मीटिंगों का वो दौर जो कभी भुलाया नहीं जा सकता!

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जिस तरह वर्क फ़्रोम होम ने ऑफ़िस का मज़ा समाप्त कर दिया है , उसी तरह वीडियो कांफ्रेंस ने मीटिंग का वो आनन्द समाप्त कर दिया है जो आमने सामने हुई बैठकों में आता था । पुराने दिनों की याद करें तो राजनांदगाँव ( अविभाजित मध्य प्रदेश का अविभाजित राजनांदगाँव ) जैसे ज़िले में इतनी तहसीलें और विकास खण्ड थे कि राजस्व अधिकारियों की संयुक्त बैठक में सारा दिन लग जाता था ।

रायपुर जैसे ज़िले में तो , जहाँ चौबीस विकास खण्ड थे , मीटिंग में दो दिन लगते थे । बैठकों में बीस सुत्रीय कार्यक्रमों की समीक्षा अथवा योजना मण्डल की बैठकें भी ऐसी होती थी जिसकी फ़िक्र के साथ तैय्यारी की जाती थी । दरअसल इसमें जनप्रतिनिधि भी होते थे और कार्यों की आलोचनात्मक समीक्षा हुआ करती थी । एक बार ऐसी ही बैठक में भोपाल से यज्ञदत्त शर्मा जी पधारे , बड़ी हंगामेदार बैठक हुई , शायद ही कोई विभाग बचा होगा जिसकी खिंचाई ना हुई होगी , आख़िर में बारी आई पुलिस विभाग की । श्री रुस्तम सिंह जी जो बाद में प्रदेश शासन में मंत्री हुए उन दिनों राजनांदगाँव के पुलिस अधीक्षक थे । रुस्तम सिंह जी खड़े हुए और बोले पुलिस विभाग का ज़िले में सब काम दुरुस्त है , किसी को कोई तकलीफ़ हो तो बताये । रुस्तम सिंह जी का काम शानदार तो था ही रुआब भी ग़ज़ब था , सब बोले नहीं-नहीं इस विभाग से कोई शिकायत नहीं है ।

एक जमाने में साल में एक बार कलेक्टर और सी.ई.ओ. ज़िला पंचायत की एक संयुक्त बैठक हुआ करती थी , जिसमें सारे ज़िला अधिकारी धड़कते दिल से शामिल हुआ करते थे । मीटिंग में मुख्य सचिव व सम्बंधित विभागों के प्रमुख सचिव उपस्थित रहते थे , और प्रारम्भिक सत्र के बाद कभी कभी मुख्यमंत्री भी आ ज़ाया करते । दिन के सुबह 9 बजे से शुरू होने वाली बैठक रात सात-आठ बजे तक चला करती थी , और बैठक के बाद अधिकारी अपने संगी साथियों समेत होटलों में रात्रि भोज के साथ चर्चा में उन अधिकारियों के मज़े लेते जिन्हें किन्ही कारणों से डाँट पड़ी होती । ऐसी ही एक मीटिंग थी , जिसमें मैं नीमच से सी.ई.ओ. ज़िला पंचायत की हैसियत से उपस्थित हुआ था ।

एक ज़िले के कलेक्टर ने पी.एच.ई. विभाग से सम्बंधित हैंड पम्प खनन को लेकर किसी अवरोध का ज़िक्र करते हुआ कहा कि इस वजह से काम करने में दिक़्क़त आ रही है । विभाग के प्रमुख सचिव खड़े हुए और उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि फ़लाँ नियम के कारण ऐसा हो रहा है और नियमों के चलते इसका उपाय नहीं है । सत्यानंद मिश्र जी भी ऊपर मंच पर बैठे थे हालाँकि वे किसी और विभाग के प्रमुख सचिव थे , पर वे उठे और पी.एच.ई. विभाग के प्रमुख सचिव से बोले “ इतना नियम तो वो भी जानता होगा , ज़िले का कलेक्टर है , आप भी नियम बताने लगोगे तो समस्या कैसे हल होगी ? सी.एस.बैठे हैं , सी. एम. बैठे हैं , आप तो हल निकलवाइए फिर कहाँ ये फ़ील्ड के अधिकारी ज़मीनी हक़ीक़त बताने आ पाएँगे “ । एक बारगी तो सन्नाटा खिंच गया , फिर सी.एस. बोले मिश्र जी सही कह रहे हैं , हम नियमों को ठीक करें ताकि फ़ील्ड में परेशानी ना हो सके ।