वर्ष की अंतिम शनैश्चरी अमावस्या: चौदह वर्षों बाद बन रहा विशेष संयोग- आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक

साढ़ेसाती व ढय्या प्रभावित जातकों को शनि आराधना व पीपल पूजा से होगा लाभ

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इंदौर: धर्मशास्त्रीय विषयों के प्रामाणिक आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक, अध्यक्ष मध्यप्रदेश ज्योतिष एवं विद्वत परिषद ने बताया कि भाद्र कृष्ण अमावस्या का संयोग शनिवार को मघा नक्षत्र व शिव योग में शनिवार को निर्मित हो रहा हैं।शनिवार कोअमावस्या का संयोग होने से शनैश्चरी अमावस्या योग बन रहा है इसमें
स्नान,दान व पुण्य का विशेष महत्व है।

अमावस्या दो दिन;–
आचार्य शर्मा ने बताया कि अमावस्या 26 व 27 अगस्त दो दिन है।26 अगस्त को चतुर्दशी दोपहर 12 बजकर 23 मिनिट तक है बाद मैं अमावस्या प्रारम्भ होगी जो 27 अगस्त शनिवार को दोपहर 1 बजकर 46 मिनिट तक रहेगी। 26 को पितृकार्य की व 27 को शनैश्चरी देव व पितृकार्य हेतु पूण्य फलदायी रहेगी।दोनों स्नान,दान व पूण्य कर्म हेतु फलदायी मानी जाती है। पुराणादि धर्मशास्त्रों में शनि व सोमवार को आने वाली अमावस्या का अपना महत्व है।इन दिनों शनि देव भी अपनी स्वयं की राशी मकर में गोचर कर रहे है।
जो जातक शनि की साढ़ेसाती व ढय्या के प्रभाव में है वे पीपल के व्रक्ष की पूजा कर परिक्रमा करें, शनिदेव की कृपा प्राप्त होगी ।

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अमावस्या शनि देव की अवतरण तिथि भी है,शनिवार को शिव योग का संयोग ऐसे में स्नान,दान पुण्य का कई गुणा फल बढ़ा देता है । शनि के साथ शिवजी की कृपा भी प्राप्त होगी। अमावस्या पितृ कार्य का मुख्य दिन माना जाता है।
चन्द्रलोक ही पितृ लोक हैं अतः अमावस्या को शनि का योग पुण्य फल प्रद भी है ।आज के दिन चन्द्र व सूर्य एक सीध में रहते है,अतः देवताओं के साथ पितृ कार्य के लिए यह अमावस्या विशेष श्रेष्ठ है ।आज के दिन अश्वत्थ अर्थात पीपल के पूजन का विशेष महत्व बताया गया है । प्रातः विविध पूजा उपचारों से पीपल की पूजा,परिक्रमा से शनि देव की महती कृपा प्राप्त होती है। आचार्य पण्डित रामचन्द्र शर्मा ने बताया कि आज के दिन कुश ( पवित्र घांस ) एकत्रित करने का भी खास महत्व है।

इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। कुश को कुशा, डाभ व दर्भ के नाम से भी जाना जाता है जो शुभ कार्यों के साथ ही श्राद्धादि कर्मों में उपयोग में लायी जाती है ।यह पवित्री के नाम से जानी जाती है।

14 वर्ष बाद दुर्लभ संयोग;—- विशेष ग्रह गोचर के साथ शनैश्चरी अमावस्या का 14 वर्षों का दुर्लभ योग प्राप्त हुआ है,पूर्व में 2008 में इस प्रकार का योग सहयोग आया था। अमावस्या मुख्यतः स्नान,दान व पुण्य का पर्व माना जाता है ,श्राद्धादि कर्मों में भी इसका विशेष महत्व हैं।
विशेष ग्रह गोचर संयोग;— आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि शनि,गुरु व बुध ग्रह क्रमशः तीन महायोगों शश,हंस व भद्र योग का निर्माण कर रहे है ऐसे योग में किया स्नान,दिया दान हजार गुना होकर पूण्य फल प्रदान करता है ।