संघ संगठन धर्म सत्ता में संतुलन और सीमाओं की परीक्षा का दौर

267

संघ संगठन धर्म सत्ता में संतुलन और सीमाओं की परीक्षा का दौर

 

आलोक मेहता

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हर कार्यक्रम का प्रारम्भ ” संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते” मंत्र से होता है , जिसका अर्थ है – “हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोलें, हमारे मन एक हों, जैसे प्राचीन देवता एक साथ रहते थे और एक साथ पूजा करते थे। प्रभु हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाए । ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये | “इसी तरह संघ की मुख्य प्रार्थना इन पंक्तियों से प्रारम्भ होती है – ” नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोsहम्। महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।”हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है। हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ | “संघ की यह प्रार्थना अब इसके कामकाज का अनिवार्य अंग ही नहीं पहचान भी बन चुकी है | अब संघ की प्रतिनिधि सभा ने शताब्दी वर्ष में विस्तार और कार्यों , आनुषंगिक संगठनों की गतिविधियों के लिए बेंगलुरु में विचार विमर्श कर भावी दिशा तय की है | इस दृष्टि से देश में एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि संगठन के बढ़ने , धार्मिक विवादों और सत्ता से कभी मधुर कभी तीखे संबंधों पर सार्वजनिक चर्चा स्वाभाविक है |

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघको हिन्दू राष्ट्रवादी, स्वयंसेवी संगठन के रूप में जाना जाता है | 27 सितंबर 1925 विजयादशमी के दिन डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने संगठन की स्थापना की थी | इसमें कोई शक नहीं कि इसे विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जा रह है | संघ स्वयं एक करोड़ सदस्य बता रहा है | साथ ही संघ को देश की वर्तमान में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा का पैतृक संगठन भी माना जाता है | मतलब वर्तमान दौर में भारतीय समाज ही नहीं विश्व समुदाय इन संगठनों के कामकाज और भविष्य के लिए ध्यान दे रहा है | इसीलिए मैंने मन्त्र और प्रार्थना का उल्लेख किया | धर्म , मन्त्र और प्रार्थना केवल औपचारिकता समझने वाले लोग भी होते हैं , लेकिन ऐसे संगठन के घोषित सदस्यों से अपेक्षा यही होती है कि वे मूल भावना को अपने जीवन में सही ढंग से अपनाने का प्रयास करेंगे , ताकि निर्धारित मानदंड और लक्ष्य पूरे हो सकें |

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार भारत की सत्ता में आने वाली भारतीय पार्टी के प्रभाव और सारी स्वायत्तता के बावजूद पार्टी के अधिकृत या अनधिकृत नेता के वक्तव्यों – टिप्पणियों का सम्पूर्ण समाज और व्यवस्था पर प्रभाव पढता है और इसके परिणाम गंभीर होते हैं | जैसे जब संघ प्रमुख मोहन भागवत करीब दो वर्षों से सार्वजनिक रुप से कह रहे हैं कि ‘ हर जगह पर शिव लिंग या अन्य देवी देवता की मूर्तियां निकालकर दावे नहीं किए जाएं | हमारा लक्ष्य अयोध्या कशी मथुरा तक रहा है | ” लेकिन देखने में आया है कि कई जिम्मेदार पदों पर विराजमान नेता या हिन्दू धर्म के नाम पर स्व घोषित ठेकेदार गैर जिम्मेदाराना साम्प्रदायिक भड़काऊ बयान देते रहते हैं | इससे केंद्र या राज्यों की उनकी भाजपा सरकारों और शीर्ष नेतृत्व यानी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की टीम और प्रशासन के लिए प्रशासनिक नैतिक संकट खड़े हो जाते हैं | ताजा मामला एक फिल्म और औरंगजेब के भयावह अत्याचारों के तथ्य से आगे बढाकर उसकी कब्र पर विवाद जारी है , जबकि संघ के अधिकृत प्रचार प्रमुख स्पष्ट कह चुके हैं कि ‘ औरंगजेब की चर्चा ही प्रासंगिक नहीं है | ” यह बात सही है , क्योंकि औरंगजेब या किसी मुग़ल या ब्रिटिश शासक की कब्र की जानकारी तक करोड़ों लोगों को नहीं है | फिर यदि प्राचीन अवशेषों के नाम पर अन्य स्थानों की तरह उन क्षेत्रों पर भारत सरकार के आर्कोलॉजिकल विभाग का ही निंत्रण है | कब्र खोदने लगेंगे तो देश के जाने कितने स्थानों पर खुदाई की अनावशयक बातें होने लगेगी | ऐसी स्थिति में भारत को सबसे बेहतर लोकतान्त्रिक और विकसित होता देख पूंजी लगाने और सम्बन्ध बढ़ा रहे दुनिया के देशों पर क्या बुरा असर नहीं पड़ेगा ?

इसी तरह संघ और भाजपा के संबंधों पर बीस वर्ष पहले अधिक चर्चा नहीं होती थी | तब संघ बहुत हद तक शांत और अनुशासित ढंग से काम करता था | वर्ष में दो चार बार ही उसके बयान आते थे | फिर अटल आडवाणी राज में अयोध्या अथवा कुछ अन्य विषयों पर संघ के विश्व हिन्दू परिषद् के अथवा अन्य नेताओं से कतिपय मतभेदों की चर्चाएं सामने आई | जबकि वे दोनों नेता और अब प्रधान मंत्रीं नरेंद्र मोदी हमेशा संघ के संस्कारों और संबंधों को गौरव के साथ स्वीकारते हैं | मोदी तो अंतर्राष्ट्रीय मंचों या इंटरव्यू में इसकी विस्तार से चर्चा करते हैं | सच तो यह है कि इस समय दोनों संगठनों में कोई छोटा बड़ा नहीं है और न ही वर्चस्व की लड़ाई है | निश्चित रुप से घर परिवार की तरह कुछ विषयों पर शीर्ष नेताओं की राय अलग अलग हो सकती है | लेकिन इन संगठनों से जुड़े तीसरी चौथी पंक्ति का कोई व्यक्ति अथवा रास्ता बदल चूका कोई नेता सोशल मीडिया पर बयानबाजी करता है तो उससे भ्रम पैदा होते हैं | इस तरह की समस्या का समाधान आसान नहीं है | लेकिन नेतृत्व दूसरी पंक्ति के लोगों को नियंत्रित क्यों नहीं कर सकते हैं |

संघ और भाजपा हिन्दू धर्म और हर भारतीय को अपना मानती है | हाल के वर्षों में धर्म के प्रतिष्ठित शंकराचार्यों , महात्माओं को सत्ता से अधिकाधिक अधिकाधिक सम्मान मिलने लगा है | आश्रमों और मठों की सम्पन्नता और सुख सुविधाएं भी बढ़ती गई हैं | समाज में धार्मिक भावनाओं के बढ़ने से अयोध्या , काशी , प्रयाग , मथुरा , तिरुपति , पूरी , बदरीनाथ ,केदारनाथ , द्वारका , वैष्णों देवी जैसे धार्मिक स्थानों और कुम्भ में करोड़ों लोग जाने लगे हैं | तब जाने कितने स्व घोषित और सीमित ज्ञानी धर्म के नाम पर अनर्गल प्रचार और उत्तेजक भाषण देने लगे हैं | इसका नई पीढ़ी में ख़राब असर हो रहा है | वे असली नकली की पहचान कैसे करें ? कुछ राज्यों या संसद में किसी मठ , आश्रम या धार्मिक संगठन से आए कुछ लोग चुनाव जीते हैं और सत्ता में भी हैं | लेकिन उनके लिए धर्म के साथ संविधान और अपने संगठन की लक्ष्मण रेखाएं हैं | उन पर नियंत्रण संभव है | लेकिन देश के कई हिस्सों में भगवा या अन्य धर्म के प्रतीकात्मक वेश में जाने कितने नेता या ठेकेदार खड़े हो रहे हैं , जो अकारण विवाद और संकट पैदा कर रहे हैं | वे न केवल धन सम्पत्ति और साम्राज्य बना रहे , बल्कि भारत की छवि भी ख़राब कर रहे हैं | इसलिए अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ , भाजपा , सरकार और वास्तविक मान्यता प्राप्त धार्मिक नेताओं को सत्ता या प्रतिपक्ष अथवा धर्म के नाम पर गड़बड़ी करने वालों को नियंत्रित करने के प्रयास करने होंगे |