी खींची गई जो विशेष रूप से मेरे पास सुसज्जित है।

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इस कार्यकाल में नई दिल्ली में राजपथ से 26 जनवरी, लाल क़िले की प्राचीर से 15 अगस्त सहित अनेक शासकीय कार्यक्रमों को निकट से देखने का अवसर मिला। सभी केंद्रीय पुलिस संगठनों के भव्य कार्यक्रमों में सम्मिलित होने का अवसर मिला। दिल्ली के प्रतिष्ठित क्लब , सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थानों में जाने का अवसर भी मिला। भारत सरकार के अनेक विभागों तथा संसद की कार्यप्रणाली को निकट से देखने का अनुभव भी हुआ।

30 नवंबर, 2011 को मैं सेवानिवृत्त हो गया। सेवा के बंधन से मुक्त होकर कुछ ही दिनों बाद नई दिल्ली से ही मैं लक्ष्मी तथा अपने कुछ मित्रों के साथ पंछी की तरह उड़ता हुआ इंडोनेशिया के सुन्दर द्वीप बाली जा पहुँचा। मेरे जीवन का एक सुखद एवं स्वच्छंद काल खंड मेरी प्रतीक्षा कर रहा था।

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एन. के. त्रिपाठी

एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।

वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।