विभीषण पर मोहित मुरली धर …!

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विभीषण पर मोहित मुरली धर …!

मध्यप्रदेश के सत्ताधारी दल के मंचों पर जब-जब मुरली की तान छिड़ती है, तब-तब राजनीतिक गलियारों का कुहासा छंटकर दूर भाग जाता है। चाहे ब्राह्मण-बनिए जैसे बोल हों या फिर विभीषण राग, मुरली की बेबाकी, निश्छलता-निष्कपटता और मासूमियत का कोई जवाब नहीं है। इतने नि:स्वार्थ भाव से अपनी बात रखते हैं कि सुनने वाला भी भावविभोर हो जाता है। फिलहाल मुरली धर राव के मन का यही भाव है कि उनका दल यदि राम की पूजा करता है तो फिर रामभक्त विभीषण का क्या दोष था कि उसे अब तक बुरे भाव से ही देखा जा रहा है। सो उन्होंनेे ठान लिया है कि वह विभीषण की पहचान अब केवल रामभक्त के रूप में स्थापित करके ही मानेंगे। और दूसरे दल से आकर सरकार बनवाने वाले सभी सदस्यों को विभीषण बोल-बोल कर यह साबित कर देंगे कि इस नाम का केवल एक ही मतलब है रामभक्त।
अपने लक्ष्य की दिशा में दो कदम आगे बढ़ाते हुए मुरली धर ने गुना के बीचों-बीच मध्यप्रदेश सरकार के दो मंत्रियों गुना खास के महेंद्र सिंह सिसौदिया और पास ही ग्वालियर के प्रद्युम्न सिंह तोमर को विभीषण की पदवी मंच से ही दे डाली। इतने में भी नहीं माने, बल्कि मंत्रियों का नाम लेकर उनकी रजामंदी की मुहर भी लगवा ली। हालांकि जब जनता मुरली के परिहास में हास्य में मशगूल थी, तब विभीषण शब्द को न निगल पा रहे और न उगल पा रहे मंत्री सिसौदिया ने कह ही दिया कि हम तो रामजी के सेवक हैं। राव भी कहां रुकने वाले थे, उन्होंनेे भी बोल दिया कि अब तो सारे विभीषण बाहर आ गए हैं, वहां कोई नहीं बचा। तो जिन विधायकों की मदद से मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी, अब उनकी पहचान ‘विभीषण’ ही बची है…पर केवल रामभक्त विभीषण।
विभीषण गान की गूंज इतनी प्रबल थी कि दिन-रात मेहनत करने से थककर गहरी नींद में सोए ब्रहर्षि नारद की निद्रा भंग हो गई। नारायण नारायण उच्चारित कर उन्होंने दृष्टि दौड़ाई… तो मृत्युलोक में विभीषण-विभीषण की बातें सुनकर देवर्षि नारद आश्चर्य में पड़ गए कि त्रेता युग का विभीषण घोर कलियुग में इतनी शिद्दत से क्यों याद किया जा रहा है? मामले की तह में जाने पर यह साफ हो गया कि मामला ह्रदय प्रदेश का है। दिमाग पर जोर डालने पर यह भी साफ हो गया कि ढाई साल से ज्यादा वक्त हो गया है, जब ह्रदय प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ था। एक दल के माननीयों को दूसरा दल रास आ गया था। और दूसरा दल जो था, उसमें ‘जय श्री राम-जय श्री राम’ का उद्घोष हो रहा था। और उस समय भी पहले दल से विभीषण- विभीषण की आवाजें आ रही थीं। नारद जी समझ गए कि मुरली धर रात में विभीषण का नाम लेकर सोए थे, सो रात में सपने में खुद विभीषण ने आकर उनके कान ऐसे फूंके कि उन्हें दिन में विभीषण-विभीषण ही नजर आता रहा। फिर क्या था मंच पर बैठे एक नहीं बल्कि दो-दो मंत्रियों को तो सामने विभीषण के सम्मान से नवाजा और उनके साथ भाजपा में आए दो दर्जन से ज्यादा  विधायकों को भी विभीषण की पदवी से सम्मानित करना नहीं भूले। गर्व से कहते उनका सीना फूल गया था कि अब तो उस दल में कोई विभीषण नहीं बचा, सब के सब विभीषण हमारे पाले में आ गए।
मुरली के भाव में सराबोर होने पर नारद को भी कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि ‘विभीषण’ न तो रावण का भाई था, न तो लंका का वासी था, न ही उसने भेद बताकर अपने कुल का नाश कराया था और  वह यदि था तो बस और बस केवल रामभक्त था। और कलियुग में यदि विभीषण को देखा जाना चाहिए तो सिर्फ और सिर्फ रामभक्त के रूप में, रघुनाथ के दास के रूप में और अयोध्यापति राम का नाम जपते सांसें लेने वाले परमजीव के रूप में…। लोगों को यह कहावत सिरे से खारिज कर देनी चाहिए कि घर का भेदी लंका ढाए…।  नई कहावत रट लेनी चाहिए कि रामभक्त तो राम की शरण में जाए…। जिस तरह मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया ने भाव भी व्यक्त किए कि “मैं तो रामजी का सेवक हूं…”। और फिर जब शिव-विष्णु का दल है तो रामभक्त और राम सब उनके दिल में बसे हैं और दल में भी रमे हैं। कितने और विभीषण…न बाबा न ‘रामजी के सेवक’ जो अब भी दूसरे दलों में पीडा भोग रहे हैं, जिन्हें कोई हनुमान मिलकर राहत देगा और राम के दल में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त करेगा…यह 2023 के पहले सब सामने आ जाएगा। विभीषण तो सब आ ही गए, रामभक्त ही जो बचे होंगे वह आ ही जाएंगे…। विभीषण के प्रति मुरलीधर धर राव का प्रेम देखकर कुछ समय के लिए महर्षि नारद भी स्वप्नलोक में डूब गए। और जब स्वप्नलोक से बाहर निकले, तो नारायण नारायण जपते विष्णु लोक पहुंच गए। खुश थे मुरली की सोच पर कि विभीषण न होता तो रामराज्य कैसे आता और यह विभीषण न होते तो शिव का राज कैसे लौट पाता…।