मध्यप्रदेश की भी जय और भोपाल की भी जय…
स्वच्छता सर्वेक्षण ग्रामीण के परिणामों ने मध्यप्रदेश और राजधानी भोपाल के प्रयासों पर सप्तरंगी आभा बिखेर दी है। सर्वेक्षण की रिपोर्ट को जब प्रचारित किया गया, तब इसे पढ़कर भोपालवासियों में पहला भाव तो यही आया कि हमने इंदौर को पीछे छोड़कर बाजी मार ली है। पहली बार में तो यही लगा कि स्वच्छता में पांच बार से बाजी मार रहे इंदौर को पीछे छोड़ भोपाल आगे निकल गया हैै और इंदौर तीसरे स्थान पर खिसक गया है। पर इंदौर के स्वच्छता में पहले पायदान से लुढ़कने की बात पर भरोसा कर पाना ठीक उसी तरह है, जैसे रेत का महल बनाना। सो लोगों ने फिर बड़े गौर से पढ़ा होगा और तब बात साफ हो गई कि बात ग्रामीण स्वच्छता की चल रही है। चलो शहरी स्वच्छता न सही तो ग्रामीण ही सही, भोपाल ने बाजी मारकर यह अहसास तो करा ही दिया कि नंबर वन का तमगा हासिल करने का हकदार भोपाल भी है। खास बात यह है कि ग्रामीण स्वच्छता का सर्वेक्षण पहली बार हुआ है और पहली बार में ही अव्वल होना, ज्यादा परिश्रम, अनुशासन और समर्पण का काम है। वेस्ट जोन में जहां राज्यों में मध्यप्रदेश नंबर वन, तो जिलों में भोपाल ने बाजी मारकर गर्व करने का अवसर दिया है। वेलडन भोपाल, वेलडन मध्यप्रदेश।
स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2022 के जारी परिणाम पर नजर डालें, तो स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण में टॉप परफ़ॉर्मिंग स्टेट में वेस्ट ज़ोन में मध्यप्रदेश को प्रथम स्थान मिला है। स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण के ओवरऑल टॉप डिस्ट्रिक्ट, वेस्ट ज़ोन में भोपाल को प्रथम स्थान मिला है, वहीं इंदौर को तृतीय स्थान से संतोष करना पड़ा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान के महायज्ञ में ग्रामीण भारत के निवासी अपना योगदान बढ़-चढ़ कर दे रहे हैं। स्वच्छता ही सुंदरता है। हम सभी के सम्मिलित प्रयासों से स्वच्छ, सुंदर और प्रदूषण रहित राष्ट्र बनेगा। स्वच्छ सर्वेक्षण में हमारे प्रदेश को प्राप्त यह गौरव प्रमाण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वच्छता को लेकर जागरूकता ही नहीं समर्पण भाव भी दृढ़ हुआ है। गाँवों की नई तस्वीर उभरी है। तो हमने भोपाल कलेक्टर अविनाश लवानिया से बात की, तब पता चला कि इस सफलता के पीछे से परिश्रम की पराकाष्ठा झांक रही है। इसमें कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ और पूरी टीम का समर्पण है। ग्रामीण क्षेत्र में भी नगरीय क्षेत्र की तरह डोर टू डोर कलेक्शन और कचरे को सूखा, गीला में बांटकर एकत्र करना जैसे सफल प्रयास शामिल हैं। मुख्यमंत्री शिवराज की प्रेरणा जिला प्रशासन को कंधे से कंधा मिलाकर राह दिखाती रही। आगे बढ़ाती रही और मुकाम हासिल हो गया।
पर सफलता पाने के साथ ही चुनौती मिलती है सफलता को बनाए रखने की। जिस तरह इंदौर ने नगरीय स्वच्छता के क्षेत्र में यह साबित कर दिया है कि पहला स्थान उसके लिए ही आरक्षित है, तो अब ग्रामीण स्वच्छता में नंबर वन बने रहने की चुनौती का सामना भोपाल को करना है। फिलहाल विशेष अनुभूति 2 अक्टूबर को तब होगी, जब टीम देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों यह पुरस्कार ग्रहण करेगी। और तब यह संकल्प मजबूत होगा कि नंबर वन बने रहने के लिए श्रम जारी रखना है। तो मध्यप्रदेश की भी जय और भोपाल की भी जय…। जय-जयकार का यह सिलसिला जारी रहे…।