A Lunch of DM and Dinner to CS: अतिथि देवो भव: की परंपरा

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A Lunch of DM and Dinner to CS: अतिथि देवो भव: की परंपरा

 

अपने स्वजनों ,गाँव-शहर प्रदेशों को छोड़कर डगर डगर और नगर नगर भटकते बंजारों और हम सरकारी अधिकारियों में विस्थापन और स्थानांतरण एक ध्रुव सत्य है। प्रशासन अकादमी में हमारे मशहूर कोर्स डायरेक्टर मोहम्मद अफ़ज़ल साब जब हमारे बैच को प्रशासन के रंग ढंग सिखा रहे थे तब हमने देखा था कि कैसे शिष्टता और दृढ़ता से सही पक्ष को पहचान कर उसके पक्ष में खडा होना बता रहे थे।

हम लोग खुश हुए जब उन्होंने बताया कि मैदानी समझ के लिये छिन्दवाड़ा चलना है। अकादमी की बस जब सागौन वृक्षों से भरे सघन वनों को पार कर तामिया पंहुची तो एसडीएम श्री संतोष मिश्र,एडीएम श्री मनीष श्रीवास्तव जी के साथ कलेक्टर छिन्दवाड़ा श्री एंटनी डिसा सर स्वयं मौजूद थे। उन्होंने विस्तार से छिन्दवाड़ा और वहाँ संचालित योजनाओं के बारे में बताया। वे पूर्व में पातालकोट परियोजना के प्रशासक रह चुके थे। वे अपने ज़िले के चप्पे चप्पे से भली भाँति वाक़िफ़ थे। उनके एसडीएम,एडीएम भी चुस्त दुरुस्त कार्य कुशल लगे। अगले दिन का दोपहर भोज कलेक्टर बँगले में करना ह, यह आमंत्रण पाकर भी हम लोग खुश हुए। तामिया के जादुई सम्मोहन में डूबी उस रात बढ़िया नींद लेकर पातालकोट के पाताल भ्रमण के बाद हम सब दोपहर भोज के लिए कलेक्टर बँगला पहुंचे।

उस दोपहर बिना कोई उपदेश दिये अपने आचरण से सौम्यता शिष्टाचार के कितने पाठ डिसा दंपत्ति ने हमें सिखा दिये। वे मिलकर खाना बना रहे थे और इतनी मनुहार के साथ परोस रहे थे कि अतिथि देवो भव साकार हुआ। यह बात अलग है कि हम लोगों ने देवों की बजाय दानवों की तरह खाया आख़िर महीनों बाद जो घर का खाना मिला था। विनम्रता और सौमनस्यता से भरा वह स्वादिष्ट भोज हम लोग कभी नहीं भूले। तीन दशक बाद जब हम लोग ज़िलों का कार्यकाल पूरा कर भोपाल लौटे तो मैंने प्रस्ताव रखा। सभी बैचमेट सहमत हुए। हमने डिसा सर के सेवा निवृत होने की प्रतीक्षा की। उन्हें आमंत्रित करने मैं ही गया। उन्हें याद दिलाया। हमारे अनुरोध पर वे सपरिवार पधारे। अब अतिथि देवो भव की ज़िम्मेदारी हमारी थी। प्रशासन केवल दांव पेंच और प्रतिस्पर्धा में नहीं जीता। सहज सरल मानवीय संबंध ,करुणा और कृतज्ञता के बिना जीवन जीवन नहीं होता।