जब तक सूरज-चांद रहेगा, कोरोना तेरा नाम रहेगा

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जब तक सूरज-चांद रहेगा, कोरोना तेरा नाम रहेगा

अब तो ऐसा ही लगने लगा है। वैसे तो ये नारा उन नकली नेताओं के लिये लगाया जाता रहा है, जिनकी याद एक दशक भी नहीं रह पाती, किंतु कोरोना ने वो मुकाम हासिल कर लिया है, जब मोहन जोदड़ो,हड़प्पा की खुदाई से मिले मानव जीवन के अवशेषों से लगाकर तो विकसत होती मानव सभ्यता तक के प्रमाण प्रस्तुत कर दिये थे। एक ऐसा डर जो हर रात लौटकर आ जाता है, जैसे ही रोशनी पर कालिमा छाती है। यह मनुष्य में बढ़ रही कमजोरी और असुरक्षा का संकेत है या दुष्प्रचार का नतीजा कि समूची दुनिया इसके खौफ से बेफिक्र होते-होते फिर से घबराने लग जाती है। क्या हम इसी तरह से कोरोना के एक,दो,तीन वैरियंट की गिनती करते हुए ही मर-खप जायेंगे या बिदांस जीवन शैली को अंगीकार कर इसे डरावने सपने भर की तरह भुला देना चाहेंगे?

दरअसल, चीन में कोरोना से मचे हाहाकार को उसी तरह से लिये जा रहा है,जैसा दिसंबर 2019 में इसके वुहान से सफर पर निकल पड़ने के वक्त हुआ था। तब तो चीन सीनोजोरी करते हुए इससे निडर होने का अभिनय कर रहा था और दुनिया उस पर भ्रमित होकर चपेटे में आती जा रही थी। खुद चीन यह अनुमान नहीं लगा पाया कि जिस कोरोना को वह चीनी चाट की तरह समझ रहा था, वह एक दिन उसका फालूदा बना देगा। इसे उसका मुगालता कहें, अति आत्म विश्वास या दुनिया को भ्रम में रखे रहने का उपक्रम, जो ढाई बरस से शांत उस ज्वालामुखी की तरह फट पड़ा है, जो बर्फ की परत से ढंका रहकर शीतलता का अहसास दे रहा था। हम भारतीय इसे भस्मासुरी आचरण कहते हैं, जो एक दिन खुद को स्वाहा कर देता है।

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चीन ने जबसे (सत्तर का दशक) सुधारवाद बनाम पूंजीवाद की राह पर दौड़ लगाना प्रारंभ किया, तब से उसका ध्येय अमेरिका के वर्चस्व को ध्वस्त कर खुद का दुनिया का सुपर पॉवर बन जाना रहा। इसे पा लेने के आखिरी छोर पर पहुंचकर वह सांप-सीढ़ी के खेल की तरह 99 से 1 पर न सही तो 50 से नीचे तो आ ही गया है। अब पहली बार की तरह उसकी राह आसान नहीं रही। वजह साफ है। एक तो भारत उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर आ खड़ा हुआ है, जो कछुआ गति से लेकिन सुरक्षित तरीके से अपने कदम मंजिल की तरफ बढ़ा रहा है। दूसरा, जिस अमेरिका की अंगुली पकड़कर,उसकी ही कार्य पद्धति को अपनाकर और उसके ही बाजार को चीनी माल से पाटकर दुनिया की आर्थिक शक्ति बनने की राह चला था, वह राह ऐन बीच में गहरे तक धंस गई है। अब अमेरिका ही उसका पहला और बड़ा दुश्मन है।

चीन के इरादों में दूसरी सेंध लगी कोरोना की वजह से जब शेष दुनिया प्रत्यक्ष तौर पर कुछ भले न कर पाई हो, लेकिन उसने चीन से दूरियां तो इतनी बढ़ा ही ली कि चीन अब उन देशों की प्रशंसक सूची में हाल-फिलहाल तो नहीं आ सकता। यह जगह तेजी से भारत भर रहा है। अमेरिका भी अब भारत को सुविधाजनक सहयोगी की तरह देख रहा है और आगे बढ़कर गर्मजोशी से मेलजोल बढ़ा रहा है। यह अमेरिका की मौकापरस्ती का स्थायी चरित्र है, ,जिसे भारत समझ ही रहा होगा, लेकिन अंतरराष्ट्रीय तकाजों के बीच ऐसी चालें चलना भी समय की मांग रहता है। चीन और उसकी ओट में दुबके पाकिस्तान से निपटने के लिये भारत को भी अमेरिका जैसे सहयोगी की जरूरत रहेगी ही।

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इन संदर्भों के साथ देखें कि कोरोना क्या गुल खिला रहा है और दुनिया के परस्पर संबंधों पर उसका क्या असर पड़ेगा? दरअसल, चीन मुगालते में मारा जा रहा है। उसने यह दिखाने के लिये कि कोरोना से वह नहीं डरता और न यह वैसा डरावना है, अपने यहां टीकाकरण समेत अन्य उपायो की बजाय संक्रमण बढ़ने के चलते पूरी तरह से लॉक डाउन पर उतर आया। उसे लगा कि जब लोगों की आवा-जाही नहीं रहेगी।बाजार,कार्यालय,परिवहन बंद रहेंगे तो कोरोना कौन-सा घर-घर जाकर दरवाजा खटखटा कर अंदर घुस जायेगा? इसलिये चिकित्सकीय उपायों और सुरक्षा कवच को दरकिनार कर चरित्रगत तानाशाही रवैये से पेश आया। यहीं वह गच्चा खा गया और जब लोग सड़क पर आये तो कोरोना उन पर सूर्य की रोशनी की तरह छा गया।

अब मूल सवाल यह है कि क्या हमें इससे उसी तरह से डरना या बचना चाहिये, जैसा हम 2020-21 में बचते रहे हैं? मैं किसी चिकित्सक या सरकार की तरह तो सलाह तो नहीं दे सकता, लेकिन हमारे देश के तमाम संबंधित विशेषज्ञों और शासकीय मशीनरी के जिम्मेदार लोगों की बातों पर गौर करें व सामान्य ढंग से सोचें तो पाता हूं कि भारत सहित तमाम वे देश जो इसके दंश से ग्रसित हो चुके थे, उन्होंने अपने यहां व्यापक पैमाने पर टीकाकरण किया, संक्रमित होने पर जांचें करवाई और इससे जंग जीतकर मैदान संभाल लिया। वैसे में ये लोग कोरोना के वैसे किसी भी प्रकार और स्वरूप से कैसे प्रभावित हो सकते हैं, जो इस समय चीन में फैला हुआ है। वायरस का वह विकसित स्वरूप तो हमारे यहां सितंबर में मात्र चार लोगों में पाया गया था, जिन पर भी प्रभावहीन ही रहा। तो हमें अब कोरोना की वो पाबंदियां क्यों अपनानी चाहिये, जैसी इसके प्राथमिक चरण में थी?

हमो देखा है कि कोरोना की पाबंदियों को अपनाकर अनेक देशों की अर्थ व्यवस्था चरमरा चुकी थी, जो अभी तक पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ पायी है। चीन की स्थिति भयावह इसीलिये होती जा रही है कि वहां टीकाकरण पूरी तरह नहीं हुआ। काम-धंधे ठप पड़ने से आटा-तेल की जुगाड़ मुश्किल हो रही है। एक अघोषित तानाशाह देश के क्रूर शासकों की बेमुरव्वती और अव्यावहारिक सोच से दुनिया थ्येनआनमन चौक पर सैन्य टैंकों की आमद की वारदात के समय से परिचित हैं। अलबत्ता यदि कुछ करना ही हो तो समूची दुनिया को मिलकर चीन से मनुष्यों और माल के आने-जाने पर सख्ती या पूरा प्रतिबंध लगा देना चाहिये, ताकि वहां के शासकों की ऐतिहासिक भूलों को विकराल स्वरूप में आने पर वहां की जनता ही उसे सबक सिखाये और चीन अपनी सैन्यवादी,तानाशाही सोच से नीचे उतरकर दुनिया में प्रचलित व्यावहारिक और व्यापारिक तकादों के अनुरूप आचरण करना सीखे।

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।