‘मामा-मय’ रहा 4 दिसंबर …

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‘मामा-मय’ रहा 4 दिसंबर …

मध्यप्रदेश में 4 दिसंबर का दिन पूरी तरह से ‘मामा-मय’ रहा। खुद राज्यपाल मंगू भाई पटेल, मामा शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा भी पूरे दिन टंट्या मामा के रंग में रंगे रहे। इंदौर की धरती पर एक ही नारा लगा कि धरती अम्बर कह रहे, टंट्या मामा अमर रहें। इंदौर के भंवरकुआं चौराहे पर टंट्या मामा की भव्य प्रतिमा का लोकार्पण गवर्नर मंगूभाई पटेल ने किया। चौराहा भी टंट्या मामा चौराहा होगा। तो पातालपानी रेल्वे स्टेशन का नाम टंट्या मामा रेल्वे स्टेशन होगा। यहां भी टंट्या मामा की बड़ी प्रतिमा लगाई जाएगी। तो कांग्रेस ने भी टंट्या मामा को याद किया। टंट्या मामा के बलिदान दिवस पर राहुल बाबा की भारत जोड़ो यात्रा की विदाई मध्यप्रदेश से हो गई। यात्रा आगर मालवा जिले से राजस्थान में प्रवेश कर गई। शहीद जननायक टंट्या मामा के बलिदान दिवस पर राहुल गांधी एवं कमलनाथ ने पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी एवं नमन किया।
भाजपा ने मन बनाया है कि क्रांतिसूर्य जननायक टंट्या मामा के रास्ते पर चलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासी भाई-बहनों के कल्याण का जो संकल्प लिया है, उस संकल्प को पूरा करना है। मध्यप्रदेश की जनजातीय बाहुल्य 89 विकासखण्डों में पेसा एक्ट के माध्यम से ग्रामसभा को अधिकार देकर प्रदेश की भाजपा सरकार ने जनजातीय समाज को सशक्त बनाया है। इंदौर के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भावना जताई कि पेसा कानून कर्मकांड नहीं जनजातीय भाईयो-बहनों की जिंदगी बदलने का महाअभियान है।
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कांग्रेसजनों ने आदिवासी नेता टंट्या भील के बलिदान दिवस पर उनके चित्र पर माल्यार्पण और पुष्प अर्पित कर उनका पुण्य स्मरण किया। भावना व्यक्त की गई कि आजादी की लड़ाई में अपनी कुर्बानी देने वाले आदिवासी नेता टंट्या भील समाज में फैली कुरीतियों से मुक्ति दिलाने के लिए हमेशा संघर्षरत रहे, उन्होंने अंग्रेजों की दमनकारी नीति और अत्याचार का साहस के साथ मुकाबला किया। वे गरीब-आदिवासी वर्ग के हित के लिए हमेशा लड़ाई लड़ते रहे। टंट्या भील देश के बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में जाने जाते हैं। आदिवासी नेता टंट्या भील की तरह देश में समर्पण की भावना होना बेहद जरूरी है।
तो 4 दिसंबर का दिन मध्यप्रदेश में ‘मामा-मय’ रहा। आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी को मन से याद किया गया और यादें दिल से ताजा की गईं। अगले बरस इन दिनों टंट्या मामा के बलिदान दिवस तक शायद मतदान संपन्न हो चुका होगा और आदिवासी मतदाता किस तरफ झुका है, यह आकलन भी हो रहा होगा।