बदलता भारत: समापन – राष्ट्र नायक बनकर उभरे हैं नरेंद्र मोदी
मैं ऐसा मानता हूं कि जिस नये और आत्म निर्भर भारत के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काम कर रहे हैं, वह उन्हें भारत के युग पुरुष,राष्ट्र नायक के तौर पर अवश्य याद रखेगा। आने वाली पीढ़ियां ही उनका ज्यादा सही आकलन करेगी कि कैसे एक व्यक्ति निपट अराजनीतिक पृष्ठभूमि से निकलकर समाज सेवा और जनसेवा के सर्वोच्च शिखर प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचा, वहां लंबे समय तक टिका रहा और अनेक सदियों से पहले प्रत्यक्ष गुलामी, फिर मानसिक गुलामी के जंजाल में उलझे रहे देश को इस अकेले व्यक्ति ने अपनी जिजीविषा,कल्पनाशीलता,कर्मठता और संपूर्ण चेतना को झोंककर पहले इस गहरे अवसाद,अनिश्चितता और असमंजस से बाहर निकाला, फिर समग्र भारत राष्ट्र को प्रवाहमान,चैतन्य,जागरुक और आत्म विश्वासी बनने की दिशा में अग्रसर किया। देश-विदेश में जब-तब यह जिज्ञासा सामने आती रहती है कि आखिरकार कौन है यह दिव्य पुरुष और कैसे अपनी संपूर्ण अस्मिता और अस्तित्व की समिधा से राष्ट्र उन्नति के यज्ञ में आहुति देने को हर पल तत्पर, सक्रिय है।
यूं देखें तो नरेंद्र मोदी का राजनीति में आना,फिर संगठन का दायित्व निभाना,प्रदेश की जिम्मेदारी से राष्ट्रीय स्तर का काम सौंपना,एक दिन अचानक उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर गुजरात की जबावदेही दे देना,किसी उपन्यास की विषय वस्तु,चित्रपट की काल्पनिक,मसालेदार कहानी लगती है। लेकिन,ऐसा नहीं है। मोदीजी कहां तक पहुंचेंगे,यह अनुमान उन्हें तराशने वालों को नहीं रहा होगा,ऐसा मैं नहीं मानता। कब तक मंजिल पर पहुंच पायेंगे,इसके अनुमान में थोड़ी घटत-बढ़त हो सकती है।,दरअसल यह तो सर्व विदित तथ्य है कि वे अतीत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उन लाखों बच्चों,किशोरों में से एक थे, जो संघ की शाखाओं में जाते रहे हैं। उनमें नेतृत्व की क्षमता तो जन्मजात होगी ही,जिसे उचित मौके ने मुकाम दिया, किंतु इस गीली मिट्टी को जिन हाथों ने गढ़ने का बीड़ा उठाया था, उनकी नजरें अद्भुत पारखी रही ही होंगी। संघ नेतृत्व ने इन्हीं अनगढ़ मिट्टी से ऐसी अनेक नायाब मूर्तियां तैयार की, जो कालातंर में विश्व पटल पर पहचानी गईं,प्रतिष्ठित हुईं। नरेंद्र दामोदरदास मोदी उस पंक्ति में एक बेहद विशिष्ट नाम है।बहरहाल।
मोदी जी की जीवन यात्रा अनथक,सतत है। इसमें न विश्राम है, न पड़ाव। किसी व्यक्ति में ऊर्जा,नेतृत्व क्षमता,आध्यात्मिक चेतना,धार्मिक भावना के साथ दायित्व निर्वहन का अदभुत तालमेल देखना हो तो वह मोदी जी के समग्र जीवन पर शोध कर सकता है। सन 2001 में वे जब भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर संगठन की जिम्मेदारी निभा रहे थे, तब उन्हें सीधे गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर भेज दिया गया। उस वक्त यह फैसला संभवत: दल के भीतर भी सर्वानुमति से स्वीकर नहीं किया गया होगा, लेकिन फैसला लेने वालों की नीयत को असंदिग्ध माना जाने से मान्य किया गया। वर्तमान तथा इतिहास साक्षी रहेगा कि इस व्यक्ति ने अपने प्रयासों से कायांतर किया और अपने को उस सांचे में बखूबी ढाल लिया, जिसमें उन्हें डाला गया था। वे आज वास्तविक जन प्रतिनिधि,कुशल प्रशासक,सनातनी मूल्यों के पोषक,संस्कृति के निर्वहन कर्ता,लक्ष्य के प्रति अचूक एक ऐसे व्यक्ति की भमिका निभा रहे हैं, जिससे करोड़ों भारतीयों को तो अपार उम्मीदें हैं ही, साथ ही विश्व समुदाय भी उनकी प्रतिभा के परिप्रेक्ष्य में आशान्वित हैं।
हम यदि मोदी जी की जीवन यात्रा के सिलसिले को देखें तो पाते हैं कि जैसे सब कुछ लिपिबद्ध और नियोजित था, जिसे वे सटीक क्रियान्वयन कर रहे हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री जब वे बने तो वहां अस्थिरता थी, विकास के पहिये थम से ग.ये थे। असुरक्षा,अशांति थी। रही सही कसर 26 जनवरी 2001 को आये भयंकर भूकंप ने तो जैसे कमर तोड़कर रख दी थी। वे नरेंद्र मोदी ही थे, जिन्होंने न केवल गुजरात का काया कल्प कर दिया, बल्कि वहां के जन-जन में ऐसा आत्म विश्वास भर दिया कि आज गुजरात की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समृद्ध,सुसंस्कृत प्रदेश की है। वे नरेंद्र मोदी ही थे, जो विकास विरोधी संगठन नर्मदा बचाओ आंदोलन से निपटते हुए सरदार सरोवर बांध बना सके जो आज मध्यप्रदेश व गुजरात की जीवन रेखा नर्मदा का समुचित दोहन कर विकास की नई परिभाषा लिख सके। आप सोचिये कि जिस परियोजना का शिलान्यास जवाहरलाल नेहरू ने 5 अप्रैल 1961 को किया, उसका काम जैसे-तैसे 1987 में शुरू हो सका। फिर विश्व बैंक द्वारा कर्ज मंजूर कर देने के बाद न देना,विरोधियों का बार-बार निचली से लेकर तो सर्वोच्च अदालत जाकर निर्माण कार्य में अड़़ंगे डालना, फिर 1995 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा काम जारी रखने का फैसला सुनाने के बाद गुजरात द्वारा खुद के संसाधनों से निर्माण करना और 17 सितंबर 2017 को अपने जन्म दिन पर गुजरात,मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र और राजस्थान के लिये उपयोगी सरदार सरोवर का शुभारंभ मोदी जी द्वारा करना इतिहास में स्वर्णिम अध्याय के तौर पर दर्ज कर गया। यह देश के लिये बड़ी उपलब्धि है।
इस बांध के बनते-बनते ही ऊंचाई 111 मीटर से 138 मीटर करवाई और जिस कच्छ में मनुष्य-मवेशी बूंद-बूंद पानी को तरसते थे, जहां बेटियां ब्याही नहीं जाती थी,वहां अब औद्योगिक विकास,पर्यटन,कारोबार हिलोरे लेता है। मोदीजी ने आधारभूत संरचना पर काम करते हुए गुजरात को चारों दिशाओं से फोर लेन सड़कों से जोड़ा। उद्योगों को सकारात्मक वातावरण दिया। तत्काल मंजूरियां और सुविधाओं की उपलब्धता की। इन्हीं वजहों से वे 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री बने रहे। राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरने की पृष्ठभूमि में गुजरात के सफल कार्यकाल का महती योगदान है।
2004 के लोकसभा चुनाव में आश्चर्यजनक रूप से भाजपा सरकार नहीं बना सकी। उस वक्त तक मोदी जी का राजनीतिक जीवन महज 3 साल का था। फिर भी जौहरियों की नजर उन पर जम चुकी थी। गुजरात में जब उन्हें खुलकर काम करने का मौका दिया गया, जिसके बेहतर नतीजे उन्होंने दिये थे। उन्हें उड़ान भरने के लिये जिस तेज,अवरोध रहित मार्ग की दरकार थी,वह उन्हें मिल चुका था। उस समय का भाजपा नेतृत्व 2009 में भी कमाल नहीं दिखा सका था। तब के हालात भी ऐसे नहीं थे कि अटल बिहारी वा्जपेयी या लालकृष्ण आडवाणी को दरकिनार कर किसी को आगे किया जा सकता। वह अवसर आया 2013 में जब गोवा में भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ, जिसमें पहली बार बाकायदा आगामी चुनाव के लिये प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के नाम की घोषणा की गई। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि तब के रणनीतिकारों को इतना भरोसा था कि यह योद्धा जंग जीतने का माद्दा तो रखता ही है,। उसमें शौर्य भी है, नेतृत्व क्षमता भी और जनता को सम्मोहित करने का हूनर भी। 2014 के चुनाव परिणाम ने संघ-भाजपा के भरोसे पर मोहर लगाई ।
2014 के बाद का भारत नये युग के आरंभ का उद्घोष है। बाद का घटनाक्रम यूं तो हमारे सामने है, फिर भी उस पर नजर डालते हैं। मोदी जी ने 2014 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा। चूंकि उद्देश्य बड़ा और राष्ट्र की अस्मिता से जुड़ा था, जो सत्तारोहण से ही संभव था तो मोदी जी ने वडोदरा और वाराणसी दो जगह से नामांकन भरा। दोनों ही जगह वे जीते। वडोदरा सीट मोदी जी ने रिक्त कर दी। बाबा काशी विश्वनाथ की शरण में जाने के बाद कहीं और जाने की जरूरत ही कहां रह सकती है। 2019 में जब कोई आश्वस्त नहीं था, तब भी मोदी जी ने एकमात्र वाराणसी सीट से नामांकन भरा और भारी बहुमत से जीते। इस ऐतिहासिक जीत के बाद का इतिहास भी ऐतिहासिक है। जो बाबा विश्वनाथ अतिक्रमण की घुप्प अंधेरी गुफा में कैद सरीखे थे, वे स्वच्छंद वातावरण में अब सांस ले रहे हैं। ज्ञानवापी की चहारदीवारी में अपने नंदी को निहारने को लालायित बाबा बीच की दीवार ढहने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर ने दुनिया भर के पर्यटकों और भारतीयों के मन में जो उमंग भरी है, वह वर्णनातीत है।
आपने महसूस किया होगा कि मोदी सरकार ने 2014 से 2019 तक का समय धीमे चलो, सुरक्षित पहुंचो की नीति से तय किया। वे संभवत: यह देखना चाह रहे होंगे कि उनके नतृत्व में देश को कितना भरोसा है और 2014 के चुनाव के परिणाम कहीं तात्कालिक आवेश से भरे हुए तो नहीं थे। इसलिये भाजपा की रीति-नीति होते हुए भी बेहद जरूरी मुद्दे भी अनछुये रखे। जैसे कश्मीर से 370 और 35 ए की रवानगी। नागरिकता कानून,तीन तलाक और राम मंदिर निर्माण का शुभारंभ। जब वे 2019 में दोबारा अपनी जीत से यह जान गये कि भारत की जनता उनमें पूरा भरोसा रखती है, तब उन्होंने तेजी से जन भावनाओं के मद्देनजर क्रियान्वयन का सिलसिला प्रारंभ किया। वे काम जिन्हें स्पर्श करना भी अक्षम्य गुनाह से कमतर नहीं माने जाते थे, उन्हें रूई के फाहे की तरह मुलायम तरीके से छुआ गया। न खून बहा, न जख्म हुआ और उपचार ऐसे हो गया, जैसे किसी सम्मोहन विधि से इसे अंजाम दे दिया गया हो।
कुछ लोग सोचते हैं कि नरेंद्र मोदी देश पर राज करने के लिये हैं। अभी तक हमने ऐसा ही होते देखा है तो वे गलत भी नहीं सोचते। लेकिन वैसा नहीं है। यदि हम भारत के संदर्भ में ही बात करें तो राजा विक्रमादित्य, शिवाजी,महाराणा प्रताप,सम्राट अशोक,चंद्रगुप्त मौर्य,राजा भोज,अहिल्या देवी होलकर,लक्ष्मी बाई,रानी दुर्गावती ने जिस जनसेवा,राष्ट्र सेवा, जन कल्याण के भाव से शासन व्यवस्था संचालित की,कमोबेश वही भाव मोदी जी का माना जा सकता है। वे विवेकानंद की तरह आध्यात्मिक भी हैं तो किसी राजा की तरह कुशल प्रशासक भी। उनके पास भारत के भविष्य को देखने की दिव्य दृष्टि कृष्ण की तरह है तो कर्म के प्रति तत्पर हो जाने का अजुर्नत्व भी है। वे चंद्रगुप्त और चाणक्य के एकसाथ प्रतिबिंब है । उनका अभी तक का जीवन घनघोर प्रतिरोध का सामना करते हुए बीता, फिर भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया तो लक्ष्य से विलग-विचलित नहीं हुए।
मोदी जी के चुंबकीय व्यक्तित्व का लोहा दुनिया भी मानने लगी है। देश मेंअरसे बाद ऐसा नेता आया है, जिसके आव्हान को जनता गंभीरता से लेती है। उनके कहने पर कोरोना से प्राथमिक तौर पर निपटने के लिये देश एक दिन का स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू स्वीकार कर लेती है। उनके ही कहने पर अपना हौसला खुद बढ़ाने के निमित्त घर के अंदर रहकर घंटा-ताली बजाकर अपना विश्वास प्रदर्शित करती है। दीवाली की तरह घरों को रोशन कर अपने डर को दूर करने का उपक्रम जनता करती है। वे कहते हैं ,तब गुलामी के प्रतीक संसद भवन की जगह बने सेंट्रल विस्टा को देखने के आव्हान पर एक ही दिन में ढाई लाख लोग कर्तव्य पथ पर उमड़ पड़ते हैं।
ऐसा जान पड़ता है कि वे जल्द ही कुछ काम और कर लेना चाहते हैं। देश में समान नागरिकता् कानून लाना याने ना तो हिंदू सिविल कोड ना ही मुस्लिम पर्सनल लॉ। सब भारतीय और सबके लिये एक ही कानून। पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में मिलाना भी एक प्रमुख लक्ष्य हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता पाने के प्रयास भी किये जाने की प्रबल संभावना है,जिसे तश्तरी में सामने लाये जाने के बाद हम 70 साल पहले ठुकरा चुके थे। देशवासियों के लिये एक सर्वमान्य पहचान पत्र पर भी काम चल ही रहा होगा। देश से तमाम अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना भी बड़ा काम है।
वे देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिनका जन्म स्वतंत्रता के बाद हुआ। साथ ही वे ऐसे भी पहले प्रधानमंत्री हैं, जिनका परिवार होते हुए भी किसी को अपने साथ नहीं रखते। पूरा राष्ट्र ही उनका परिवार है। एक तरफ व देश में अपने विरोधियों से निजी हमलों तक को झेलते हुए आगे बढ़ रहे हैं और उन जयचंदों को बेनकाब कर रहे हैं जो महज सत्ता के लिये विदेशी ताकतों के हाथों का खिलौना बने हुए हैं तो दूसरी तरफ विदेश में भारत की छवि चमकाने के लिये जी-जान से जुटे रहते हैं। जो अमेरिका कभी उन्हें वीजा देने से साफ इनकार कर देता था, अब उनके लिये लाल कालीन बिछाकर स्वागत करता है। दुनिया में भारत की उज्ज्वल होती छवि,बढ़ता मान-सम्मान,कारोबार व आत्म निर्भरता ने अनेक देशों तक को सकते में डाल रखा है। निहित स्वार्थ सर्वोपरि मानने वाले परेशान हैं। वे मोदी के हिमालयीन व्यक्तित्व से आक्रांत हैं। उन्हें भारत में मौजूद मोदी विरोधी राजनीतिक दलों और व्यक्तियों से बहुत उम्मीद है तो मदद की अपेक्षा भी। इस लिहाज से 2024 का आम चुनाव और फिर से भाजपा सरकार आने की प्रबल संभावनाओं के बीच उसके बाद का समय भी बेहद चुनौतीपूर्ण मानकर चलना होगा।दे श में सदभाव का माहौल बिगाड़ना,दुष्प्रचार के जरिये छवि खराब करना,सत्ता प्राप्ति के लिये किसी भी तरह के हथकंडे अपनाना संभव है।
भारत राष्ट्र के रूप में अब शिखऱ् की ओर अग्रसर है। यह देशवासियों की जिम्मेदारी है कि वे एसे तत्वों को पहचाने और देश की अस्मिता से खिलवााड़ करने वा्लों को बेनकाब करे। नरेंद्र मोदी के बारे में लोगों को यह समझाना होगा कि वे सत्ता के पीछे नहीं है। वे अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र को दे चुके और आगे भी देने की प्राणप्रण से कोशिश करेंगे ही। फिर भी वे निस्पृह हैं,काम,लोभ,मोह से असंबद्ध हैं,इस नाते जिस दिन भी यह महसूस करेंगे कि राष्ट्र का नेतृत्व अब अपेक्षित योग्य हाथों में दिया जा सकता है तो उसी पल वे बाबा केदारनाथ की शरण में या ऐसी किसी एकांत की ओर प्रस्थित हो जायेंगे, जहां वे राष्ट्र के प्रति निभाये गये अपने कर्तव्य का आकलन कर सकें और अपने आप से साक्षात्कार कर सकें।
(समाप्त)