यह पेंशनर्स हैं, हुड़दंग नहीं मचा सकते…
मंत्रालय के सामने धरना-प्रदर्शन और अपनी पीड़ा जाहिर करने की मंशा थी, पर प्रशासन ने अनुमति नहीं दी। चिनार पार्क का विकल्प मिला, तो पेंशनर्स उसमें भी राजी हो गए। 24 नवंबर 2022 को अपने-अपने खर्चे पर भोपाल आने और रुकने की शर्त या यूं कहें कि मजबूरी थी, क्योंकि पेंशनर्स एसोसिएशन के पास फंड भी नहीं है। इसके बावजूद छह हजार से ज्यादा पेंशनर्स एकत्र हुए और जंगी प्रदर्शन किया। यह पेंशनर्स हैं, बुजुर्ग हैं और शिवराज से शिकायत है, लेकिन तब भी आशीर्वाद ही देते हैं। ये पेंशनर्स हैं, इसलिए अपनी बात तो सालों से रख रहे हैं लेकिन हुड़दंग नहीं मचा सकते। शायद यही वजह है कि इतने बुजुर्गों की सुनवाई करने कोई नेता नहीं पहुंचा और एक पुलिस अफसर को ज्ञापन देकर भी यह संतुष्ट हैं। उम्मीद यही कि सरकार सुनवाई करेगी और इनकी जायज वैधानिक मांगों की पूर्ति कर इनका हक इन्हें देगी। उम्र बहुत है और पेंशन मुट्ठी भर, उसमें भी सरकारी व्यवस्था कमी कर दे तो पीड़ा उम्र से भी बहुत ज्यादा होती है। पर इन्हें आशा है कि सरकार गौर करेगी और इन्हें इनका वाजिब हक जल्दी मिलेगा। हो सकता है कि नया साल इनकी उम्मीदों में खुशियों का रंग भरकर बधाई दे कि नया साल मुबारक हो मध्यप्रदेश के लाखों पेंशनर्स …।
मांगें वही पुरानी हैं। राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49(6) को मध्यप्रदेश एवं छग आपसी सहमति का आधार बनाकर पेंशनर्स को बरसों से वित्तीय अधिकारों व लाभ से वंचित कर प्रताड़ित किया जा रहा है। एक नवंबर 2000 के बाद सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों पर इसे जबरन थोपा गया है।पेंशनर्स एसोसिएशन के प्रांताध्यक्ष श्याम जोशी का मानना है कि सरकार पेंशनर्स को मानसिक व आर्थिक प्रताड़ना दे रही है। प्रांतीय उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी इसलिए दुःखी हैं कि सरकार ने 15 मई 2018 को सीएम हाउस में पेंशनर्स पंचायत बुलाई थी, जिसमें सातवें वेतन आयोग का लाभ एक जनवरी 2016 से देने का वादा किया था जो अभी तक पूरा नहीं हुआ।
मंहगाई राहत का भुगतान भी केंद्रीय तिथि से नहीं किया जा रहा है। प्रदेश का कोषालय अखिल भारतीय संवर्ग के पेंशनर्स पर मेहरबान है और राज्य के पेंशनर्स भेदभाव का शिकार हैं। एक बड़ी विसंगति यह भी है कि अविवाहित, विधवा, तलाकशुदा पुत्री को भी केंद्र की तरह पेंशन का प्रावधान नहीं है, क्योंकि पेंशन नियम-1976 में संशोधन नहीं हुआ है। राज्य विद्युत मंडल के कर्मचारियों की पेंशन विसंगति दूर की जाए। हिमाचल की तरह 65, 70, 75 की आयु पूरी करने पर मूल पेंशन में 5-5 फीसदी बढ़ाकर दी जाए।
तो समस्याएं बहुत हैं और शिकायत यही कि मांगों पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। धारा 49 खत्म नहीं हो रही जबकि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस में इसका औचित्य खत्म किया गया है। मांगे ग्यारह हैं, सरकार चाहे तो चुटकी बजाकर सुलझा सकती है। यही उम्मीद है पेंशनर्स की। क्योंकि यह पेंशनर्स हैं, हुड़दंग नहीं मचा सकते…।