मांडू शिविर में अनुभव की सीख से भाजपा को परहेज क्यों!

1255

मांडू शिविर में अनुभव की सीख से भाजपा को परहेज क्यों!

भारतीय जनता पार्टी ने ‘सिटी ऑफ़ जॉय’ में अपना तीन दिन का प्रदेश स्तर का प्रशिक्षण शिविर किया! इस शिविर को पार्टी की रणनीति के तहत मुद्दों पर आधारित चिंतन के लिए आयोजित किया गया था, पर यहां चिंतन कम भाषण ज्यादा हुए! चिंतन के विषयों में भी गंभीरता नहीं लगी। इसका सबसे बड़ा कारण था कि क्योंकि, पार्टी ने कई अनुभवी नेताओं को भुला दिया। इनके राजनीतिक अनुभव और वरिष्ठता का लाभ लिया जाना था, वो नहीं लिया गया। ऐसी स्थिति में प्रदेश स्तर का प्रशिक्षण शिविर औपचारिक बन कर रह गया।

WhatsApp Image 2022 10 10 at 5.47.53 PM

शिविर में क्या चिंतन हुआ ये पार्टी का अपना रणनीतिक मामला है। 181 पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने वही बात कही गई होगी, जो पार्टी बाहर लाना चाहती है। पर, असल में इस शिविर का अपना अलग राजनीतिक मतलब होना चाहिए था। मांडू में शिविर आयोजित करने का आशय यहां के उस राजनीतिक माहौल को अपने पक्ष में करना था, जो पिछले चुनाव में भाजपा के पक्ष में नहीं रहा! लेकिन, शिविर के अंत में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने मीडिया के सामने आकर जो बयान दिया, उसमें राजनीतिक पक्ष नदारद था। पार्टी अध्यक्ष से जिस तरह के वक्तव्य की उम्मीद की गई थी, वो सामने नहीं आया। उन्होंने तीन दिन के शिविर में हुए चिंतन पर कुछ बताने के बजाए प्लास्टिक के उपयोग को रोकने की बात कही, जो गले नहीं उतरती! क्या कोई राजनीतिक पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को प्लास्टिक के उपयोग से रोकने के लिए प्रशिक्षण शिविर का आयोजन करेगी!

WhatsApp Image 2022 10 10 at 5.48.01 PM
यदि प्रशिक्षण वर्ग की बात की बात की जाए तो संघ के क्षेत्रीय प्रचारक दीपक विस्पुते के प्रबोधन को सबसे ज्यादा प्रभावी माना गया। मौजूद कार्यकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने बहुत सटीक और प्रभावशाली बातें बताई! जबकि, संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा शिविर में अपनी कोई छाप नहीं छोड़ सके। इसके अलावा जो वक्ता थे सिर्फ जल्दबाजी में भाषण देने तक सीमित रहे। यहां विदेश नीति तक पर पाठ पढ़ाया गया, जिसकी जरुरत का मंतव्य समझ नहीं आया!

WhatsApp Image 2022 10 10 at 5.48.51 PM

‘सिटी ऑफ जॉय’ कहे जाने वाले मांडू में तीन दिन तक सत्ता और संगठन का समागम हुआ। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ संगठन से जुड़े नेताओं ने भी भाग लिया। लेकिन, पार्टी ने उन पुराने नेताओं को भुला दिया, जिनके राजनीतिक अनुभव से पार्टी के नए बने नेताओं और कार्यकर्ताओं को कुछ सीखने को मिलता। विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को उस सीख की ज्यादा जरूरत थी, जो उन्हें परिपक्व बनाती। भाजपा ने पिछला विधानसभा चुनाव हारा था, इस सच्चाई को तो नकारा नहीं जा सकता। आज भाजपा यदि सत्ता में है, तो वो जन भावना का नतीजा भी नहीं है।

मांडू के इस शिविर की सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इसमें पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता, केंद्रीय मंत्री, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विक्रम वर्मा को भुला दिया गया। बेशक उनके राजनीतिक अनुभव से पार्टी के कार्यकर्ता लाभान्वित होते और उन्हें नई सीख मिलती! लेकिन, संगठन ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की कि कार्यकर्ता उनके अनुभव से कुछ सीखते! पार्टी ने ऐसे नेताओं को ‘मार्गदर्शक मंडल’ में भेजकर अपना जो नुकसान किया, उसका हिसाब निश्चित ही बाद में सामने आएगा! मांडू के इस शिविर में यदि आदिवासी क्षेत्र में चुनावी रणनीति पर बात होना थी, तो विक्रम वर्मा से ज्यादा जानकार कौन था, पर उन्हें बतौर प्रशिक्षक बुलाना तो दूर, बतौर मेहमान भी नहीं बुलाया गया, जबकि वे उसकी जिले के निवासी हैं और उनकी पत्नी पड़ौस की विधानसभा से विधायक हैं। पार्टी की नीति के मुताबिक यदि विक्रम वर्मा मार्गदर्शक मंडल में भी हैं, तो क्या पार्टी को उनके मार्गदर्शन की जरुरत महसूस नहीं होती!

 

WhatsApp Image 2022 10 10 at 5.48.52 PM

सिर्फ विक्रम वर्मा ही नहीं इंदौर से सुमित्रा महाजन, कृष्णमुरारी मोघे को भी भुला दिया गया। जबकि, ये दोनों नेता भी अनुभव में उस सभी नेताओं से ज्यादा समृद्ध हैं, जो मांडू में प्रशिक्षण देने पहुंचे थे। सुमित्रा महाजन के पास भी अलग तरह का अनुभव है। वे लोकसभा अध्यक्ष जैसे बड़े पद पर रही हैं, इसलिए वे जो सीख देती, वो निश्चित रूप से कार्यकर्ताओं के लिए काम की बात होती! यही स्थिति कृष्णमुरारी मोघे की है, जो सांसद भी रहे और विधायक भी! संघ से भी वे जुड़े रहे हैं। इस दृष्टि से भी वे कार्यकर्ताओं को काम की बात बताते! पर, ऐसा नहीं किया गया। जब यह शिविर आदिवासी बहुल इलाके में किया जा रहा था तो केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को क्यों भुलाया गया। वे आदिवासी हैं और निश्चित रूप से उनकी बातों का अलग प्रभाव पड़ता! शिविर में ऐसा कोई आदिवासी नेता को नहीं बुलाया गया जो अगले चुनाव को लेकर कोई सलाह देता!

पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और सांसद प्रभात झा भी उन नेताओं में हैं, जिन्हें भाजपा ने इस शिविर में बुलाने लायक नहीं समझा! जबकि, मीडिया संपर्क के मामले में उनके पास अनुभव का खजाना है। पार्टी ने मीडिया से सामंजस्य को लेकर कोई चिंतन किया या नहीं, ये तो नहीं पता! पर, पार्टी का किसी भी नए या पुराने प्रवक्ता को शिविर में नहीं बुलाया गया। गोविंद मालू, दीपक विजयवर्गीय और हितेष वाजपेयी के अलावा वर्तमान प्रवक्ताओं को भी शिविर से दूर रखा गया! फिर शिविर में चिंतन का स्तर क्या होगा, ये समझा जा सकता है।

देखा जाए तो पार्टी के ऐसे शिविरों में पदाधिकारियों, नेताओं और कार्यकर्ताओं को सबसे ज्यादा जरूरत मीडिया से सामंजस्य बनाने की होती है। कई बार पार्टी इस वजह से मुश्किल में भी फंसी, पर शिविर में संभवत इस मुद्दे पर कोई बात ही नहीं हुई। भाजपा ने न तो प्रदेश प्रवक्ता रहे गोविंद मालू को बुलाया और न दीपक विजयवर्गीय को! यहां तक कि अभी जो पार्टी के प्रवक्ता हैं, वे भी नदारद रहे। आदिवासी क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को अगले विधानसभा चुनाव के लिए जिस तरह से रणनीतिक तौर पर तैयार किया जाना था, वो शायद नहीं किया गया। इसका सीधा सा आशय है कि शिविर के प्रशिक्षकों के अलावा चिंतन के विषयों को लेकर भी गंभीरता नहीं बरती गई!

भाजपा में पहले जब भी ऐसे शिविर हुए, उसमें चिंतन के विषयों के चयन को लेकर भी वरिष्ठ नेताओं की समिति बनती थी, जो ये तय करती थी कि वर्तमान समय में प्रशिक्षण शिविरों में किन विषयों पर चिंतन किया जाना चाहिए। लेकिन, लगता है अब वो सब भुला दिया गया। अब पार्टी के प्रशिक्षण शिविर महज औपचारिक बनकर रह गए। इनमें नेताओं की भाषणबाजी के अलावा चिंतन जैसा कुछ हुआ हो, लगता नहीं! शिविर में शामिल कुछ कार्यकर्ताओं ने भी बताया कि तीन दिन ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसमें कार्यकर्ताओं को सहभागिता का मौका मिला हो! जबकि, चिंतन का मतलब है आपसी चर्चा होना! जबकि, मांडू में जो हुआ वो एकालाप से ज्यादा कुछ नहीं हुआ! भाषणबाजी भी ऐसे विषयों पर हुई, जिसका कार्यकर्ताओं से सीधा कोई सरोकार नहीं होता! इसलिए कहा जा सकता है, कि इस शिविर से पार्टी को कोई ऐसा फ़ायदा तो शायद ही हुआ हो, जो अगले विधानसभा चुनाव के नजरिए से पार्टी कार्यकर्ताओं को तैयार करे! 181 कार्यकर्ता मांडू से क्या सीखकर गए, ये सच सामने आने में भी ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा!

Author profile
images 2024 06 21T213502.6122
हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

संपर्क : 9755499919
[email protected]