Fraud in CHIPS : 100 करोड़ का अवैध लेन-देन, IAS के खाते में भी बड़ी रकम
Raipur : छत्तीसगढ़ इंफोटेक प्रमोशन सोसाइटी (चिप्स) में एक नया घोटाला सामने आया। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस सप्ताह कई बार ‘चिप्स’ के दफ्तर में तलाशी ली। वहां 100 करोड़ रुपयों से अधिक की अवैध लेन-देन के दस्तावेज मिले हैं। ऐसे चेक मिले हैं, जिस पर तत्कालीन CEO समीर विश्नोई के हस्ताक्षर हैं, लेकिन उनको जारी करने के लिए किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
IAS समीर विश्नोई की रिमांड अवधि बढ़ाने के लिए ED की ओर से अदालत में जो आवेदन दिया गया था, उसमें इस घोटाले का संकेत है। ED की ओर से अदालत को बताया गया है कि 18 अक्टूबर को ‘चिप्स’ मुख्यालय में तलाशी के दौरान जो दस्तावेज मिले हैं, उनमें चेक जारी होने से पहले कोई अप्रूवल नहीं लिया गया है, उनको रजिस्टर में भी दर्ज नहीं किया गया। ऐसा क्याें हुआ, इस बात की जानकारी नहीं मिली। समीर विश्नोई के एचडीएफसी बैंक के खाते में बहुत बड़ी रकम जमा है। बार-बार पूछने पर भी समीर उस रकम का स्रोत नहीं बता सके। पर, यह सामने आ गया कि समीर विश्नोई ने बड़ी मात्रा में निजी लोगों को नकदी दी है। लेकिन, वे कैश ट्रांसफर की डिटेल नहीं दे रहे। उन्होंने कहा है कि हो सकता है कि यह रकम उनकी पत्नी प्रीति गोदारा ने दी हो। ED का कहना है कि समीर विश्नोई एक बड़े घोटाले में शामिल हैं। अब अदालत ने समीर विश्नोई को फिर से ED की रिमांड में भेज दिया है। बताया जा रहा है कि इस पूछताछ के बाद ED घोटाले के कुछ नये तथ्य सामने लाएगी।
कोयला कारोबारी को भेजे जाते थे दस्तावेज
ED की ओर से बताया गया है कि समीर विश्नोई ने स्वीकार किया है कि वे एक कोयला कारोबारी को सरकारी दस्तावेज देते थे। यहां तक कि टेंडर और GST केस के विवरण भी कारोबारी से साझा किये गये थे। पूछताछ में विश्नोई ने यह नहीं बताया है कि उस कारोबारी से कार्यालय दस्तावेज क्यों साझा किए।
परमिट की ऑनलाइन व्यवस्था खत्म क्यों
अभी तक की जांच में यह भी सामने नहीं आया कि समीर विश्नोई ने खनिज साधन विभाग का संचालक रहते हुए कोयला परिवहन परमिट की जो ऑनलाइन व्यवस्था खत्म की, उसका कोई अप्रूवल नहीं था। शासन स्तर पर ऐसा आदेश जारी करने का कोई निर्देश मौजूद नहीं है। समीर विश्नोई भी यह नहीं बता रहे हैं कि ऐसी अधिसूचना जारी करने के लिए उन्हें किसने निर्देशित किया था।
ED इसी दस्तावेज को भ्रष्टाचार का कारण
‘चिप्स’ ऐसे घोटालों के लिए पहले भी बदनाम हुआ है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में यहां ई-टेंडर घोटाला हुआ था। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में सामने आया था कि अफसरों ने रिंग बनाकर टेंडर अपने चहेतों में ही बांट दिए हैं। ‘कैग’ की रिपोर्ट में सामने आया कि 17 विभागों के लिए जिस कम्प्यूटर का इस्तेमाल का ई-टेंडर जारी किया गया। उसी कम्प्यूटर से टेंडर भरे भी गए। ऐसा एक हजार 921 टेंडर के साथ हुआ। इसकी रकम चार हजार 601 करोड़ रुपए से अधिक थी। कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभालते ही इसकी जांच के लिए एक एसआइटी का गठन किया। लेकिन इसकी जांच कभी परवान नहीं चढ़ पाई।