आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अभी गहन शोध की जरूरत

610

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अभी गहन शोध की जरूरत

मैं अपनी बेटी की वर्तमान पदस्थापना स्थान नागदा आया हुआ था, वहां से भोपाल जाने के लिए इंटरनेट पर ट्रेन सर्च कर रहा था तो ट्रेन सर्चिंग की इस प्रक्रिया के दौरान एक अभूतपूर्व हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हो गई जिसने पूरी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की महत्वता का कचरा कर दिया और सिद्ध हो गया कि इस क्षेत्र में गहन व विशद शोध की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि जितनी लंबी यात्रा हुई है उससे ज्यादा लंबी यात्रा आगे बाकी है।

WhatsApp Image 2022 11 29 at 8.45.34 PM 2

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की व्यवस्था के अंतर्गत जब आप ट्रेन सर्च करते हैं तो वही सिस्टम आपको विमान की वैकल्पिक यात्रा के बारे में भी सुझाव देता है और बताता है कि इसमें आपका कम समय लगेगा यानी आप समय की बचत कर सकते हैं। नागदा और भोपाल की दूरी सामान्य तौर पर ट्रेन से 4 से 5 घंटे में आराम से तय की जा सकती है और थर्ड एसी में ₹500 में यह यात्रा आप कर सकते हैं। जब मैं ट्रेन सर्च कर रहा था तो उसी समय एक पॉपअप आया जिसने बताया कि आप ‘कम समय’ में इंदौर से भोपाल की फ्लाइट लेकर यात्रा कर सकते हैं और उस यात्रा में मात्र 22 घंटे लगेंगे और टिकट का किराया ₹30000 होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का यह रूप मैंने पहली बार देखा और बहुत भौंचक्का भी रह गया। फिर मैंने 22 घंटे की यात्रा और ₹30000 की टिकट के बारे में और जानकारी हासिल की तो पता चला कि नागदा से इंदौर मुझे कैब लेकर जाना होगा, वहां से दिल्ली की फ्लाइट मिलेगी। दिल्ली हवाई अड्डे पर 10 घंटे के ले-ओवर के बाद अगली फ्लाइट से मुझे मुंबई जाना होगा। फिर मुंबई में लगभग 8 घंटों के ले-ओवर के बाद वहां से भोपाल की फ्लाइट मिलेगी। इस प्रकार इस 3 शहरों की होते हुए हवाई यात्रा संपन्न हो सकती है,जो आपका समय भी बचाएगी।

WhatsApp Image 2022 11 29 at 8.45.34 PM

 

यह सब कुछ देख कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में मेरी और जिज्ञासा जागृत हो गई और उसके बारे में विभिन्न स्रोतों से जानकारी एकत्र करने का प्रयास किया तो पता चला कि आधुनिक विश्व में सबसे ज्यादा चर्चित शब्द आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अर्थ है बनावटी (कृत्रिम) तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता।

WhatsApp Image 2022 11 29 at 8.45.34 PM 1

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जनक जॉन मैकार्थी के अनुसार यह बुद्धिमान मशीनों, विशेष रूप से बुद्धिमान कंप्यूटर प्रोग्राम को बनाने का विज्ञान और अभियांत्रिकी है यानी यह मशीनों द्वारा प्रदर्शित की गई इंटेलिजेंस है। इसके ज़रिये कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है, जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह इंटेलिजेंस तरीके से सोचने वाला सॉफ़्टवेयर बनाने का एक तरीका है। यह इसके बारे में अध्ययन करता है कि मानव मस्तिष्क कैसे सोचता है और समस्या को हल करते समय कैसे सीखता है, कैसे निर्णय लेता है और कैसे काम करता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का आरंभ 1950 के दशक में ही हो गया था, लेकिन इसकी महत्ता को 1970 के दशक में पहचान मिली।

WhatsApp Image 2022 11 29 at 8.45.35 PM

जापान ने सबसे पहले इस ओर पहल की और 1981 में फिफ्थ जनरेशन नामक योजना की शुरुआत की थी।इसमें सुपर कंप्यूटर के विकास के लिये 10 वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी।
इसके बाद अन्य देशों ने भी इस ओर ध्यान दिया। ब्रिटेन ने इसके लिये ‘एल्वी’ नाम का एक प्रोजेक्ट बनाया। यूरोपीय संघ के देशों ने भी ‘एस्प्रिट’ नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी।

इसके बाद 1983 में कुछ निजी संस्थाओं ने मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर लागू होने वाली उन्नत तकनीकों व सर्किट का विकास करने के लिये एक संघ ‘माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कंप्यूटर टेक्नोलॉजी’ की स्थापना की।

वर्तमान दौर को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर किये जा रहे प्रयोगों का दौर कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
एक उदाहरण के तौर पर कहा जा सकता है कि आज विश्वभर में हवाई जहाज़ों की आवाजाही पूर्णतः कंप्यूटर पर निर्भर है। कौन-सा हवाई जहाज़ कब, किस रास्ते से गुज़रेगा,कहां वो कब सामान पहुंचाएगा यह सब मशीनें तय करके निर्देश देती हैं यानी एयर ट्रैफिक कंट्रोल के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है।

तात्पर्य यह कि जिस काम को करने में मनुष्य को समय अधिक लगता है या जो काम जटिल तथा दुष्कर है, वह इन मशीनी दिमाग़ों की मदद से चुटकियों में निपटाया जा सकता है।

सावधानी भी ज़रूरी है

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हमारे रहने और कार्य करने के तरीकों में व्यापक बदलाव आएगा। रोबोटिक्स और वर्चुअल रियलिटी जैसी तकनीकों से तो उत्पादन और निर्माण के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेगा। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार खत्म हो जाएंगे।

संभवतया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में रोज़गार की चुनौतियों से हम निपट लें, लेकिन सबसे बड़े खतरे को टालना मुश्किल होगा। अतः स्पष्ट है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस युक्त मशीनों से जितने फायदे हैं, उतने ही खतरे भी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सोचने-समझने वाले रोबोट अगर किसी कारण या परिस्थिति में मनुष्य को अपना दुश्मन मानने लगें तो मानवता के लिये खतरा पैदा हो सकता है। सभी मशीनें और हथियार बगावत कर सकते हैं। ऐसी स्थिति की कल्पना हॉलीवुड की ‘टर्मिनेटर’ जैसी फिल्म में की गई है।

इंटेलिजेंट रोबोट पर भी रिसर्च
इस समय का नवीनतम आविष्कार कृत्रिम बुद्धिमत्ता मशीनों की बुद्धि को दर्शाता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से रोबोट को इफेक्टिव और इंटेलिजेंट बनाया जाता है। इस प्रकार के रोबोट विदेशों में एवं देश की कई बड़ी कंपनियों में अपनी जगह बना चुके है और ऐसे काम कर रहे हैं, जिन्हें करने में श्रमिकों और तकनीकी कर्मचारियों को बेहद कठिनाई का अनुभव होता है।

इंटेलिजेंट रोबोट सोफिया

सोफिया नामक रोबोट को हैनसन रोबोटिक्स के संस्थापक डेविड हैनसन ने 2016 में बनाया था।
25 अक्टूबर 2017 में सऊदी अरब ने इसे अपनी पूर्ण नागरिकता दी और किसी भी देश की नागरिकता हासिल करने वाली वह दुनिया की पहली रोबोट है।सोफिया के हाव-भाव बिल्कुल मनुष्यों जैसे हैं और वह दूसरे के चेहरे के हाव-भावों को भी पहचान सकती है।
सोफिया अपनी इंटेलिजेंस से किसी से भी बातचीत करने के अलावा, मनुष्यों की तरह सभी काम कर सकती है और अपने खुद के विचार रखती है।सोफिया को सऊदी अरब के ऐसे सभी अधिकार मिले हैं, जो वहाँ की सरकार अपने नागरिकों को प्रदान करती है।जब कभी सोफिया गलत होगी या कोई अपराध करेगी तो सऊदी अरब के कानून के अनुसार उस पर भी मुकदमा चलाया जा सकता है।अगर कोई अन्य व्यक्ति या नागरिक सोफिया के साथ कुछ गलत करता है तो सोफिया भी सऊदी अरब के कानून के अनुसार मुकदमा दायर कर सकती है।

भारत आ चुकी है सोफिया
मुंबई में जब एशिया का सबसे बड़ा टेक फेस्ट-2017 आयोजित किया गया था तब इसके टेलीफेस्ट में रोबोट सोफिया भी आई थी। सोफिया ने इस कार्यक्रम में भारतीय अंदाज़ को अपनाया और इस प्रोगाम में भारतीय वेशभूषा में सफेद और संतरी रंग की साड़ी पहनी हुई थी। सोफिया ने ‘नमस्ते इंडिया, मैं सोफिया’ कहकर वहाँ मौजूद लोगों का अभिवादन किया। टेक फेस्ट-2017 में तीन हजार लोगों में इस बात को लेकर उत्सुकता थी कि आखिर सोफिया किस तरह बात करती है और सवालों के जवाब कैसे देती है। सोफिया ने सभी सवालों के जवाब बड़ी ही चतुराई और प्रभावी तरीके से दिये। सोफिया ने वहाँ मौजूद लोगों से हिंदी में बात की थी।

गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई का कहना है कि मानवता के फायदे के लिये हमने आग और बिजली का इस्तेमाल तो करना सीख लिया, पर इसके बुरे पहलुओं से उबरना जरूरी है। इसी प्रकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी ऐसी ही तकनीक है और इसका इस्तेमाल कैंसर के इलाज में या जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में भी किया जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का निर्माण हमारी सभ्यता के इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से है। लेकिन सच यह भी है कि यदि इसके जोखिम से बचने का तरीका नहीं ढूँढा गया तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि तमाम लाभों के बावजूद आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस के अपने खतरे हैं। कुल मिलाकर एक शक्तिशाली कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उदय हमारे लिये फायदेमंद भी हो सकता है और नुकसानदेह भी। फिलहाल हम नहीं जानते कि इसका स्वरूप आगे क्या होगा, इसीलिये इस संदर्भ में और ज़्यादा शोध किये जाने की ज़रूरत है।

Author profile
Sudesh Gaud
सुदेश गौड़

श्री सुदेश गौड़ मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, राष्ट्रीय सहारा सहित देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। वे नवदुनिया भोपाल के संपादक भी रहे हैं। वर्तमान में वे प्रदेश के अग्रणी न्यूज़ पोर्टल मीडिया वाला के नेशनल हेड हैं।