Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista:कौन कटेगा और कौन बचेगा, पता बाद में चलेगा!
मध्य प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव में किस विधायक को टिकट मिलेगा और किसका टिकट कटेगा ये अभी तय नहीं है। ये स्थिति दोनों ही पार्टियों में साफ़ नहीं है। भाजपा ने तो एक तरह से घोषित ही कर दिया कि उसके सर्वे में जो विधायक लोग जीतने लायक पाए जाएंगे, उन्हें ही टिकट दिया जाएगा। जबकि, कांग्रेस में अजीब सी स्थिति है। सर्वे होने की भी खबर है और सर्वे का खंडन भी किया जा रहा है। कमलनाथ ऐसे किसी सर्वे से इंकार कर रहे हैं, जबकि संगठन के ही एक जिम्मेदार प्रभारी ऐसे सवालों पर प्रतिक्रिया भी देते दिखाई देते हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा के विधायकों के टिकट ज्यादा कटते दिखाई दे रहे हैं।
समझा जा रहा है कि पार्टी के करीब सवा सौ विधायकों में से कम से कम 60 से ज्यादा का पत्ता काट दिया जाएगा। यानी करीब आधे चुनाव लड़ने से वंचित कर दिए जाएंगे। इसमें से कुछ विधायकों को उनकी उम्र की वजह से चुनाव से अलग रखा जाएगा। कुछ को नाते-रिश्तेदारों की वजह से बाहर करेंगे! लेकिन, ज्यादातर विधायक उनके पुअर परफारमेंस की वजह से चुनाव से वंचित होंगे। ये विधायक कौन होंगे अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन, बताते हैं कि पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उनसे बात करना भी शुरू कर दिया है।
बताते हैं कि भाजपा चुनाव से पहले एक सर्वे और करेगी, जिसमें देखा जाएगा कि उनकी स्थिति सुधरी है या नहीं! पर, यह तय है कि इस बार के चुनाव हमेशा के चुनाव से अलग होंगे। सिर्फ सिफारिश या मेरा आदमी-तेरा आदमी की योग्यता से भाजपा शायद टिकट नहीं देगी। जिसे टिकट नहीं मिलेंगे तो उसके जीतने की कूबत पर ही। वास्तव में यह फार्मूला भाजपा ने गुजरात से निकाला है। वहां भी कई विधायकों के टिकट काट दिए गए थे, फिर भी भाजपा ने आसानी से बहुमत पा लिया। अब देखना है कि यहां गुजरात का फार्मूला कितना फिट बैठता है।
इंदौर के महापौर अकेले क्यों पड़ गए!
इंदौर के भाजपा महापौर पुष्यमित्र भार्गव इन दिनों अकेले पड़ते दिखाई दे रहे हैं। चुनाव के समय भी उनके साथ बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी और अब चुनाव जीतने के बाद करीब 3 महीने बाद भी उनके साथ बड़े नेता दिखाई नहीं दे रहे। वे अकेले ही किला लड़ा रहे हैं। अंदर की खबरें हैं कि नगर निगम के अफसर भी उनको तवज्जो नहीं दे रहे। पुष्यमित्र भार्गव खुद नेता नहीं है, इसलिए वे नेताओं के इस व्यवहार को शायद वे समझ नहीं पा रहे। वे भले स्वीकार न करें, पर ऐसा दिखाई भी दे रहा है और ऐसा समझा भी जा रहा है।
वे खुद नेता नहीं है, इसलिए उनके सलाहकार भी नेता नहीं हैं। उनको सलाह देने वाले भी उनके साथ के वकील ही हैं, जिनका राजनीति से कोई वास्ता नहीं। आज की तारीख में उनके समर्थक भाजपा नेताओं में सिर्फ कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला को देखा जा रहा है। इसके अलावा भाजपा के दूसरे नेता और विधायक महापौर से कन्नी काटते ही दिखाई दे रहे हैं।
इसका नतीजा यह हुआ कि महापौर भी उनके अपने इलाके क्षेत्र क्रमांक-चार तक सीमित होकर रह गए। उनके सारे अभियान की गतिविधियां फूटी कोठी से महू नाका तक केंद्रित हो गईं। ऐसी स्थिति में आने वाले समय में वे कितने सफल होंगे, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन, यह तय है भले वे कितने ही योग्य और बड़े वकील हों, पर वे भविष्य में राजनीति नहीं कर सकेंगे। इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ सकता है। यहां तक की प्रशासन में भी उनकी कोई पकड़ दिखाई नहीं दे रही। उनकी नगर निगम में भी कोई नहीं सुन रहा। देखा जाए तो इसका एक बड़ा कारण उन्हें भाजपा के जिस गुट से टिकट मिला है, वो गुट भी कमजोर पड़ गया।
ये सरकार के मंत्री हैं या?
प्रदेश के शिवराज मंत्रिमंडल के एक मंत्री इन दिनों पूरी तरह मजाक का विषय बन गए। ये हैं ग्वालियर के प्रद्युम्न सिंह तोमर जिनके पास ऊर्जा विभाग की जिम्मेदारी है। वे अपने विभाग का काम छोड़कर सब कुछ करते हैं। उनकी पहली चिंता से कैसे भी चुनाव जीतना है। यह स्वाभाविक भी है और सभी विधायक इसी चिंता में डूबे हैं। लेकिन, प्रद्युम्न सिंह तोमर कुछ ज्यादा ही चिंतित हैं। वे जब भी अपने क्षेत्र में आते हैं कुछ न कुछ ऐसा जरूर करते हैं कि वह खबर बने और क्षेत्र के लोगों में यह भावना आए कि हमारे विधायक ही हमारे बारे में सोचते हैं, सरकार कुछ नहीं करती!
कभी वे सड़क बनाने की मांग पर चप्पल छोड़ देते हैं। कभी वे टेंट में बैठकर रात बिताते हैं, तो कभी कार से उतरकर वॉलीबाल खेलने लगते हैं। इस तरह की हरकतों से लगता है कि उनका पूरा ध्यान क्षेत्र के लोगों से सामंजस्य बैठाकर चुनाव जीतने का है। लेकिन, इस बार उन्होंने जो किया वो अतिशयोक्ति ही है। वे अपनी हरकतों की सारी सीमाएं लांघ गए।
उन्होंने रास्ते चलते एक घर से खाना मांगा और वहीं बाहर बैठकर खाने लगे। यह किसी मंत्री पद पर बैठे व्यक्ति के लिए अस्वाभाविक सी घटनाएं है। वे चाहते तो सम्मान से किसी के घर में जाकर भी खाना खा सकते थे। लेकिन, उन्होंने जो किया वह एक तरह से यह दिखावा था। वे सहजता से कुछ नहीं करते। प्रद्युम्नसिंह तोमर ये नहीं सोचते कि उनकी ऐसी हरकतों का दूसरा पक्ष भी है। यही पक्ष अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है। लोगों को लगने लगा है कि उनके ये सारे हथकंडे चुनाव जीतने तक सीमित है।
वे सिंधिया के राजनीतिक शागिर्द माने जाते हैं और उनके साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे। उपचुनाव हुआ तब एक कांग्रेसी नेता से चुनाव प्रचार के लिए मिन्नतें करने वाला उनका वीडियो जमकर वायरल हुआ था। तभी वे लोगों की आंखों में भी आए थे। लेकिन, उसके बाद उन्होंने जो कुछ किया उससे वह घटना भी बहुत पीछे रह गई। अब देखना है कि चुनाव के बाकी बचे 8 महीनों में क्या-क्या करते हैं।
*जनता के कलेक्टर!*
इंदौर में आए नए कलेक्टर डॉ इलैयाराजा टी इन दिनों जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं। उनके आने के बाद लोगों को लगने लगा है कि यदि हमने उनको अपनी समस्या बता दी, तो वे उसका हल भी निकाल लेंगे और यह हो भी रहा है। हर मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई की भीड़ जिस तरह बढ़ रही है, उससे यह बात साफ हो गई कि नए कलेक्टर जनता की समस्याओं के प्रति बहुत ज्यादा गंभीर है। वे अपने चेंबर के बाहर बैठे लोगों से कभी भी, किसी भी समय बात करने बाहर आ जाते हैं। उनकी समस्याएं सुनते हैं और उनका वहीँ निराकरण भी करते हैं।
उनका समस्याएं सुनना खानापूरी तक सीमित नहीं होता! यही कारण है कि वे लोगों में जनता के कलेक्टर की तरह लोकप्रिय हो रहे हैं। हाल ही में एक वृद्ध महिला से बात करते हुए उनका वीडियो काफी वायरल हुआ, वे किसी से फोन पर बात करते सुनाई दे रहे आप इनका ( वृद्ध महिला का) पूरा चेकअप कीजिए, इनको योजनाओं से दवाइयों की व्यवस्था कीजिए, इनका ठीक से इलाज कीजिए। यदि दवाइयों के पैसे लगे तो आप मेरे से लीजिए उसमें कोई प्रॉब्लम नहीं है।
यह किसी एक व्यक्ति बात नहीं है। इस तरह के काम वे रोज कर रहे हैं और इसीलिए पसंद भी किए जा रहे! लेकिन, उन्होंने इंदौर आकर एक सबसे बड़ा काम यह किया कि इंदौर के नेताओं को मंच से उतार दिया। इससे पहले इंदौर के सारे थके-चुके और हरल्ले नेता प्रशासन के अधिकारियों के साथ सरकारी कार्यक्रमों में मंच पर बैठे दिखाई देते थे। अब इन सारे नेताओं की छंटनी हो गई। यह स्वाभाविक भी है। क्योंकि, जिन्हें जनता ने नकार दिया, वे सरकारी मंच पर किस हैसियत से बैठते थे। नए कलेक्टर ने सभी को मंच से उतारने के साथ जनता की समस्याओं के साथ संबंध जोड़ लिया, जो उनकी लोकप्रियता के साथ सरकार की योजनाओं के लिए सकारात्मक पहल है।
इस माह CS वेतनमान में ये IAS होंगे पदोन्नत
भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1991 बैच के आईएएस अधिकारी केसी गुप्ता 1 फरवरी 2023 को अपर मुख्य सचिव की कुर्सी पर बैठे नजर आएंगे। वे वर्तमान में प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा विभाग हैं। वे इसी माह मुख्य सचिव वेतनमान में पदोन्नत होंगे। महिलाओं को लेकर दिए गए अपने बयानों को लेकर चर्चित अपर मुख्य सचिव अशोक शाह इसी माह रिटायर हो रहे हैं। वे 1990 बैच के IAS अधिकारी हैं। उनके रिटायरमेंट के बाद रिक्त हुए पद पर केसी गुप्ता की ताजपोशी होगी।
भाग्यशाली IPS अधिकारी
मध्य प्रदेश काडर के 1988 बैच के IPS अधिकारी एस एल थाऊसन एक भाग्यशाली पुलिस अधिकारी हैं। देश के सबसे बड़े अर्धसैनिक पुलिस बल CRPF के मुखिया थाऊसन को दूसरे बड़े पुलिस बल BSF के DG का अतिरिक्त चार्ज भी दे दिया गया है।
वे डेढ़ साल पहले तक इसी बल के विशेष महानिदेशक थे। थाऊसन इसके पहले सीमा सुरक्षा बल (एस एस बी) तथा आई टी बी पी के महानिदेशक भी रह चुके हैं।?
JS Postings: IAS की तुलना में अन्य सेवाओं के अधिकारियों की संख्या ज्यादा
बीते साल के अंतिम सप्ताह में केंद्र सरकार ने 19 संयुक्त सचिवों की पदस्थापना के आदेश जारी कर दिए। खास बात यह है कि इस आदेश में आईएएस अधिकारियों की तुलना में अन्य केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों की संख्या ज्यादा है। कुछ को तो शिक्षा, परिवहन और शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग मिले हैं।
CS का लगातार दूसरा एक्सटेंशन!
सत्ता के गलियारों में इस बात की चर्चा तो थी कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र को दूसरा सेवा विस्तार मिलना लगभग तय माना जा रहा था। लेकिन दूसरा विस्तार भी एक साल का मिलेगा, इसे लेकर आश्चर्य है।
मिश्रा 1984 बैच के आईएएस अधिकारी है। 2021 में 31 दिसंबर को रिटायर होने के एक हफ्ते पहले ही उन्हें एक साल का सेवा विस्तार देकर उ प्र का मुख्य सचिव बना दिया गया। वे केंद्रीय शहरी विकास और आवास मंत्रालय के चार साल से अधिक समय तक सचिव थे।