उच्च शिक्षा मंत्री की सरपरस्ती में “विक्रम विवि” की साख पर उठा सवाल

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उच्च शिक्षा मंत्री की सरपरस्ती में “विक्रम विवि” की साख पर उठा सवाल

निरुक्त भार्गव की विशेष रिपोर्ट

ऐसा आभास हो रहा है जैसे उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय का डब्बा गोल हो रहा है! आधारभूत विकास और अकादमिक सोपानों को हासिल करने के दरवाज़े मानों बंद हो रहे हैं! बंगलुरु से आई पांच सदस्यीय नैक पीयर टीम द्वारा मूल्यांकन एवं प्रत्यायन के लिए किए गए तीन दिवसीय निरीक्षण की रिपोर्ट के निष्कर्ष तो इन्हीं सब आशंकाओं की तरफ इशारा कर रहे हैं! जिस विक्रम विश्वविद्यालय की रेटिंग 2017 में ‘ए’ ग्रेड की थी, वो साल 2022 खत्म होने से पहले गिरकर “बी++” पर जा पहुंची है! मोटी–मोटी तनख्वाह और क्वार्टर, वाहन इत्यादि का सुखाधिकार भोग रहे विश्वविद्यालय के कर्ता-धर्ताओं से कौन और क्या बोले, पर उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव से तो पूछना ही पड़ेगा कि भाई साहब आपके राज में ये सब क्या हो रहा है?
यदि उच्च शिक्षा अनुदान आयोग से अधिकाधिक ग्रांट हासिल करनी हो और खुले मार्केट में अपनी चमक-दमक बढ़ानी हो, तो ‘नैक’ जैसी एजेंसी के नाजों-नखरों और जरूरतों का पूरा-पूरा ध्यान रखना होता है! आज के भीषण कमर्शियल दौर में छात्र-छात्राएं उसी कॉलेज/यूनिवर्सिटी का रुख करते हैं, जहां बेहतर शैक्षणिक वातावरण हो और जहां से अर्जित की गई डिग्रीयां उन्हें गलाकाट प्रतिस्पर्धा में खड़े रहने का संबल प्रदान करे! सो, संबंधित प्रबंधन अपने-अपने स्तर पर कोशिश करता है कि वो ‘ए’, ‘ए++’ की ग्रेड वाले संस्थान की दौड़ में आ जाए और फिर उतरोत्तर बना और बढ़ता चले. कॉलेज के स्तर पर राज्य शासन और यूनिवर्सिटी के स्तर पर खुद राज्यपाल-सह-कुलाधिपति इन सब बातों की लगातार मॉनिटरिंग करते हैं.
मगर, ये तो अत्यंत चिंता वाली बात है कि विक्रम विश्वविद्यालय, जिसके जिम्मेदार और जवाबदेह लोग पिछले पांच साल से निरंतर अपने वस्त्रों की इस्त्री बिगड़ने नहीं दे रहे थे, अब वो एकाएक अस्त-व्यस्त हो गए हैं! उन्हें इस बात का दुःख साल रहा होगा कि हम फिर से फिसड्डी क्यों हो गए? हमारी प्रतिष्ठा का तमगा बेरंग कैसे हो गया? हमारी शानो-शौकत क्योंकर बेनूर हो गई? सिस्टम में छिद्र तो हैं, पर किसी को दिखाई देते हैं, किसी को नहीं और ये भी कि किसी को थोड़े-थोड़े, तो किसी को सबरे दिखाई दे जाते हैं! प्रचलित व्यवस्था में ‘अपील’ या ‘रिव्यू’ के प्रावधान भी होते हैं, लेकिन अब इन दांव-पेचों का इस्तेमाल करने के बाद यदि कुछ हासिल भी कर लिया जाएगा तो उसका महत्व और मूल्य क्या रह जाएगा?
मोहन यादव जी पिछले 15 वर्षों से सम्राट विक्रमादित्य की ध्वज पताका को फहराने में सक्रिय हैं और ऐसा होना भी चाहिए, क्योंकि उन्होंने इन्हीं सब चीजों के बलबूते सार्वजनिक जीवन में ये सब मुकाम हासिल किए हैं! नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मध्यप्रदेश में सबसे पहले लागू करने की दुदुम्भी बजाने वाले उच्च शिक्षा मंत्री जी का बार-बार ये दावा है कि उनके अपने विक्रम विश्वविद्यालय ने सबसे पहले और सर्वाधिक रोजगारमूलक और सर्वथा उपयोगी पाठ्यक्रम शुरू किए हैं! कोई 50 करोड़ रुपए की स्वीकृति देकर नए-नए भवन बनाए जा रहे हैं, कैंपस में! गाहे-बगाहे ‘इवेंट्स’ कर ‘मोमेंटम’ बनाया जा रहा है, विद्यार्थियों को यहां आकर पढ़ने के लिए…..
आज मध्य प्रदेश का चाहे सरकारी विश्वविद्यालय हो या फिर निजी, देश के टॉप 100 विश्वविद्यालयों में शुमार नहीं है! प्रदेश के किसी कॉलेज की देशव्यापी रेटिंग की चर्चा करना तो व्यर्थ ही है! निवरी मान्यताओं के खेल भी जगजाहिर हो चुके हैं!
ऐसे में करना क्या चाहिए?…
“कॉलेज और यूनिवर्सिटी में जीवन्तता लौटाइए,
समूचे कैंपस के माहौल को स्पंदित होने दीजिए||
||क्या खलल पड़ेगा यदि क्रीडांगन गूंजेंगे,
और किसकी मस्ती छिन जाएगी कि कैंटीन शबाब पर होंगे||
||फुलवारी से किसे है तौबा, यारों जरा म्यूजिकल फाउंटेन को भी तो रोशन करो,
लैब और लाइब्रेरी को जरा आबाद तो होने दीजिए||