नई शिक्षा प्रणाली और आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना
शिक्षा का अर्थ सीखने और सिखाने की प्रक्रिया से है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 विशेष रूप से आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्यों के साथ शिक्षा द्वारा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि कर मनुष्य को योग्य एवं कुशल मनुष्य बनाने की पहल है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में स्किल इंडिया मिशन की शुरुआत कर इसकी पहल की थी। जिसका उद्देश्य युवाओं का कौशल विकास कर उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करना था। इसी क्रम में उन्होंने आत्मनिर्भर भारत का ऐसा मंत्र दिया जिसने युवाओं के आत्मविश्वास को गति प्रदान की। मूल्य आधारित शिक्षा, मातृभाषा में शिक्षा, शिक्षा की स्वायत्तता और भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देना ही वर्तमान समय की मांग है और इस दिशा में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भगीरथ प्रयास करती हुई नजर आती है। इस नीति का मुख्य उद्देश्य एक छात्र को कुशल बनाने के साथ-साथ उसी क्षे़त्र में उसे प्रशिक्षित करना है जिस क्षेत्र में छात्र रूचि रखता हो। । इस प्रकार सीखने वाले अपने उद्देश्य और अपनी क्षमताओं का पता लगाने में सक्षम हो सकते हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020, 21 वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण तथा अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। यह नीति भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों का आधार लेते हुए, 21वीं सदी की शिक्षा के लिए आकांक्षात्मक लक्ष्यों, जिनमें एसडीजी भी शामिल है, के संयोजन में शिक्षा व्यवस्था, उसके नियमन और गवर्नेंस सहित, सभी पक्षों के सुधार और पुनर्गठन का प्रस्ताव रखती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रत्येक व्यक्ति में निहित रचनात्मक क्षमताओं के विकास पर विशेष बल देती है। यह नीति इस सिद्धांत पर आधारित है कि शिक्षा से न केवल साक्षरता और संख्या ज्ञान जैसी बुनियादी क्षमताओं का विकास हो, अपितु उच्चतर स्तर की तार्किक और समस्या समाधान संबंधी संज्ञानात्मक क्षमताओं का भी विकास होना चाहिए।
चूंकि 34 वर्षों के एक लंबे अंतराल के बाद देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई है जिसका उद्देश्य नवोन्मेषी, लोकतांत्रिक एवं विद्यार्थी केंद्रित शिक्षा व्यवस्था को प्रमुखता देना है। ऐसे में इस शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श की आवश्यकता है। इसी दिशा में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास 17 से 19 नवंबर 2022 तक नई दिल्ली में तीन दिवसीय कार्यक्रम ज्ञानोत्सव-2079 आयोजित कर रहा है जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य उपस्थित होकर मंथन करेंगे और फिर वहां से निकले ज्ञान के अमृत के माध्यम से भारतीय युवाओं की दिशा और दशा तय होगी। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एक ऐसा मंच है जिसकी आधारशिला वर्ष 2004 में उस समय रखी गई जब भारतीय शिक्षा जगत के पाठ्यक्रमों में व्याप्त विकृतियों के विरुद्ध ‘शिक्षा बचाओ आंदोलन’ प्रारंभ किया गया। इस आंदोलन ने देश में व्याप्त विभिन्न स्तर के पाठ्यक्रमों की विकृतियां दूर करने में महती भूमिका अदा की। इस न्यास का लक्ष्य है देश की शिक्षा को एक नया विकल्प देना और इसी ध्येय को केंद्र में रखते हुए तीन दिवसीय ज्ञानोत्सव-2079 का आयोजन हो रहा। इस आयोजन की थीम है- ‘शिक्षा से आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना’।
सच्चे अर्थों में देखें तो आज हमारे समाज को आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है और यह रास्ता कहीं न कहीं नई शिक्षा व्यवस्था से होकर आगे बढ़ सकता है। वर्तमान समय में ज्ञान के परिदृश्य से पूरा विश्व तीव्र गति से परिर्वतन के दौर से गुजर रहा है। बिग डेटा, मशीन लर्निंग और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में हो रहे अनेक वैज्ञानिक-तकनीकी विकास के चलते एक और विश्वभर में अकुशल कामगारों के स्थान पर मशीनें कार्य करने लगी हैं। दूसरी ओर डेटा साइंस, कम्प्यूटर साइंस और गणित के क्षेत्रों में ऐसे कुशल कामगारों की आवश्यकता और माँग बढ़ रही है जो विज्ञान, सामाजिक-विज्ञान और मानविकी के विविध विषयों में भी दक्ष हों।
जलवायु परिवर्तन, बढ़ते प्रदूषण और घटते प्राकृतिक संसाधनों के कारण हमें ऊर्जा, भोजन, पानी, स्वच्छता आदि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नए आयामों पर विचार- विमर्श करने की महती जरूरत है और इस कारण जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, कृषि, जलवायु विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में नए कुशल कामगारों की आवश्यकता होगी। महामारी और महामारी के बढ़ते हुए संक्रमण, रोग प्रबन्ध और टीकों के विकास में सहयोगी अनुसंधान और परिणामी सामाजिक पहलू बहु-विषयक अधिगम की आवश्यकता को बढ़ाते हैं। मानविकी और कला की माँग बढ़ेगी, क्योंकि भारत एक विकसित देश बनने के साथ-साथ दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की ओर अग्रसर है इसलिए रोजगार और वैश्विक परिस्थिति में तीव्र गति से आ रहे परिवर्तनों के कारण यह आवश्यक हो गया है कि छात्रों को जो कुछ नूतन परिदृश्य में सिखाया जाये, उसे तो वे सीखें ही, साथ में वे सतत सीखते रहने की कला में भी निपुणता परिलक्षित करें।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से आत्मनिर्भर भारत की आस को मजबूती मिलती है। क्योंकि, इस नीति का एक अहम पहलू इसका बहु विषयक दृष्टिकोण है। जिसकी प्रासंगिकता इस बात पर केन्द्रित है कि छात्रों का सर्वांगीण विकास हो। जबकि पहले की शिक्षा प्रणाली मूल रूप से सीखने और परिणाम देने पर केन्द्रित थी। विद्यार्थियों का आकलन प्राप्त अंकों के आधार पर किया जाता था और यह विकास के लिए एकल दिशा वाला दृष्टिकोण था। प्रधानमंत्री के संकल्प ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का यह स्वप्न है कि आगे आने वाले काल में हर भारतीय को आत्मनिर्भर बनाना है और यह तभी संभव हो सकता है।
जब भारत देश अपना पुरातन गौरव पुनः हासिल कर लेगा। यह किसी से छिपा नहीं है कि हमारी पुरातन परंपरा और मूल्य कितने उच्च कोटि के थे! कुटीर उद्योग और हस्तशिल्प कला की बदौलत एक समय हमारा डंका वैश्विक परिदृश्य पर बजता था। ऐसे में अंततोगत्वा हमें इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत परिष्कृत होते हुए अपने मूल्यों को पुनः आत्मसात करने की आवश्यकता है। कुटीर उद्योगों की पुनर्स्थापना, हस्तशिल्प कला तथा आयुर्वेदिक उत्पादों को बढ़ावा देना हमारी दिनचर्या का हिस्सा बनना चाहिए। इससे होगा यह कि हमारा ग्रामीण अंचल आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ेगा और यही रास्ता है देश की समृद्धि का। जब लोकल फ़ॉर वोकल की मुहिम को हम गति प्रदान करेंगे, तो निश्चित ही ये एक दिन ग्लोबल विलेज़ का हिस्सा बनेंगे। प्रधानमंत्री ने जब से खादी खरीदने का आग्रह किया है, तभी से खादी एवं हैंडलूम की बिक्री देश में रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गई है और अब उसे ग्लोबल बनाने का कार्य हम लोगों का है। आत्मनिर्भरता तथा वोकल फॉर लोकल दोनों मंत्र एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, अनुपूरक हैं, जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत युवाओं तक पहुँचाना है। ऐसे में ‘ज्ञानोत्सव’ जैसे आयोजन इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं जिसके माध्यम से न सिर्फ़ शिक्षा किस पहलू को दृष्टिगत रखते हुए दी जाए। यह निर्णय करने में सहायक होगा, अपितु जब विभिन्न क्षेत्रों के लोग एक मंच पर होंगे! फिर शिक्षा किस तरीके से दी जाए और कैसी दी जाए! जो आत्मनिर्भर भारत का खाका खींच सकें। यह निर्णय लेने में भी आसानी होगी।