नारायण… नारायण… ह्रदय में बसा गुजरात मॉडल …?

1967

नारायण… नारायण… ह्रदय में बसा गुजरात मॉडल …?

देवलोक का सूचनातंत्र का बड़ा कार्पोरेट ऑफिस सुदूर पहाड़ी पर बना नजर आ रहा है। सात मंजिला इमारत में ऊपरी मंजिल पर सीईओ सूचनातंत्र नारद जी विराजमान हैं। हाथ में सुपर एंड्रॉयड स्मार्टफोन है। अलग-अलग लोकों के व्हाट्सएप ग्रुप पर सुपरसोनिक स्पीड से नारद नजरें डाल रहे हैं। चेहरे की बदलती भावभंगिमाएं मैसेज की प्रकृति का बखान करती नजर आ रही हैं। एक मैसेज पढ़कर नारद जी कुछ पल के लिए ठहर गए। मैसेज पर निगाहें टिक गईं उनकी। भौंहें ऊपर चढ़ी जैसे दिमाग पर जोर डाल रहे हों। कुछ बड़बड़ करते हुए कि गुजरात मॉडल पर मध्यप्रदेश में सत्ता व संगठन में बदलाव करने का अनुरोध भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से। इतना पढ़ने के बाद मुंह से निकला नारायण… नारायण और लेटर हेड पर नजर पड़ी तो नारायण के आगे त्रिपाठी भी नजर आ गया। और मैहर भी नजर आया तो नारद एक पल में आंखें बंद कर मां शारदा के मंदिर पर पहुंच गए और मां शारदा से विनती करने लगे कि इन नारायण का राग आखिर क्या है? मां शारदा ने नारद की इच्छा जानी और पल भर में नारायण का कच्चा चिट्ठा उनके सामने आ गया।
बात की शुरुआत गुजरात मॉडल से हुई तो नारद जी ने समझा कि यह है क्या? तो पता चला कि पहले तो इसकी चर्चा विकास के लिए होती थी, लेकिन अब बदलाव के लिए हो रही है। जिनके मन में खटास है, वह खास तौर पर इस मॉडल के दीवाने हैं। गुजरात में चुनावी साल में सारे मंत्रियों की पलटी कर मोदी ने एकदम नया मॉडल ही सामने रख दिया। ऐसा न पहले हुआ था और शायद गुजरात के अलावा कहीं कारगर साबित हो भी नहीं सकता। गुजरात की बात और थी, क्योंकि वहां तो सब का सब मोदी की ही माया है। पर वही माया अब ह्रदय‌ प्रदेश में कमल दल में खटास से भरे ह्रदयों में मिठास घोल रही है। इनके ह्रदयों को चीरो तो बदलाव वाला गुजरात मॉडल ही बसा नजर आएगा। ठीक वैसे ही जैसे हनुमान जी के ह्रदय में भगवान राम बसे हों। मैहर की पहाड़ी से त्रिपाठी की कुंडली पर नजर डाली तो दिखाई दिया कि बदलाव के फेर में तो खुद पंडित जी ही घिरे हैं। कहीं ठहर ही नहीं पाए हैं। साइकल से कूदे तो हाथ का पंजा थाम लिया और मन भटका तो बीच रस्ते से कमल पर सवार हो गए। फिर भटके तो नाथ पर अटक गए। और तबसे न कमल के रह पाए और न ही नाथ के हो पाए। अब दल तो कमल का ही है सो कभी प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर चर्चा में रहते हैं तो कभी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को। प्रदेश में तो ऐसा लग रहा है जैसे मुख्यमंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष से अनबोला सा हो। नारद जी ने और अपने स्पेशल एंटेना से सिग्नल कैच किए तो और डेवलपमेंट दिखा कि नारायण में बदलाव की तो सीमा ही नहीं है। अब तो वह पूरे विंध्य को ही बदलने में लगे हैं। नया विंध्य राज्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे वह अब। ऐलान भी हो गयो नए दल का और विंध्य की तकदीर में बदलाव की ठान ली है नारायण ने। नारद जी ने फिर गुजरात मॉडल वाली चिट्ठी पर नजर डाली तो मुस्कराए कि पंडित जी खुद को कमल दल का छोटा कार्यकर्ता लिखकर मजाक कर रहे या कमल दल का मजा ले रहे। तो संकेत मिले कि नारायण को खुद ही समझ में नहीं आ रहा कि वह मजाक कर रहे हैं या मजाक बन गए हैं। वैसे तो 21वीं सदी के दूसरे दशक तक लोकतंत्र में विधायक जैसी धमक के आगे तो पूरा क्षेत्र ही डोलने लगा है, पर उससे हजार गुना बड़ी ताकत मंत्री पद हासिल करने नारायण बेचैन हैं। इसके लिए सत्ता में विराजे दल की तरफ लालायित होते हैं तो वही दल दलदल में चला जाता है। न नाथ भला कर पाए और न शिव का वरदान फलीभूत हुआ। उल्टा नारायण के फेर में कभी शिव तो कभी नाथ सत्ता से अनाथ हो गए। क्या करें अब मृत्युलोक के नारायण को भी समझ में नहीं आ रहा है। अब अपने ही नाम का जाप कर संकट से मुक्ति का मार्ग ही बचा है। इस पर अमल न कर अभी तो चिट्ठी में ही भविष्य ढूंढ़ने की कोशिश में कामयाबी की आस है।
बहुत माथा पच्ची करने के बाद नारद जी ने भी कुंडली का परिणाम निकाल ही लिया कि अभी नारायण का दिमाग दलों के फेर में पेंडुलम सा कभी इस किनारे तो कभी उस किनारे घूम रहा है। पेंडुलम ठहर नहीं रहा सो अब नारायण भी क्या करें विचारे। अब ऐसे फेर में इसलिए भी पड़े हैं नारायण कि शिव-विष्णु की निगाहें मानो उन पर पड़ ही नहीं रहीं। सो दिमाग पूरे समय बेचैनी की चासनी में तर है। क्योंकि उधर नाथ भी साथ नहीं दे पाए। नारद ने भी नारायण से एक सवाल कर ही लिया कि विधायक जी, यह चिट्ठी लिखकर खाली व्हाट्सएप पर ही डालत हो या प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय‌ अध्यक्ष को भेजत भी हो। काय सें कै चिट्ठियन को जवाब या कौनऊ प्रतिक्रिया कहीं नजर ही नहीं आ रही। नारद जी ने व्हाट्सएप पर पड़ी नारायण की सब चिट्ठी पढ़ लीं थीं। इधर नारायण सोच में पड़े थे, उधर नारद जी नारायण-नारायण रटते हुए वापस देवलोक गमन कर गए…। और जाके सीधे नारायण लोक पहुंचकर पृथ्वीलोक के नारायण का किस्सा चटकारे लेकर सुनाया और गुजरात मॉडल की नई व्याख्या की तो नारायण भी मंद-मंद मुस्कराए और नारद जी नारायण-नारायण जाप कर अंतर्ध्यान हो गए।