बदलता भारत-8: किसने बनाई और बढ़ाई हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई

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बदलता भारत-8: किसने बनाई और बढ़ाई हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई

वर्तमान भारत,जिसमें केंद्र सरकार भाजपा शासित है,उसे लेकर गैर भाजपा राजनीतिक दलों और वामपंथी सोच वाले तबके के द्वारा लगातार यह आरोप लगाये जाते हैं कि भाजपा सरकार देश को हिंदू औऱ् मुस्लिम के बीच बांट रही है। उनका यह भी कहना है कि भाजपा हिंदूवाद को बढ़ावा दे रही है और मुस्लिमों की उपेक्षा कर रही है। सवाल यह है कि क्या इस देश में आजादी के बाद पहली बार हिंदू-मुस्लिम हो रहा है? हमने देखा है कि स्वतंत्रता के बाद से ही अल्पसंख्क के नाम पर सत्तारूढ़ दल राजनीति करते रहे, नीतियां बनाते रहे। बहुसंख्यकों के हितों को खूंटी पर टांगे रहे । ऐसे में भारतीय जनता पार्टी आई और उसने बहुसंख्यक वर्ग को पुचकारा-दुलारा,उसे सराहा,सहारा दिया तो तकलीफ क्यों है? याद रहे,पहले भारतीय जनसंघ, फिर नाम बदलकर बनी भारतीय जनता पार्टी की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ है।संघ की स्थापना भा्रतीयों के जन जागरण,सनातन संस्कृति के संरक्षण के उद्द‌ेश्य से किया गया था। संघ की अवधारणा में भारतीय याने हिंदू और हिंदू याने भारतीय ही है। ऐसे में आप ने अपनी राजनीति चमकाने के लिये जो किया,वही तो भाजपा ने भी किया। हां, आपकी और उसकी पसंद में अंतर है। जब एक ही परिवार में सारे लोग एक जैसे कपड़े,जूते नहीं पहनते तो राजनीतिक दल सारी नीतियां वे ही क्यों अपनायें, जो कांग्रेस,वामपंथी,समाजवादी पार्टी,बसपा या कोई और अपनाये। आपको जो पसंद या फायदेमंद था, आपने किया। अब भाजपा की बारी है।

 

आगे बढ़ने से पहले एक जरूरी बात-राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकाधिक बार कहा है कि इस देश में रहने वाले सभी ‌भारतीय है याने हिंदू हैं। यह संस्कार और संस्कृति है। देश की पहचान है, अस्मिता है। सबके धर्म,जाति अलग हो सकती है, पूजा पद्धति भिन्न हो सकती है, लेकिन राष्ट्रीय पहचान तो एक ही है।वे यह भी कहते रहे हैं कि मुगलों,तुर्कों के आक्रमण और अत्याचारों की वजह से अनेक लोगों ने धर्म परिवर्तन कर लिया था।इसलिये उनका मूल भारतीय ही है। ऐसे में उनसे कोई गिला-शिकवा नहीं, लेकिन यह बात उन्हें भी समझना होगा कि वे देश को धर्म से ऊपर समझें। देश के कानून-संविधान का सम्मान करें । यह कोई गलत अपेक्षा है क्या ? जब कोई भारतवासी विदेश में कहीं जाता है तो वह भारतीय ही तो कहलाता है। तब देश के अंदर रहते हुए खुद को भारतीय मानने,कहने में परेशानी क्या है? परेशानी भारतीयों को कम है, कतिपय राजनेताओं को अधिक है। राजनीति का मूल मंत्र है, समस्या को बनाये रखो। लोगों को उलझाये रहें। अभाव और परेशानियों को बरकरार बनाये रखो तो ही उनकी दुकान चलती रहेगी। तो तकलीफ इस बात से है कि पड़ोस की दुकान तो जोर-शोर से चल रही है और हमारी ग्राहकी कम होती जा रही है। हमें यह समझना होगा कि यह मार्केटिंग का जमाना है। जो दिखता है, वो बिकता है। बोलने वाले की मिट्‌टी भी बिक जाती है, जबकि चुप रहने वाले का सोना भी धरा रह जाता है। कांग्रेस या दीगर दलों के पास विपणन कला नहीं है, माल खोटा है तो दूसरे दुकानदार,उसके माल और नियत पर अंगुली उठाना शोभा नहीं देता।

 

अब हिंदू-मुस्लिम की बात पर आते हैं। ऐतिहासिक संदर्भों को देखें तो इनके बीच की खाई स्वाभाविक है। दो धुर विरोधी मान्यताओं,परंपराओं,संस्कृति,संस्कारों वाले धर्म-समुदायों के बीच कोई तुलना ही फिजूल है। एक आक्रमणकारी, दूसरा उदारवादी। एक विभाजन,लूट,हिंसापसंद,क्रूरतम तौर-तरीकों का हिमायती तो दूसरा अहिंसा परमो धर्म और वसुधैव कुटंबकम का प्रणेता,परिपालक। भारतीय राजाओं ने अपने देश के भीतर,अपने ही लोगों से कितने ही युद्ध लड़े हो, राज्य हड़पे हों। कभी अतिशय हिंसा,बलात्कार,क्रूर तरीके की सजाये देना जैसे काम नहीं किये। किसी मुल्क को गुलाम नहीं बनाया। पराजित राज्यों की महिलाओं को दासी,रखैल या व्याभिचार का साधन नहीं बनाया। तमाम बातें हैं जो हमें सबसे अलग करती है। तब विवाद या तुलना क्यों और कैसी?

 

वर्तमान युग की बात भी कर लें तो बतायें कि समूची दुनिया आज किससे हद दर्जे परेशान है? हिंदुत्व से या इस्लामीकरण से। आतंकवाद से या परस्पर भाईचारे वाली सनातनी परंपराओं से। हमने तो 16 बार आपको माफ किया, लेकिन आपको जब पहला मौका मिला आपने आंखें फोड़ दीं। रानियो को हरम में कैद कर लिया। हजारों महिलाओं को अग्नि समाधि लेने को विवश होना पड़ा। जिस धर्म को मानने वालों के 50 से ज्यादा देश हों, वे अपने मुल्क की कथित बेरोजगारी या लचर अर्थ व्यवस्था या अपने धार्मिक एजेंडे के चलते पलायन कर गैर मुस्लिम देशों का रूख क्यों करते हैं? वहां भी वे शांति से रहते हैं क्या ? जैसे ही थोड़े सहज होते हैं, वे शरीया कानून,परंपराओं का हवाला देकर अपनी मनमर्जी चलाने का दबाव बनाते हैं।

 

सीधे तौर पर भारत की ही बात करें तो अंग्रेजों की कुटिलता और तत्कालीन राजनेताओं की महत्वाकांक्षा और जिद के चलते जब भारत का विभाजन धर्म के आधार पर मान्य कर लिया गया तो आप गैर इस्लामिक देश में रुके क्यों रहे? यदि रुक ही गये तो इस देश की संस्कृति,परंपराओं को क्यों नहीं अपना सके। इस देश के कानून से धीरे-धीरे किनारा कर शरीया कानून के अनुसार जीवन यापन का दबाव क्यों अपनाने लगे? आप तीन तलाक,परदा प्रथा,मदरसे में धार्मिक शिक्षा,फतवे जैसी मान्यताओं के साथ रहना चाहते हैं तो फिर उसके मुताबिक ही कोई अपराध करने पर सजा भी वैसी ही क्यों नहीं मांगते ? चोर के हाथ काटना,बलात्कारी को पत्थर मार-मारकर मार डालना,बुरी नजर जाने वाले की आंखें फोड़ देना जैसी तजवीज पसंद है क्या ? तब आपको भारतीय संविधान के अनुसार दंड चाहिये, किंतु उसी संविधान के तहत समान नागरिक कानून का आप विरोध करेंगे। आपको तो सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट (सीएए) तक पसंद नहीं, जो आपके लिये तो बना ही नहीं । वह तो पाकिस्तान,बांग्लादेश,अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी मुल्कों में रह रहे अल्पसंख्यकों को भारत में आने,बसने,नागरिकता देने के लिये है। आपने दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर तो देश के चौराहो-चौराहों पर धरने-प्रदर्शन किये। ऐसा क्यों ?

 

इस देश में लव जिहाद की घटनायें राकेट की गति से बढ़ रही है। इनमें मुस्लिम युवक अपनी पहचान छुपाकर किसी हिंदू किसी युवती से प्रेम का नाटक करता है, जबरिया शारीरिक संबंध बनाता है। फिर उसके वीडियो बनाता है, जबरद्स्ती शादी करता है,उसे धर्म परिवर्तन के लिये बाध्य करता है और कोई युवती ये स्वीकार नहीं करती तो उसे छोड़कर भाग खडा होता है या मार डालता है। कितने हिंदू युवकों ने ऐसा किसी मुस्लिम युवतियों के साथ किया ? यह झूठ,फरेब,धोखा किसलिये ? इन दिनों ऐसे दर्जनों वीडियो,फोटो,खबरें वायरल हो रहे हैं, जिसमें कोई मुस्लिम खानसामा, रसोइयां खाने-पीने की वस्तुओं में थूंक रहा है। इसे बेशक आप अपने वालों को परोसिये, लेकिन गैर मुस्लिम को क्यों दे रहे हैं ? यह कैसी प्रवृत्ति है।

 

इन सबसे हटकर भी अनेक ऐसी बातें हैं, जो आपको इस देश को सर्वोपरि मानने से इनकार का बड़ा प्रमाण है। आपको स्कूल-कॉलेज में या सिनेमा घरों में राष्ट्र गान गाने से एतराज है। वंदे मातरम या जन गण,मन में हिंदू-मुस्लिम कहां से आ गया। आप शिक्षा अर्जित कर रही युवतियों को हिजाब पहना कर ही क्यों भेजने का दबाव बनाते हैं। आपके नेता,मौलवी किसी की बात नापसंद होने पर मुंडी काटने,कत्ल करने के फतवे क्यों देते हैं? क्यों किसी के आपके धर्म के बारे में कुछ बोल देने पर सरेआम हत्यायें करने पर उतारू हो जाते हैं? क्यों किसी तलाक प्रकरण में गुजारा भत्ता देने के अदालत के आदेश के खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन किये जाते हैं और कानून बदल देने पर ही मानते हैं? क्यों आप किसी गैर मुस्लिम को काफिर मानकर हेय बरताव करते हैं? जब लोकतांत्रिक देश की संविधान प्रदत्त सारी सुविधायें आप ले रहे हैं, तब इस देश के नियम-कानून मानने में परेशानी क्या है?

 

यह सही है कि इस वक्त देश के दो महत्वपूर्ण समुदाय हिंदू-मुस्लिम के बीच संबंधों की गहरी खाई नजर आ रही है, लेकिन यह भी देखना होगा कि ऐसा हुआ क्यों और यह किसने पैदा की और अपना सर्वस्व इसे गहरा खोदने में ही लगाते रहे। क्यों कभी इस खाई के भराव की हिकमत नहीं की ? अभी-भी ऐसे लोग बाज नहीं आ रहे। मसले को जितना राजनीतिक रंग दिया जायेगा, यह उतना ही बदरंग होता जायेगा। हम पाते हैं कि स्वतंत्रता के समय से ही वोट बैंक की ओछी राजनीति ने हिंदू-मुस्लिम मुद्दे को खड़ा किया, पोषित-पल्लवित किया। परिणाम यह हुआ कि देश के कोने-कोने में न केवल हिंदू-मुस्लिम बल्कि आगे चलकर जातिवाद का जहर ऐसा फैला कि किसी ओझा,हकीम,चिकित्सक के बस में ही इसका इलाज नहीं रहा। यह नासूर बनकर देश की धमनियों में रक्त के साथ एकाकार हो गया। आज कोई दावे के साथ इस मसले का समुचित हल नहीं सुझा सकता। भविष्य के गर्भ में अब अंदेशे हैं,अफसोस है,अनिश्चय की काली परछाई है।

 

(क्रमश:)