Law and Justice:आरक्षण की सीमा को बदलने में कोई परेशानी नहीं! 

515

Law and Justice:आरक्षण की सीमा को बदलने में कोई परेशानी नहीं!  

केन्द्र सरकार की और से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा है कि आरक्षण की पचास प्रतिशत की सीमा का नियम ऐसा नहीं है जिसे बदला न जा सके। पचास प्रतिशत का सामान्य नियम है, लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में इसे बदला जा सकता है। जो नियम बदला जा सकता हो तथा लचीला हो, उसे संविधान का मूल ढांचा नहीं कहा जा सकता। हाल ही में एक सरकारी समिति की रिपोर्ट में सर्वोच्च न्यायालय को बताया गया कि ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग’ को परिभाषित करने के लिए आय एक व्यवहार्य मानदंड माना गया है। अक्टूबर 2021 में ‘नीट’ के उम्मीदवारों द्वारा एक याचिका दायर कर पूछा गया कि अखिल भारतीय कोटा श्रेणी के तहत नीट मेडिकल प्रवेश में दस प्रतिशत आरक्षण के अनुदान के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की पहचान करने के लिए वार्षिक आय मानदंड के रूप में आठ लाख रुपए का निर्धारण किस प्रकार से किया गया है। दस प्रतिशत कोटा 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत अनुच्छेद पंद्रह और सौलह में संशोधन करके पेश किया गया था। इससे संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) सम्मिलित किए गए।

यह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए शिक्षा संस्थानों में नौकरियों और प्रवेश में आर्थिक आरक्षण के लिए है। यह अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) तथा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50% आरक्षण नीति द्वारा कवर नहीं किए गरीबों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए अधिनियमित किया गया था। यह केन्द्र और राज्यों को समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की पहचान के लिए आय मानदंड 17 जनवरी, 2019 की एक अधिसूचना द्वारा पेश किया गया था, जिसमें ईडब्ल्यूएस की पहचान के लिए अन्य शर्तें रखी गई थीं, जैसे लाभार्थी के परिवार के पास पांच एकड़ कृषि भूमि, एक हजार वर्गफुट का आवासीय फ्लैट और अधिसूचित/ गैर-अधिसूचित नगर पालिकाओं में 100/200 वर्ग गज और उससे अधिक का आवासीय भूखंड नहीं होना चाहिए।

इस रिपोर्ट में 8 लाख रूपए उपयुक्त राशि मानी गई। समिति ने कहा कि 8 लाख रुपए का मानदंड अधिक समावेश और समावेशन त्रुटियों के बीच एक उपयुक्त राशि है और प्रवेश एवं नौकरियों में आरक्षण का विस्तार करने के लिए ईडब्ल्यूएस का निर्धारण करने के लिए इसे उचित सीमा में माना। यह देखते हुए कि वर्तमान में प्रभावी आयकर छूट की सीमा व्यक्तियों के लिए लगभग 8 लाख रुपए है। समिति ने कहा कि पूरे परिवार के लिए 8 लाख रुपए की सकल वार्षिक आय सीमा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में शामिल करने के लिये उचित होगी। समिति ने इस धारण को खारिज कर दिया कि केंद्र ने एक संख्या के रूप में 8 लाख रूपए को ‘अप्रासंगिक रूप से अपनाया’ था। क्योंकि, इस उपयोग ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) क्रीमी लेयर कट-आफ के लिये भी किया जाता था।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का मानदंड आवेदन के वर्ष से पहले के वित्तीय वर्ष से संबंधित है, जबकि पिछड़ा वर्ग श्रेणी में क्रीमी लेयर के लिए आय मानदंड लगातार तीन वर्षों के लिए सकल वार्षिक आय पर लागू होता है। दूसरे, पिछड़ा वर्ग क्रीमी लेयर के मामले में वेतन, कृषि और पारंपरिक कारीगर व्यवसायों से होने वाली आय को विचार से बाहर रखा गया है। जबकि, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 8 लाख रूपए के मानदंड में खेती सहित सभी स्त्रोत शामिल हैं। इसलिए एक ही कट-आफ संख्या होने के बावजूद उनकी रचना अलग है और दोनों को समान नहीं माना जा सकता है। आय आधारित सीमा की वांछनीयता को सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है। इसे देशभर में आर्थिक एवं सामाजिक नीति के रूप में अपनाया जा सकता है।

शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के मामले में अनिवार्य रूप से नए मानदंडों को अपनाने से प्रक्रिया में कई महीनों की देरी होगी। इसका असर भविष्य के सभी प्रवेषों और शैक्षिक गतिविधियों/ शिक्षण/परीक्षाओं पर अनिवार्य रूप से व्यापक प्रभाव पड़ेगा जो विभिन्न वैधानिक या न्यायिक रूप से बाध्य हैं। हालांकि, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आय की परवाह किए बिना उस व्यक्ति को बाहर कर सकता है जिसके परिवार के पास पांच एकड़ या उससे अधिक की कृषि भूमि है। इसके साथ ही आवासीय संपत्ति मानदंड पूरी तरह से हटाया जा सकता है। समिति ने आवासीय संपत्ति मानदंड को पूरी तरह से छोड़ दिया। लेकिन, 5 एकड़ कृषि भूमि मानदंड को बरकरार रखा है। तीन वर्ष के फीडबैक लूप चक्र का उपयोग इन मानदंडों के वास्तविक परिणामों की निगरानी के लिए और भविष्य में उन्हें समायोजित करने के लिए किया जा सकता है।

आय और संपत्तियों को सत्यापित करने तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आरक्षण व सरकारी योजनाओं हेतु लक्ष्यीकरण में सुधार के लिये आंकड़ों के आदान-प्रदान एवं सूचना प्रौद्योगिकी का अधिक सक्रिय रूप से उपयोग किया जाना चाहिये। चल रही प्रत्येक प्रक्रिया में मौजूदा और प्रचलित मानदंड में जहां आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आरक्षण उपलब्ध है, जारी रखा जाना चाहिये तथा इस रिपोर्ट में अनुशंसित मानदंड अगले विज्ञापन/प्रवेश चक्र के लागू किए जा सकते हैं।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को नौकरियों और उच्च षिक्षण संस्थाओं में दस प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में अभी हाल ही में देश की सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सुनवाई हुई है। केंद्र सरकार का कहना है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटा आर्थिक न्याय की अवधारणा के अनुकूल है। केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थाओं में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के संविधान संशोधन को सही ठहराते हुए कहा कि यह आर्थिक न्याय की अवधारणा के अनुकूल है। केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता, बल्कि उसे मजबूती प्रदान करता है। संविधान की प्रस्तावना में भी आर्थिक न्याय की बात कही गई है। सर्वोच्च न्यायालय में बहुत सी याचिकाएं हैं जिन पर हाल ही में बहस हुई है तथा जिनमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10% आरक्षण देने का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को चुनौती दी गई है।

याचिकाओं में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आरक्षण को संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करने वाला बताते हुए रद्द करने की मांग की गई। इस मामले पर आजकल प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई कर चुकी है, जिसका निर्णय आना है। केन्द्र सरकार की और से तुषार मेहता ने कहा है कि आरक्षण की 50% की सीमा का नियम ऐसा नहीं है जिसे बदला न जा सके। 50% का सामान्य नियम है, लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में इसे बदला जा सकता है। जो नियम बदला जा सकता हो तथा लचीला हो, उसे संविधान का मूल ढांचा नहीं कहा जा सकता। तुषार मेहता का कहना था कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है। उसकी उसी तरह से व्याख्या होनी चाहिए।

संसद ने अगर महसूस किया कि अनुच्छेद 15 (4) और 15 (5) ये अनुच्छेद अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान करते हैं, के अलावा भी आकांक्षी वर्ग है, युवा हैं (ईडब्ल्यूएस) जिन्हें जरूरत है। यदि उनके लिए सकारात्मक कदम उठाया गया है और प्रावधान किया गया है तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। संविधान की प्रस्तावना आर्थिक मजबूती देने की बात करती है। श्री मेहता ने कहा कि संविधान संशोधन के अन्य मौजूदा उपबंधों में कही गई बातों के आधार पर नहीं परखा जाएगा। उसे सिर्फ संविधान के मूल ढांचे की कसौटी पर ही परखा जाएगा। गुजरात सरकार की और से पेश वकील कानू अग्रवाल ने भी आर्थिक आधार पर गरीबों के आरक्षण को सही ठहराया।