Politico Web-आखिर क्यों गिरता जा रहा है Prahlad Patel का ग्राफ
चढ़ते हुए राजनीतिक जीवन में एक गलती कभी कितनी भारी पड़ सकती है यह केंद्रीय राज्य मंत्री व दमोह के दो बार सांसद रहे prahlad patel से बेहतर कौन समझ सकता है। इस वर्ष की शुरुआत तक प्रहलाद पटेल का मध्यप्रदेश में राजनीतिक महत्व व कद लगातार बढ़ता जा रहा था और केंद्र की मोदी सरकार ने उनकी काफी पूछ परख थी।
दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास की आगंतुक सूची देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि मध्य प्रदेश भाजपा और संघ के कौन-कौन से दिग्गज उनसे मिलने उनके आवास पर आया करते थे और मध्य प्रदेश की राजनीति पर चर्चा और विमर्श किया करते थे। कुछ लोग तो उनको शिवराज सिंह चौहान के स्थान पर वैकल्पिक मुख्यमंत्री के तौर पर भी देखने लग गए थे।
राहुल लोधी बना गले का फंदा:
दमोह के तत्कालीन कांग्रेसी विधायक राहुल सिंह लोधी को दल बदल कराकर भाजपा में शामिल कराना और फिर उन्हें अप्रैल 21 में हुए उपचुनाव न जितवा पाना prahlad patel के लिए गले का फंदा बन गया। prahlad patel विरोधी खेमे का तर्क है कि राहुल लोधी को भाजपा में शामिल करा कर प्रहलाद पटेल ने एक तरह से भाजपा को नुकसान ही पहुंचाया है क्योंकि राहुल को भाजपा में लेने पर मतभेद थे लेकिन प्रहलाद पटेल ने खुलकर राहुल की वकालत की थी।
1990 से दमोह से भाजपा के लगातार 28 वर्ष तक विधायक रहे जयंत मलैया को दरकिनार करके उन्होंने कांग्रेस से आयातित राहुल सिंह लोधी की पैरवी की थी जबकि सरकार के पास सदन में पर्याप्त संख्याबल मौजूद था।
मलैया से पुरानी खटपट:
जयंत मलैया के साथ प्रहलाद पटेल के कभी भी मधुर संबंध नहीं रहे हैं। इसी कारण प्रहलाद पटेल ने दमोह विधानसभा क्षेत्र से राहुल को टिकट दिला कर मलैया परिवार की राजनीतिक जड़ में मट्ठा डालने का प्रयास किया था।
थोड़ा पीछे जाएं और मई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में दमोह के बारे में देखें तो पता चलेगा मोदी की आंधी दमोह लोकसभा के कुछ क्षेत्रों पर बिल्कुल असर नहीं दिखा पाई थी।
दमोह विधानसभा के कुछ वार्डों में मोदी की आंधी थम सी गई थी। बजरिया वार्ड 7 में तो यह आंधी महज 8 वोटों तक सिमट गई थी जबकि भाजपा के एक बूथ पर 30 से अधिक कार्यकर्ताओं की तैनाती की गई थी। लोगों का मानना है कि दमोह विधानसभा क्षेत्र का यह इलाका पूरी तरह जयंत मलैया के प्रभाव में था।
शिवराज विरोधी माने जाते हैं पटेल:
प्रह्लाद पटेल को शिवराज विरोधी खेमे का नेता भी माना जाता है। साल 2005 में जब उमा भारती पर दंगों के आरोप लगे तो पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी थी।
उमा भारती ने साल 2005 में अपना राजनीतिक दल, “भारतीय जनशक्ति पार्टी” बनाया। पटेल ने भी बगावती तेवर दिखाते हुए उमा भारती का साथ दिया। उनके इस कदम के बाद से वे शिवराज विरोधी माने जाने लगे थे।
फिर हुई घर वापसी:
पर कुछ ही समय के बाद prahlad patelके उमा भारती के साथ पार्टी नियंत्रण को लेकर मनमुटाव होने लगे और वे 2009 में फिर से भाजपा में लौट आए। साल 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में दमोह लोकसभा सीट से चुनाव जीता और 2019 में भी चार लाख से ज्यादा अंतर से अपनी सीट बरकरार रखी।
इस वर्ष जुलाई में केंद्रीय मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल के बाद बुंदेलखंड की राजनीति ने नए समीकरण दिखने लग गए हैं। मध्यप्रदेश के राजनीतिक क्षितिज पर तेजी से उभर रहे दमोह सांसद prahlad patel का मंत्रालय बदलने और उनके अधिकार सीमित किए जाने को राजनीतिक पंडित उनके अक्खड़ व्यवहार व कार्यशैली और दमोह उपचुनाव में मिली करारी हार को कारण मानते हैं।
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दबदबा हुआ कम:
प्रहलाद पटेल जब स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री थे तो समूचे बुंदेलखंड और महाकौशल के अकेले नेता थे, जो केंद्रीय राजनीति में दखल रखने के लिए जाने जाते थे। महाकौशल से फग्गन सिंग कुलस्ते भी मंत्रिमंडल में मंत्री थे लेकिन वो सिर्फ राज्यमंत्री थे। अब के निकटवर्ती संसदीय क्षेत्र टीकमगढ़ सांसद डा. वीरेंद्र कुमार खटीक को मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के तौर पर शामिल किए जाने के बाद बुंदेलखंड में सत्ता के विकेंद्रीयकरण के साथ ‘प्रह्लाद युग’ नैपथ्य में चला गया।
मंत्रियों में रैंकिंग गिरी:
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में दमोह से दो बार के सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का न केवल विभाग बदल दिया गया, बल्कि स्वतंत्र प्रभार से पर कतर के उन्हें राज्यमंत्री तक सीमित कर दिया गया। मंत्रियों की वरीयता सूची में अब प्रह्लाद पटेल काफी नीचे पहुंच गए हैं। अंदरखाने में शिवराज खेमे व मलैया खेमे में इस ‘पर कतरन’ पर अच्छी-खासी खुशी मनाई गई।
पहले खुद थे बॉस :
मंत्रालय बदले जाने के पूर्व सांसद प्रहलाद पटेल केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री थे। किसी भी देश में पर्यटन विभाग सीधे-सीधे विदेशी पर्यटकों और विदेशी मुद्रा से जुड़ा होता है। मंत्रालयों की आंतरिक गणना का अनुसार केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय वरीयता क्रम में 30वें स्थान पर आता है।
इसके अलावा प्रह्लाद पटेल के पास स्वतंत्र प्रभार था, इसलिए वे अपने मंत्रालय के मुखिया थे। उनके ऊपर कोई मंत्री होने के चलते वे निर्णय लेने में पूरी तरह स्वतंत्र थे। फेरबदल के बाद प्रह्लाद पटेल का मंत्रालय बदलकर उन्हें जल शक्ति एवं फूड प्रोसेसिंग राज्य मंत्री बना दिया गया है।
अब यह मंत्रालय दो सीनियर मंत्रियों के पास हैं। इसके अलावा उनका स्वतंत्र प्रभार का दर्जा भी जाता रहा। राज्य मंत्रियों के वरीयता क्रम में देखें तो जल शक्ति मंत्रालय 24 वें नंबर और फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय 28 वें नंबर पर आता है। मंत्रियों की लिस्ट में अब पटेल 54वें और 58वें नंबर के मंत्री बनकर रह गए हैं। जल शक्ति विभाग में प्रह्लाद पटेल के बॉस गजेंद्र सिंह शेखावत और फूड प्रोसेसिंग में बॉस पशुपति पारस बन गए हैं।
किसने भरे थे कान:
तब सियासी गलियारों में ऐसी खबरें थीं कि मंत्रिमंडल में फेरबदल के पहले बुंदेलखंड के एक कद्दावर नेता ने दिल्ली जाकर बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी और दमोह उपचुनाव में प्रह्लाद पटेल की गतिविधियों, कार्यकर्ताओं की अनदेखी और दिए बयानों की जानकारी दी थी, जिसकी वजह से लोधी वोट बैंक बंट गया और भाजपा चुनाव हार गई थी।
पेगासस लिस्ट में था नाम :
इसी वर्ष जुलाई में पेगासस लिस्ट में विपक्ष के नेताओं के साथ प्रह्लाद सिंह पटेल का नाम शामिल था। रिपोर्ट के अनुसार प्रह्लाद पटेल से जुड़े दर्जन भर से अधिक लोगों के नंबरों की भी जासूसी की जा रही थी। इसमें उनके परिवार के सदस्यों के अलावा उनके एडवाइजर, कुक और गार्डनर जैसे स्टाफ भी शामिल थे। पेगासस लिस्ट में उनका नाम 2019 मध्य के बाद जोड़ा गया है जब वे मोदी कैबिनेट में शामिल किए गए थे। कुछ दिनों की चुप्पी के बाद पटेल ने इस पर हैरानी जताते हुए मामला खत्म करने का प्रयास करते हुए कहा था कि मैं इतना बड़ा आदमी नहीं हूं कि मेरी जासूसी की जाए।
छात्र नेता से शुरू हुआ था राजनीतिक करियर:
प्रह्लाद पटेल का राजनीतिक करियर छात्र नेता से शुरू हुआ था। उनका जन्म 1960 में गोटेगाँव जिला नरसिंहपुर में हुआ था। उन्होंने मध्य प्रदेश के जबलपुर विश्वविद्यालय में छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव जीतकर सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा था। प्रह्लाद पटेल का राजनीतिक करियर बेहद उतार चढ़ावों से भरा रहा है।
पहला लोकसभा चुनाव निर्दलीय के रूप में जीता:
प्रह्लाद पटेल ने छात्र राजनीति से निकलकर पार्टी पॉलिटिक्स में कदम रखा तो उन्हें सिवनी जिले में भाजपा युवा विंग का जिला प्रभारी बना दिया गया। बाद में यहीं से उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव 1989 में निर्दलीय के रूप में लड़ा था। जीत मिलते ही उन्हें भाजपा में प्रवेश मिल गया था।