Flashback: दक्षिण अफ़्रीका में शुतुरमुर्ग की सवारी

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Flashback: दक्षिण अफ़्रीका में शुतुरमुर्ग की सवारी

दिसंबर 2011 में सेवा निवृत्त होने के तत्काल बाद मैं चार दिनों के लिए इंडोनेशिया के बाली द्वीप की यात्रा पर गया था। उसके कुछ दिनों बाद मैंने 15 दिन की दक्षिण अफ़्रीका की एक महत्वाकांक्षी यात्रा की योजना बनायी। यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया आदि घूम लेने के बाद दक्षिण अफ़्रीका देखने की तीव्र उत्कंठा उत्पन्न हुई। प्रथम मैं अफ़्रीका के जंगल देखना चाहता था। दूसरे मैं महात्मा गांधी से जुड़े स्थानों को देखना चाहता तथा इसके अतिरिक्त अत्यधिक सुंदर और भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण केपटाउन को भी देखना चाहता था।मई के महीने में दक्षिण अफ़्रीका में हल्के जाड़े का मौसम रहता है। 20 मई, 2012 को मैं लक्ष्मी के साथ मुंबई से रवाना हुआ। दुबई में जहाज़ बदल कर हम लोग दक्षिण अफ़्रीका के सबसे बड़े शहर जोहानसबर्ग पहुँचे।वहाँ होटल पहुँचने तक अंधेरा हो चुका था तथा जब मैंने शहर के मध्य भाग में जाने की तैयारी की तो मुझे सुरक्षा कारणों से रोक दिया गया। वहाँ अपराधियों के कारण केवल दिन में ही सतर्क रह कर भ्रमण किया जा सकता है।

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अगले दिन जोहानसबर्ग शहर देखने के बाद हम लोग क्रुगर नेशनल पार्क के लिए टैक्सी से रवाना हुए और वहाँ नेशनल पार्क से लगे हुए एक रिसोर्ट में रुक गये। क्रुगर नेशनल पार्क दक्षिण अफ्रीका का सबसे बड़ा और सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण गेम रिजर्व में प्रसिद्ध है। लगभग दो मिलियन हेक्टेयर में फैला हुआ यह पार्क दक्षिण अफ़्रीका के पूर्वोत्तर में स्थित है। यह ग्रेट लिम्पोपो ट्रांसफ्रंटियर पार्क का हिस्सा है जो मोज़ाम्बिक के लिम्पोपो नेशनल पार्क से जुड़ा हुआ एक विशाल जंगल क्षेत्र है।यहाँ मैंने तीन दिन रुक कर पाँच बार जंगल की यात्रा की। यहाँ के पेड़ पौधे भारत से भिन्न थे। बिखरे हुए छोटे पेड़ों के इस जंगल में मुझे ऊंचे और बड़े कान के अफ़्रीकी हाथियों का झुंड पास से सड़क पार करता हुए मिला। एक रात की सफ़ारी में हमारी खुली छोटी गाड़ी से बिलकुल लगा हुआ एक शेर लाइट में दिखा। दिन में जिराफ, ज़ेब्रा, इम्पाला हिरण, हिप्पो, गेंडे तथा अन्य छोटे जानवर दिखाई दिए। एक दोपहर को हमारी अनुपस्थिति में बंदरों ने हमारे रिसोर्ट के कमरे में खिड़की खोलकर धावा बोला और खाने का सामान ले गए या बिखरा गये। लक्ष्मी का पर्स भी फाड़ दिया। अंतिम सुबह मेरी टैक्सी की महिला चालक कार में ही हमें अपने मन से जंगल ले गयी और अत्यधिक दुर्लभ तेंदुआ भी जाते जाते दिखा दिया। मैं बहुत भाग्यशाली था कि मुझे क्रुगर में बिग फ़ाइव शेर, तेंदुए, भैंसा, हाथी और गैंडो के साथ वे सब जानवर देखने को मिले जो वहाँ थे।

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जोहानसबर्ग वापस आकर जहाज़ से हम लोग डरबन पहुँचे। डरबन के समुद्री किनारे और बीच बहुत सुंदर हैं। पूरा शहर बड़ा व्यवस्थित बना हुआ है। यह क्वाज़ुलु-नटाल राज्य का सबसे बड़ा शहर है और जोहानसबर्ग और केपटाउन के बाद दक्षिण अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। डरबन दक्षिण अफ्रीका का सबसे व्यस्त बंदरगाह भी है। प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मूसा मबिदा के नाम पर बना हुआ स्टेडियम एक आकर्षण का केन्द्र है। स्टेडियम के शिखर पर बना मंत्रमुग्ध कर देने वाला मेहराब असाधारण इंजीनियरिंग का परिणाम है। मेरा ध्यान महात्मा गांधी पर केंद्रित था। डरबन से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर फीनिक्स में गांधीजी का आश्रम स्थित है। 1904 में उस समय के मोहनदास करमचंद गांधी ने, जो 1893 से डरबन में रहते थे, एक छोटे सी बस्ती में फीनिक्स आश्रम की स्थापना की थी। आवास, क्लिनिक, स्कूल और प्रिंटिंग प्रेस आदि स्थापित कर फीनिक्स आश्रम में गांधी जी, उनके परिवार और उनके अनुयायियों ने पीड़ितों की बहुत सेवा की।गांधी जी ने यहीं पर सविनय अवज्ञा आंदोलन का स्वप्रेरणा से आविष्कार किया था। इस आश्रम में मैं बहुत देर तक रूका और भावनाओं से ओत प्रोत हो गया। इस स्थान के पास ही आदिवासियों का सांस्कृतिक नृत्य भी देखा।अब मैं उस स्थान को देखना चाहता था जहाँ बहुत कम लोग जाते हैं और वह स्थान डरबन से 80 किलोमीटर दूर पीटरमेरिट्जबर्ग रेलवे स्टेशन था। हम लोग टैक्सी से इस स्थान पर पहुँचे। 7 जून, 1893 को गांधी को इसी स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास के डिब्बे से फेंक दिया गया था। अचानक मोहनदास करमचंद गांधी का व्यक्तित्व और इसी के साथ आगामी विश्व का इतिहास बदल गया। इस अत्याचार से लड़ने के लिए उन्होंने जो अहिंसक आंदोलन खड़ा किया वह विश्व की एक धरोहर बन गया। भीगी आँखों से मैंने इस स्थल का चित्र लिया।

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डरबन से मैं जहाज़ द्वारा संसार के सुंदरतम शहरों में से एक केपटाउन पहुँचा। समुद्र के किनारे झिलमिलाता हुआ यह शहर बहुत नयनाभिराम है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ यहाँ की सड़कें और भवन बहुत आकर्षक हैं। इस शहर के एक भाग में एक छोटा परन्तु काफ़ी ऊँचा पहाड़ टेबल माउंटेन है। रोप वे से ऊपर जाकर ऊपर से समतल इस पहाड़ से विहंगम दृश्य दिखाई देता है।टेबल माउंटेन से एकत्रित वर्षा से उपलब्ध पानी के कारण ही यह शहर यहाँ पर बसाया गया था। शहर देखने के बाद अपने मुख्य आकर्षण केप ऑफ़ गुड होप देखने एक सुबह निकले। मार्ग बहुत ही रोचक था जहाँ कभी थल और जल बाएँ और दाहिने दोनों तरफ़ दिखाई पड़ते थे। रास्ते में बोल्डर बीच में रुक कर उड़ न सकने वाली सुन्दर चिड़िया पेंग्विन की कॉलोनी देखने का अभूतपूर्व अवसर मिला। दूर दक्षिणी ठंडे समुद्र से यहाँ आकर ये अपना घोंसला बनाती हैं। केप ऑफ़ गुड होप के पास पहुँच कर पार्किंग में जब कार रुकी तो ओरंगउटान वनमानुष का गाड़ी पर हमला हो गय। ये यात्रियों के हाथों और गाड़ियों के अंदर से खाने का सामान छीन लेते हैं। पार्किंग से पैदल चलकर हम लोग केप पहुँचे। यहाँ कभी वास्कोडिगामा ने खड़े होकर समुद्र की दिशा बदल जाने के कारण प्रसन्न होकर इसे यह नाम दिया था। वैसे यह केप अफ़्रीकी महाद्वीप का सबसे दक्षिणी छोर न होकर सबसे दक्षिण-पश्चिमी छोर है। सर्वाधिक दक्षिणी छोर यहाँ से लगभग 250 किमी दूरी पर पूर्व दिशा में केप एगुलास है।केप ऑफ़ गुड होप पर जाकर खड़ा होना मेरे लिए एक अप्रतिम अनुभव था।

केपटाउन से एक दिन का कार्यक्रम मैंने वहाँ से क़रीब डेढ़ सौ किलोमीटर उत्तर में स्थित मीरेन्डल वाइनरी देखने का बनाया।यहाँ बहुत उन्नत प्रकार के अंगूरों से वाइन बनायी जाती है।यह विशाल वाइनरी देखना एक अनुपम अनुभव था। यहाँ अंगूर के बड़े खेत, फर्मेंटेशन के विशाल टैंक थे। ट्रॉली ट्रेन में बैठकर घुमावदार ढालू पटरी से भूमिगत स्टोर में पहुँचना एक अच्छा अनुभव था। ये भूमिगत स्टोर वर्ष भर एक ही तापमान पर रहते हैं। वाइनरी के आस पास सुन्दर उपवन थे जहां जानवर और पक्षी रखे गए थे। देर शाम को केप टाउन वापस लौटकर आए। केपटाउन में एक गुजराती व्यवसायी द्वारा संचालित रेस्टोरेंट में बहुत अच्छा भारतीय भोजन मिल जाता था। केपटाउन से 2 दिवसीय सड़क मार्ग से एक अन्य मनोरंजक यात्रा पर रवाना हुआ। केपटाउन से क़रीब साढ़े 4 सौ किलोमीटर दूर पूरब में लंबी यात्रा के बाद हम लोग कैंगो की गुफ़ा पहुँचे जिसे एक आश्चर्य माना जाता है। इस गुफा में सीढ़ियों से नीचे उतरने के बाद एक लंबी चार किलोमीटर की गुफा है जिसके केवल प्रारंभिक भाग में ही सामान्य पर्यटक जाते हैं। सेंड स्टोन पर पानी के कटाव से बनी इस गुफा में कहीं बड़े हाल हैं कहीं तरह तरह के पिलर और अनेक आकृतियाँ तथा कई बहुत छोटे मार्ग हैं। गुफा के अंदर बहुत सुरुचिपूर्ण तरीक़े से प्रकाश व्यवस्था की गई है। अधिक साहसिक व्यक्तियों के लिए बहुत ही संकरे मार्ग से होकर गुफा में और आगे जाना एक बड़ी चुनौती है। कुछ दूरी पर बने एक होटल में रात्रि विश्राम कर अगली सुबह हम लोग डेयरी उत्पादन के केंद्र उटशूर्न पहुँचे। यह क्षेत्र डेयरी उत्पाद के अतिरिक्त फल, तम्बाकू, तेल और अन्य कृषि उत्पादों का भी केंद्र है। यहाँ पर्यटक शुतुरमुर्ग पास से देखने के लिए आते हैं। यहाँ शुतुरमुर्ग की सवारी भी कराई जाती है। लक्ष्मी को शतुरमुर्ग पर लम्बी सवारी करने का अवसर प्राप्त हुआ। हम लोग पुनः लौट कर केपटाउन आए। अगले दिन केपटाउन से हवाई जहाज़ द्वारा हम लोग दुबई रवाना हो गए जहाँ दो दिन रुक कर वापस भारत लौट आए।

दक्षिण अफ़्रीका के गोरे शासक पहले काले व्यक्तियों के विरुद्ध रंगभेद की नीति अपनाते थे। नेल्सन मंडेला के आंदोलन से यहाँ 1992 में समानता पर आधारित प्रजातांत्रिक व्यवस्था प्रारंभ हुई। 12 लाख वर्ग किमी से बड़े देश दक्षिण अफ़्रीका की मेरी यह यात्रा जितनी विविधतापूर्ण थी वह अन्यत्र कहीं संभव नहीं है।

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किलोमीटर उत्तर में स्थित मीरेन्डल वाइनरी देखने का बनाया।यहाँ बहुत उन्नत प्रकार के अंगूरों से वाइन बनायी जाती है।यह विशाल वाइनरी देखना एक अनुपम अनुभव था। यहाँ अंगूर के बड़े खेत, फर्मेंटेशन के विशाल टैंक थे। ट्रॉली ट्रेन में बैठकर घुमावदार ढालू पटरी से भूमिगत स्टोर में पहुँचना एक अच्छा अनुभव था। ये भूमिगत स्टोर वर्ष भर एक ही तापमान पर रहते हैं। वाइनरी के आस पास सुन्दर उपवन थे जहां जानवर और पक्षी रखे गए थे। देर शाम को केप टाउन वापस लौटकर आए। केपटाउन में एक गुजराती व्यवसायी द्वारा संचालित रेस्टोरेंट में बहुत अच्छा भारतीय भोजन मिल जाता था। केपटाउन से 2 दिवसीय सड़क मार्ग से एक अन्य मनोरंजक यात्रा पर रवाना हुआ। केपटाउन से क़रीब साढ़े 4 सौ किलोमीटर दूर पूरब में लंबी यात्रा के बाद हम लोग कैंगो की गुफ़ा पहुँचे जिसे एक आश्चर्य माना जाता है। इस गुफा में सीढ़ियों से नीचे उतरने के बाद एक लंबी चार किलोमीटर की गुफा है जिसके केवल प्रारंभिक भाग में ही सामान्य पर्यटक जाते हैं। सेंड स्टोन पर पानी के कटाव से बनी इस गुफा में कहीं बड़े हाल हैं कहीं तरह तरह के पिलर और अनेक आकृतियाँ तथा कई बहुत छोटे मार्ग हैं। गुफा के अंदर बहुत सुरुचिपूर्ण तरीक़े से प्रकाश व्यवस्था की गई है। अधिक साहसिक व्यक्तियों के लिए बहुत ही संकरे मार्ग से होकर गुफा में और आगे जाना एक बड़ी चुनौती है। कुछ दूरी पर बने एक होटल में रात्रि विश्राम कर अगली सुबह हम लोग डेयरी उत्पादन के केंद्र उटशूर्न पहुँचे। यह क्षेत्र डेयरी उत्पाद के अतिरिक्त फल, तम्बाकू, तेल और अन्य कृषि उत्पादों का भी केंद्र है। यहाँ पर्यटक शुतुरमुर्ग पास से देखने के लिए आते हैं। यहाँ शुतुरमुर्ग की सवारी भी कराई जाती है। लक्ष्मी को शतुरमुर्ग पर लम्बी सवारी करने का अवसर प्राप्त हुआ। हम लोग पुनः लौट कर केपटाउन आए। अगले दिन केपटाउन से हवाई जहाज़ द्वारा हम लोग दुबई रवाना हो गए जहाँ दो दिन रुक कर वापस भारत लौट आए।

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दक्षिण अफ़्रीका के गोरे शासक पहले काले व्यक्तियों के विरुद्ध रंगभेद की नीति अपनाते थे। नेल्सन मंडेला के आंदोलन से यहाँ 1992 में समानता पर आधारित प्रजातांत्रिक व्यवस्था प्रारंभ हुई। 12 लाख वर्ग किमी से बड़े देश दक्षिण अफ़्रीका की मेरी यह यात्रा जितनी विविधतापूर्ण थी वह अन्यत्र कहीं संभव नहीं है।

Author profile
n k tripathi
एन. के. त्रिपाठी

एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।

वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।