Change Will Come Like This : किसी को तो फ़िक्र है, सूरत बदलना चाहिए!

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Change Will Come Like This : किसी को तो फ़िक्र है, सूरत बदलना चाहिए!

– जय नागड़ा की खास रिपोर्ट

Khandwa : देश में स्वाधीनता आंदोलन के स्मारकों के प्रति भले जिला प्रशासन गंभीर न हो, लेकिन शहर की नवनिर्वाचित महापौर अमृता यादव ने दिखा दिया कि वे ऐसी महत्वपूर्ण बातों को अनदेखा नहीं करेंगी। आज़ादी के अमृत महोत्सव को लेकर स्थानीय विषयों को महत्व देकर महापौर ने यह स्पष्ट संकेत दे दिए है कि उन्हें सिर्फ सतही कार्यों से सरोकार नहीं है। वे तमाशों में विश्वास नहीं रखती न प्रचार -प्रसार में! बल्कि वे कुछ सार्थक कार्यो से सरोकार रखती है।

खंडवा में स्वाधीनता आंदोलन की शुरुआत 1अप्रैल 1930 को खंडवा के घंटाघर चौक से हुई थी। यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने यहां ऐतिहासिक सभा को संबोधित करते हुए स्वतंत्रता का अलख जगाया था। स्वतंत्रता की 40 वीं वर्षगांठ पर यहां ऐतिहासिक मिट्टी संग्रह कार्यक्रम के तहत 7अगस्त 1987 को यह स्मारक बनाया गया था। इस स्मारक की दुर्दशा को लेकर मैंने एक पोस्ट सोशल मीडिया पर प्रेषित की इस उद्देश्य से कि स्वाधीनता दिवस के पूर्व ही कोई इसकी सुध ले ले। चारो तरफ से अतिक्रमणो से घिरे इस स्मारक को आसपास के ठेले वालों ने गंदगी से सराबोर कर रखा था। जूठी प्लेट और बर्तन रखे जा रहे थे , लेकिन इसकी कोई सुध लेने वाला नहीं था।

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मेरी इस पोस्ट को सुधिजनो ने तो बहुत गंभीरता से लिया और उसकी तीव्र प्रतिक्रियाएं भी आई। मेरे बहुत से मित्रों ने इस पोस्ट को शेयर भी किया जिसमें राजेश बादल जी जैसे प्रखर पत्रकार भी शामिल है, जिनके माध्यम से यह पोस्ट देश भर के महत्वपूर्ण लोगों तक पहुंची। हैरानी की बात यह रही कि यह पोस्ट जिला प्रशासन के संज्ञान में आने के बावज़ूद उसने इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किए।

यही बात जब महापौर अमृता यादव के संज्ञान में आई तो उन्होंने रविवार को छुट्टी के बावजूद इसे तत्काल अतिक्रमण मुक्त कर साफ़ -सफ़ाई के निर्देश दिए। रात्रि में ही न केवल इस जगह की सफाई हो गई, बल्कि इस पर विशेष तौर पर रौशनी भी की गई जिससे आम नागरिकों का ध्यान इस महत्वपूर्ण स्मारक की और जा सके। यह कार्य होने के बाद उन्होंने मुझे वाट्सएप पर ही यहाँ हुए बदलाव की सुखद तस्वीरें भी शेयर की। अच्छा लगा कि अब भी हमारे निर्वाचित जन प्रतिनिधियों में संवेदनशीलता बाकि है। उन्हें अपने दायित्वों का बोध है। बदलाव की उनमें भी इच्छा है और अधिकारियो से कार्य कराने की क्षमता भी!

अब इतनी और ग़ुज़ारिश है कि यहाँ विद्युत् कंपनी का ट्रांसफार्मर जो बहुत ही गलत तरीके से लगा है उसे हटाया जाए। एक छोटा सा बगीचा बनाकर इसका स्थाई तौर पर सौंदर्यीकरण कर दिया जाए।