अंतर अफसर और जननायक की सोच का

आज शरद पूर्णिमा का दिन है और कई त्योहार एक साथ आये हैं । शरद पूर्णिमा के साथ महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती और ईद मिलाद उन नबी भी । हिंदू संप्रदाय के लिये प्रथम दोनों त्योहारों का बड़ा महत्व है तो मुस्लिम संप्रदाय के लिए ये उनके पैग़म्बर का जन्मदिन होने से बड़ा मुबारक दिन है । इस दिन इस्लाम को मानने वाले लोगों के द्वारा मोहम्मद साहब का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है । इसी तरह महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिन को भी उनके उपासक बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं । कहते हैं आज के दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होता है और इसलिए आज रात्रि में अमृत बरसता है । ऐसी मान्यता के चलते बहुतेरे हिन्दू घरों में लोग आज खीर बना कर रात में खुले आँगन में रखा करते हैं । ये और बात है कि कई बार इस अमृत का रसास्वादन घर वालों के बदले बिल्ली मौसी ही कर जाती है ।

शरद पूर्णिमा के दिन ही पन्ना के महामति प्राणनाथ के मंदिर में बड़े भारी उत्सव का आयोजन होता है । प्रणामी संप्रदाय के संत प्राणनाथ देश दुनिया में घूमते हुए पन्ना आये थे । कहते हैं जब छत्रसाल उनसे मिले तो मिलते ही उनके प्रभामण्डल के समक्ष नतमस्तक हो गए । महाराजा मुग़लों से लड़ने जा रहे थे तो उन्होंने विजय हेतु आशीर्वाद माँगा । प्राणनाथ ने ना केवल अपना आशीर्वाद दिया बल्कि अपनी तलवार भी उन्हें प्रसाद के रूप में प्रदान की । छत्रसाल युद्ध में विजयी हुए और वापस आकर अपने गुरु को पालकी में बिठा स्वयं कंधा दे कर उस स्थान पर लेकर आए जहाँ आज प्राणनाथ जी का भव्य मंदिर है । इससे प्राणनाथ जी ने प्रसन्न होकर छत्रसाल को आशीर्वाद दिया कि आजीवन वे कभी भी किसी से न हारेंगे , और सचमुच छत्रसाल प्राण रहते कभी किसी से नहीं हारे ।

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राज्य की समृद्धि के लिए उन्होंने महाराजा छत्रसाल को यह वरदान भी दिया कि जहाँ जहाँ उनके घोड़े की टाप पड़ेगी वहाँ वहाँ हीरे की खदाने निकलेंगी और सचमुच पन्ना में उसके बाद से ही हीरा मिलना शुरू हुआ जो आज तक जारी है । आज जहाँ मंदिर है , प्राणनाथ जी उसी स्थान पर अपने शिष्यों के साथ रहते थे , तब एक बार शरद पूर्णिमा की रात उनके शिष्यों ने उनसे कृष्ण लीला के प्रवचन सुनते हुए इसे प्रत्यक्ष अनुभव कराने की प्रार्थना की । कहते हैं अपने शिष्यों , जिन्हें सब सुंदरसाथ कहते हैं , के अनुरोध पर महामती ने रास का प्रत्यक्ष अनुभव अपने शिष्यों को कराया और तभी से ये परम्परा चली आ रही है कि देश विदेश से लाखों की संख्या में उनके भक्त शरद पूर्णिमा के दिन प्राणनाथ जी के मंदिर में आते हैं और भक्ति के समर्पण में रास नृत्य , जो कुछ कुछ गरबा के स्वरूप का होता है , के साथ अपने गुरु को प्रत्यक्ष अनुभव कर कृष्ण की भक्ति में लीन हो जाते हैं ।

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प्राणनाथ जी के मन्दिर और इसके त्योहार के स्वरूप की जानकारी मुझे सागर संभाग के कमिश्नर रहते लग गई थी , पर इसके दर्शन का सौभाग्य मुझे तब मिला , जब पिछले वर्ष गुरु पूर्णिमा पर प्रदेश के मुखिया हमारे मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी शरद पूर्णिमा पर पन्ना गए । संयोग से इस प्रवास में मैं भी उनके साथ था । जैसी कि परम्परा है , माननीय मुख्यमंत्री जी जब जन समुदाय के बीच जाते हैं तो उनके संभाषण की सामग्री साथ ले जाने वाला सहेजता है । इस बार मैं साथ था तो कार्यालय के मित्रों ने मुझे फ़ोल्डर थमाते हुए कहा कि इसमें मान. मुख्य मंत्री जी के लिए जानकारी के दस्तावेज हैं , रास्ते में अवलोकन कराइयेगा । जहाज़ उड़ने के बाद मैंने माननीय को फ़ोल्डर दिखाते हुए कहा इसमें संभाषण के पॉइंट्स हैं , देखना चाहेंगे ? मुख्यमंत्री जी मुस्कुराये और बोले वहाँ हम भक्ति के लिये जा रहे हैं , भाषण देने नहीं । लाखों श्रद्धालु वहाँ प्राणनाथ जी की आराधना के लिये आ रहे हैं ना कि भाषण सुनने और हम भी उपासना के लिये ही जा रहे हैं , हाँ भक्तों के साथ गरबा रास ज़रूर करेंगे । मैं झेंपा कि मुझे ये बात क्यों नहीं सूझी ? ख़ैर मैंने अपना सरकारी मगज एक तरफ़ रखा और उस रात मुख्यमंत्री जी के दल में रहने के कारण सौभाग्य वश महामती प्राणनाथ के मंदिर में भक्ति के अद्भुत रस का पान किया ।