चुनाव तिथि को तय करने की गफ़लत से निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान?

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चुनाव तिथि को तय करने की गफ़लत से निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान?

नेशनल हेड गोपेंद्र नाथ भट्ट की खास रिपोर्ट

नई दिल्ली: भारत के निर्वाचन आयोग ने राजस्थान की जनता की भावनाओं और भारी राजनीतिक दबाव में राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की तिथि में परिवर्तन कर उसे 23 नवंबर के बजाय 25 नवंबर कर दिया है। प्रदेश में अब सभी 200 विधान सभा सीटों पर एक साथ 25 नवंबर शनिवार को वोट पड़ेंगे।

राजस्थान में विधान सभा चुनाव के इतिहास में संभवत पहली बार चुनाव तिथि में हुए इस परिवर्तन तथा चुनाव तिथि को तय करने की गफ़लत से निर्वाचन आयोग की कार्य पद्धति और प्रतिष्ठा तथा राज्य के निर्वाचन विभाग के होम वर्क पर सवालिया निशान पैदा हो गया है। निर्वाचन आयोग चुनाव की तैयारियाँ बहुत पहले से ही शुरू कर देता है ।निर्वाचन आयुक और अधिकारी गण प्रदेश का दौरा करते है और सर्वदलीय बैठकें भी आयोजित की जाती हैं। राज्य के चुनाव अधिकारी निर्वाचन आयोग को चुनाव सम्बन्धी हर पक्ष का फ़ीड बेक देते है। इसी आधार पर निर्वाचन आयोग चुनाव कार्यक्रम निर्धारित करता है।चुनाव की सम्पूर्ण प्रकिया में मतदान की तिथि का अपना महत्व होता है। इस बार भारत के निर्वाचन आयोग ने जब राजस्थान विधान सभा सहित पाँच प्रदेशों में मतदान की तारीखों का ऐलान किया और राजस्थान विधान सभा की दौसौ सीटों पर एक ही चरण में मतदान कराने के लिए 23 नवम्बर की तिथि घोषित की गई तों आश्चर्य की बात यह रही कि इस बार किसी का ध्यान उस दिन ‘देवउठनी एकादशी’ जैसे बड़े पर्व के दिन मतदान दिवस होने की ओर नही गया।

राजस्थान में विधान सभा चुनाव की तारीख का ऐलान होने के बाद से ही प्रदेश की आम जनता सहित सभी राजनीतिक पार्टियों के माथे पर इस बात को लेकर चिंता की लकीरे दिखाई दी कि मतदान की दिनांक 23 नवम्बर का दिन ‘देवउठनी एकादशी’ का महापर्व है। ऐसे में मतदान प्रतिशत पर गहरा असर पड़ने की आशंका से इंकार नही किया जा सकता ।

‘देवउठनी एकादशी’ का दिन भारतीय संस्कृति और धार्मिक श्रद्धा से जुड़ा बहुत ही बड़ा दिन माना जाता है।ऐसी मान्यता है कि चार माह के बाद इस दिन देवता गण शयन से जागृत होते है इसलिए इस पर्व को पूरे देशभर में श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन पवित्र सरोवरों और नदियों के संगम स्थलों में स्नान का महत्व है और इस दिन से ही सभी रुके हुए मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी की जाती हैं। राजस्थान में विशेष कर इस दिन शादियों के लिए इसे ‘अबूझ मुहूर्त’ माना जाता है । खास कर अक्षय तृतीया की तरह प्रदेश में हज़ारों सावे शादियाँ होती हैं। इस महापर्व को देखते हुए यदि 23 नवम्बर को मतदान होता तो लाखों लोगों के वोट देने के लिए मतदान केंद्रों तक पहुँचने में संशय अवश्यम्भावी था ।मीडिया रिपोर्टस के अनुसार इस दिन प्रदेश में हर बार की तरह इस वर्ष भी हज़ारों शादियां होने से मतदान प्रतिशत के गिरने की संभावना रहती क्योंकि एक शादी में घर परिवार के लोग,रिश्तेदार, हलवाई, टेंट, बैंड बाजा सहित विभिन्न वर्ग के लोग सीधे रूप में जुड़े होते हैं। लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर रिश्तेदारों के घर जाते हैं। विवाह के एक दो दिन पहले एक दूसरे के गांव घर बारात लेजाते हैं। वहीं जिनके यहां शादी है, वो सभी लोग तैयारियों में उलझे होते हैं। ऐसी सूरत में लोग कामकाज और विवाह समारोह छोड़कर वोटिंग करने शायद ही जा पाते और इस तरह लाखों लोग मतदान से वंचित रह जातें।

एक ओर चुनाव आयोग वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने तथा लोकतंत्र के पावन उत्सव में आमजन से बड़ी भागीदारी कर भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था को मजबूत करने की अपील करता है । वहीं राजस्थान में इस शुभ मुहूर्त और बड़े महापर्व के दिन मतदान का आयोजन निर्वाचन आयोग के मतदान जागृति के संकल्पों पर सीधे तौर पर प्रभावित करता।

भारत निर्वाचन आयोग का ध्यान इस ओर दिलाने के लिए वैसे तों और भी कई लोगों , दलों तथा संगठनों ने आयोग से मतदान की तिथि बदलने का आग्रह किया लेकिन सर्वप्रथम पाली के सांसद और पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री पी पी चौधरी ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार को पत्र लिख कर बताया कि आयोग द्वारा गत 9 अक्टूबर को राजस्थान विधानसभा चुनाव की मतदान की जो तिथि 23 नवम्बर, 2023 तय की गई है उसके बारे में आपके संज्ञान में लाना आवश्यक है कि निर्वाचन आयोग की मूल भावना ‘मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी’ के अनुरूप उस दिन देव उठनी एकादशी होने के कारण पूर्ण नही हो पायेंगी। इसलिए जन भावनाओं को देखते हुए निर्वाचन आयोग को राजस्थान विधानसभा चुनाव-के लिए निर्धारित तिथि 23 नवम्बर को बदलने पर विचार करना चाहिए ।

निर्वाचन आयोग ने समय रहते इस पर संज्ञान लेते हुए तुरन्त राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए निर्धारित की गई तिथि 23 नवम्बर को बदल 25 नवंबर कर दिया वरना निश्चित रूप से मतदान प्रतिशत प्रभावित हुए बिना नही रहता। साथ ही राजनीतिक दलों को भी उसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता ।

नवरात्री दशहरा तथा दीपावली के त्यौंहारों के साये में हो रहे इस बार के विधान सभा के चुनाव किसको फ़ायदा और किसे नुक़सान पहुँचायेंगे? यह भी एक विचारणीय प्रश्न है? अलबत्ता इस बात पर कोई दो सवाल नही है कि इस बार चुनाव प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने और मत दाताओं को लुभाने के लिए अपेक्षाकृत अधिक खर्च वहन करना पड़ेगा। अब इससे बचने के लिए वे कौन सा तरीक़ा निकालेंगे यह देखना दिलचस्प होंगा।