गरीब सवर्णों के आरक्षण का खुला रास्ता, विवाद जारी रहने की संभावना
अरुण पटेल: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 में अन्य पिछड़े वर्गों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए जो संविधान में संशोधन किया था उसे देश की सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय ने उस संशोधन को मान्य करते हुए इन वर्गों को आरक्षण का लाभ मिलने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। इस फैसले के बाद भाजपा इसका भरपूर लाभ लेने की कोशिश करेगी और उसे ऐसा करना भी चाहिए। अभी भी आरक्षण के मुद्दे पर विवाद थमने की जगह जारी ही रहने की संभावना है। कोई भी राजनीतिक दल सीधे-सीधे इस आरक्षण का विरोध तो नहीं कर पायेगा लेकिन वह अन्य आरक्षित वर्ग के गरीबों को भी आर्थिक आधार पर ऐसी ही सुविधा देने की मांग करेगा।इस पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं उसको देखकर तो यही कहा जा सकता है कि अब नये-नये समूह व जातियां अपने लिए भी आरक्षण की मांग नये सिरे से करने लगेंगी, क्योंकि 50 प्रतिशत की सीलिंग की जो सीमारेखा सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले में निर्धारित की गयी थी अब यह आरक्षण उस सीमा के परे दिया जा रहा है।
जहां तक फैसले का सवाल है फैसला भी बहुमत से हुआ है और इस पर जजों की सर्वानुमति राय नहीं बन पाई। देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवम्बर 2022 सोमवार को जो फैसला दिया है वह एक ऐतिहासिक फैसला है क्योंकि आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केन्द्र का फैसला यथावत रखा गया है। यह फैसला तीन-दो के बहुमत से सुनाया गया है और इसकी महत्वपूर्ण बात यह है कि पांच जजों की बेंच के दो जजों ने आरक्षण के लिए समयसीमा की जरुरत पर टिप्पणी करते हुए इस पर सवाल उठाये हैं । जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा है कि आजादी के 75 साल बाद हमें आरक्षण की व्यवस्था पर फिर से विचार करने की जरुरत है। संसद में एंग्लो इंडियन के लिए आरक्षण खत्म हो चुका है, इस तरह अब आरक्षण की भी समयसीमा होना चाहिए। वहीं जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने कहा कि डॉ. भीमराव आम्बेडकर का संविधान निर्माण के समय विचार था कि आरक्षण केवल दस साल के लिए रहे, परन्तु यह आजादी के 75 साल के बाद भी जारी है, हमें आरक्षण को निहित स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए बल्कि इस व्यवस्था को समाप्त करने पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग आगे बढ़ गये हैं उन्हें बैकवर्ड क्लास से हटाया जाना चाहिए जिससे जरुरतमंदों की मदद की जा सके। बैकवर्ड क्लास तय करने की प्रक्रिया पर भी फिर से समीक्षा करने की जरुरत है ताकि आज के समय में भी यह प्रासांगिक रह सके। उन्होंने कहा कि आरक्षण सामाजिक व आर्थिक असमानता को समाप्त करने के लिए है। दस प्रतिशत नये आरक्षण से असहमति रखने वालों में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यू.यू. ललित तथा जस्टिस एस. रवीन्द्र भट हैं। उनका कहना था कि यह संशोधन पिछड़े वर्ग के लिये भेदभाव समान है और आर्थिक आधार पर आरक्षण देना गलत है क्योंकि यह संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध है।
असहमति वाले फैसले के प्रमुख बिन्दुओं के अनुसार देश की आबादी का बड़ा हिस्सा एसटी, एससी और ओबीसी वर्ग का है और इनमें कई बेहद गरीब हैं। ईडब्ल्यूएस का कोटा इस वर्ग के गरीबों को इससे बाहर करने का भेदभाव दिखलाता है और संविधान भेदभाव की अनुमति नहीं देता। यह संशोधन सामाजिक ताने-बाने और बुनियादी ढांचे को कमजोर कर रहा है। यह हमें भ्रम में विश्वास करने को कह रहा है कि आरक्षण का लाभ पाने वाले पिछड़े वर्ग को बेहतर स्थिति में रखा गया है। आर्थिक आधार पर आरक्षण देने को सही ठहराने वालों में से जस्टिस दिनेश माहेश्वरी का कहना था कि आरक्षण एक उपकरण है जिसके जरिए न सिर्फ सामाजिक व शैक्षणिक बल्कि किसी अन्य कमजोर वर्ग को समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जा सकता है। इस लिहाज से सिर्फ आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना संविधान के मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाता। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि आरक्षण का मकसद सामाजिक भेदभाव झेलने वाले वर्ग का उत्थान था। यदि गरीबी आधार है तो उसमें एससी, एसटी और ओबीसी को भी जगह मिले। ईडब्ल्यूएस कोटा 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है। याचिकाओं पर केन्द्र सरकार का पक्ष रखते हुए यह कहा गया कि ईडब्ल्यूएस को समानता का दर्जा दिलाने के लिए यह व्यवस्था जरुरी है, इससे आरक्षण पा रहे दूसरे वर्ग को नुकसान नहीं है। आरक्षण की 50 प्रतिशत की जो सीमा कही जा रही है वह संवैधानिक व्यवस्था नहीं है। यह कहना गलत होगा कि इसके परे जाकर आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर आई प्रतिक्रियाएं
भाजपा ने फैसले को केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की सामाजिक जीत बताया है। पार्टी के महासचिव सी टी रवि ने कहा है कि फैसला भारत के गरीबों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के मिशन की एक और जीत है। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान बरकरार रखना चाहिए। केन्द्रीय कानून राज्यमंत्री एस. पी. बघेल ने इसे आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के चेहरों पर मुस्कराहट लाने वाला फैसला बताया है। सबसे तीखी प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने इस फैसले को विपक्षी दलों के मुंह पर तमाचा बताया। उन्होंने कहा कि कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रख शीर्ष अदालत ने निहित स्वार्थ वाले दलों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे शिक्षा व रोजगार के क्षेत्र में नये अवसर पैदा होंगे, अब हम राज्य में मराठा आरक्षण देने की तैयारी कर रहे हैं, तब तक पात्र लोग इस 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटे का लाभ ले सकते हैं। कांग्रेस नेता पूर्व सांसद उदितराज ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट की उच्च जाति समर्थक मानसिकता को चुनौती देते हैं। उन्होंने कहाकि वे सुप्रीम कोर्ट की इस मानसिकता का विरोध भी कर रहे हैं।
और यह भी
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्यप्रदेश में 13 दिन तक रहेगी जिसे भव्य बनाने के लिए प्रदेश कांग्रेस भी अपनी कमर कस रही है। कमलनाथ की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में यह तय किया गया कि भारत जोड़ो यात्रा में एक लाख लोग प्रतिदिन चलेंगे। कमलनाथ ने इसकी तैयारियों का जायजा लेने के साथ कुछ नेताओं को यात्रा का प्रभार सौंप दिया है। यह यात्रा 20 नवम्बर को बुरहानपुर से मध्यप्रदेश में प्रवेश करेगी। 21 नवम्बर रविवार होने के कारण यह यात्रा स्थगित रहेगी, उसके बाद 22 नवम्बर को उसकी शुरुआत होगी। राहुल के साथ 121 पदयात्री कन्याकुमारी से जम्मू-कश्मीर तक जा रहे हैं। इन सभी के रुकने के बारे में भी चर्चा हुई। मध्यप्रदेश में यह यात्रा आगर-मालवा जिले के सुसनेर से राजस्थान के झालावाड़ में प्रवेश करेगी। इसके लिए कमलनाथ ने कुछ वरिष्ठ नेताओं की समिति भी गठित की है जिसमें नेता प्रतिपक्ष गोविन्द सिंह सहित कुछ विधायक और पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। जो उपयात्राएं मध्यप्रदेश में इस यात्रा में शामिल होंगी उनके समन्वय की जिम्मेदारी पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को सौंपी गयी है। यात्रा से संबंधित जिला प्रशासन और राज्य सरकार से जो भी अनुमतियां लेनी होंगी उसकी जिम्मेदारी डॉ. गोविन्द सिंह को सौंपी गयी है। चूंकि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है इसलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को यात्रा संबंधी विभिन्न जिम्मेदारियां सौंपी गयी हैं।