China & congress:आखिर इतनी आत्मीयता क्यों है भाई ?
पहले 2020 में गलवान घाटी और अब अरुणाचल प्रदेश में तवांग में चीन ने घुसपैठ की जो नाकाम कोशिश की, उसका असल मकसद भारत की जमीन पर कब्जा करना या हमें सैन्य शक्ति दिखना या किसी तरह का सैन्य नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि कांग्रेस को विरोध का मौका देना या देश में कांग्रेस को चर्चा में लाना रहता हो,ऐसा लगता है। यह केवल संयोग न हीं हो सकता जब चीन कोई हरकत करता है और कांग्रेस इसे देश के सामने सबसे बड़े संकट के तौर पर दुष्प्रचारित कर जनमानस में अपनी छवि चमकाने की कमजोर कोशिश करती है। रक्षा जैसे अहम और किसी भी देश के लिये अविवादित मसले पर कांग्रेस जो आचरण करती है, वह उसके समूचे चरित्र पर ही सवाल खड़े करती है, किंतु उसे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पडता। इस बारे में गृह मंत्री अमित शाह का बयान गौर करने लायक है, जो उन्होंने कांग्रेस द्वारा सदन न चलने देने के बाद प्रेस से चर्चा में दिया। उन्होंने बताया कि जिस वक्त सदन में पांचवां सवाल राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन द्वारा करीब दो करोड़ रुपये के दान संबंधी आने वाला था, तभी कांग्रेस ने चीन ने घुसपैठ कर ली,ऐसा कहकर सदन को बाधित किया। जबकि हम जानते हैं कि देश- दुनिया में प्रसारित वीडियो में साफ दिख रहा है कि भारतीय वीर जवानों ने चीनी सैनिकों की लाठियों से जमकर धुलाई करते हुए उन्हें एल ए सी के पीछे धकेल दिया था। यह घुसपैठ कैसे हुई? जो दुनिया ने देखा, वह कांग्रेसियों को नजर क्यों नहीं आया?
किसी भी देश के आम नागरिक को उसकी सरकार की विदेश नीति,अंतरराष्ट्रीय पेचिदगियों की समझ आम तौर पर नहीं रहती, न इसकी जरूरत रहती है। अलबत्ता उसे इससे फर्क पड़ता है कि देश का विरोधी दल क्या कह रहा है । इसी फलसफे को ध्याान रखकर कांग्रेस चीन के प्रति अति संवेदनशीलता बरतते हुए अपनी ही सरकार को जब-तब आरोपों के घेरे में रखती रहती है। वह सफल-असफल होती है यह अलग बात है, लेकिन इससे उसकी नीयत का पता तो चल ही जाता है और बार-बार उसकी बदनीयति उजागर होने के बाद भी वह चीन को फायदा पहुंचाने वाली बातें कहकर सोचती है कि उसने विपक्ष की भूमिका का निर्वाह किया तो इस गलतफहमी के साथ उसे राजनीति करने से भला कौन रोके? जिस दल के सदस्यों को इतना ही भान नहीं कि राजनीतिक हित-लाभ के लिये सेना के शौर्य और गतिविधियों पर चर्चा नहीं की जानी चाहिये, वह बार-बार सैन्य कार्रवाई का विवरण सदन में देने और देश को जानने के हक की बात करते हैं।
गलवान घाटी और तवांग में भारत को क्या नफा-नुकसान हुआ,इससे बेखबर कांग्रेस किसी सूदखोर बनिये की तरह मुनीम से हिसाब मांगने के अंदाज में पेश आती है, जबकि वह तो देश की नजर में मूल और सूद दोनों ही डकार जाने वाली जमात में आ चुकी है। दोनों ही जगह चीन-भारत के बीच टकराव हथियार रहित रहा और दोनों ही बार चीन को ही पर्याप्त नुकसान भी हुआ, फिर भी इन घटनाओं की अनदेखी कभी-भी भारत सरकार और हमारी सेना ने नहीं की। इसके बावजूद कांग्रेस और मोदी विरोधी विपक्ष केवल सरकार पर ही हमलावर तो रहा ही, सेना के लिये भी उटपटांग बयानबाजी करता रहा। यह शोभनीय और तार्किक तो नहीं कहा जा सकता।
तवांग की ताजा घटना के बाद भी देश और दुनिया का मीडिया चीन की हरकत को मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने वाली कार्रवाई ही करार दे रहा है। दुनिया जान चुकी है कि जो चीन दिसंबर 2019 से ही कोरोना जैसी महामारी को छुपाकर रखता रहा,उसकी रोकथाम से बेपरवाह रहा,इलाज से निश्चिंत रहा और अंतत: समूचे देश को मौत की भट्टी पर बैठा दिया, फिर भी मानने को तैयार नहीं है। सिर्फ इसलिये कि दुनिया को कोरोना का दंश देने का आरोप न लगे, वह समय पर इसकी पड़ताल,जांच,उपचार और टीकाकरण से बचता रहा। उसने फिर सख्त लॉक डाउन लागू कर लोगों का जीवन नरक समान बना दिया। उससे उपजे असंतोष,जीवनोपयोगी वस्तुओं की कमी,रोजगार का अभाव,नेतृत्व के प्रति विद्रोह और अंतरराष्ट्रीय रूप से चीन के अप्रत्यक्ष बहिष्कार के चलते अर्थ व्यवस्था के लगभग धऱाशायी हो जाने के आसार पर परदा डालने के लिये भारत के साथ सीमा विवाद को उठाकर दुनिया का ध्यान भटकाने की कुत्सित कोशिश जरूर की, किंतु हर बार की तरह उसे मुंह की ही खानी पड़ रही है।
चीन जो कभी सितारा अर्थ व्यवस्था का तमगा पाने के करीब पहुंच गया था, उसे कोरोना फैलने के बाद से दुनिया से जिस प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है,उसकी कल्पना उसने नहीं की होगी। कभी वह अमेरिका को आंखें दिखाता है तो कभी हांगकांग,ताईवान,जापान से हरकतें करता है। भा्रत के साथ तो उसका स्थायी बैर है ही। वह तो वैश्विक आर्थिक मजबूरियां उसका रास्ता रोकती हैं और अंतरराष्ट्रतीय तकाजे उसे नकेल डाले रहते हैं, वरना वह पाक के साथ मिलकर किसी भी हद तक नापाक हरकतों को अंजाम दे सकता है। तब भी वह जो चिंदी हरकतें करता है,उससे वह मानकर चलता है कि भारत को अस्थिर कर सकता है। उसके ऐसा मानने के पीछे तर्क यह है कि भारत में कांग्रेस और वामपंथी राजनीतिक दल और कथित बुद्धिजीवी वर्ग अपनी ही सरकार को घेरने लग जाते हैं और कुछ समय के लिये भेडिया आया,भेड़िया आया की रट लगा कर माहौल खड़ा कर देते हैं। अभी संसद का् शीतकालीन सत्र न चलने देना इसका ही उदाहरण है।
पता नहीं भारत में कब ऐसा होगा कि समूचा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा दिखेगा या मन से साथ होगा । चीन और पाकिस्तान जैसे घोषित दुश्मन देशों की टुच्ची हरकतों के वक्त एकजुटता दिखाने की बजाय अपनी ही संसद को बाधित कर जन हित के मसलों पर चर्चा से बचना लोकतांत्रिक तो नहीं है। कांग्रेस के नेतृत्व को पता नहीं यह समझ कब आयेगी कि उसकी ऐसी हरकतें उसे जन समर्थन से परे धकेलती जा रही है। संभव है, कांग्रेस के भीतर नेतृत्व के सलाहकार ही ऐसा चाहते हों, ताकि उनकी पूछ-परख बनी रहे, भले ही पार्टी का सत्यानाश होता रहे।