*सत्ता के अहंकार का अंत निश्चित रूप से होता ही है बोले आचार्य नवलेश दीक्षित*
*इटारसी से चंद्रकांत अग्रवाल की एक आध्यात्मिक खबर*
इटारसी। जीवन , मरण और विवाह सहित कोई भी कार्य प्रभु की इच्छा के विपरीत कभी नहीं होते हैं। जो प्रभु चाहते हैं , वही होता है। परंतु अहंकार करने वाले अथवा परिवार को अपना आदेश देकर कठोरता से उसका पालन कराने वाले वास्तविक जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते हैं। श्री द्वारिकाधीश बड़ा मंदिर, तुलसी चौक पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के षष्टम दिवस व्यासपीठ से आचार्य नवलेश दीक्षित ने रुक्मणी विवाह की कथा विस्तार से बताई। उन्होंने कहा कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण की सत्ता को चुनौती देने के लिए कई बार प्रयास किए गए, लेकिन सफल नहीं हुए। उन्होंने कहा कि पर यह भी सच है कि सत्ता का अहंकार ज्यादा दिन नहीं रह सकता । उसका अंत होता ही है। विदर्भ देश के राजा भीष्मक अपनी पुत्री का विवाह चेती राज के राजा शिशुपाल से कराना चाहते थे और यह कार्य वे अपने पुत्र रुक्मी के कहने पर कर रहे थे।
शिशुपाल सहित कई राजा भीष्मक की सत्ता से जुड़े थे। शिशुपाल को पूरा भरोसा था कि उसका विवाह रुक्मणी के साथ हो जाएगा। परंतु रुकमणी जिसने श्रीकृष्ण को कभी देखा भी नहीं था , पर बचपन से ही वे उनके प्रति गहरी आस्था रखती थी और मन ही मन उनसे प्रेम करती थी ।उसका कारण यह था कि नारद जी ने रुक्मणी को बचपन मे ही हाथ देखकर बता दिया था कि उनका विवाह भगवान कृष्ण के साथ ही होगा।जब रुक्मणी को लगा की पिता भीष्मक और उसका भाई रुक्मी नहीं मानने वाला है तब रुक्मणी ने एक ब्राह्मण के हाथ श्रीकृष्ण को संदेश भिजवाया कि मां अंबिका पूजन के समय आकर उसका हरण कर लें। रुकमणी की पाती मिल जाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण विदर्भ पहुंचे और सभी राजाओं को परास्त कर रुकमणी को अपने साथ लेकर उनसे विवाह किया।
आचार्य नवलेश ने कहा कि सच्ची श्रद्धा से यदि ईश्वर से प्रार्थना करो तो वह पूरी होती ही है ।उन्होंने कहा कि रुकमणी के प्रस्ताव को भगवान श्री कृष्ण ने इसी कारण स्वीकार किया कि उनका विवाह बिना उनकी सहमति के हो रहा था। रुकमणी विवाह के अवसर पर द्वारकाधीश मंदिर परिसर को विवाह मंडप की तरह सजाया गया था। यजमान राज मिश्रा एवं श्रीमती पूजा मिश्रा ने विवाह की सभी रस्में पूरी करवाई। आज का पूरा परिवेश विवाह स्थल जैसा हो गया था। इसके पूर्व आचार्य नवलेश जी ने कंस वध कथा सुनाई एवं मध्य प्रदेश के उज्जैन में भगवान कृष्ण और बलराम की आचार्य सांदीपनि के आश्रम में हुई शिक्षा की कथा भी विस्तार से बताई।