नई पीढ़ी के मन में जगाना होगा भाषायी गौरव का भाव – राज्यपाल
वरिष्ठ पत्रकार डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट
भोपाल । प्रदेश के राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल का कहना है कि भाषा किसी भी देश और संस्कृति की पहचान होती है। ऐसे में जरूरी है कि नई पीढ़ी के मन में हमें अपनी भाषा के प्रति गौरव का भाव जगाना होगा। इस कार्य में साहित्यकार – लेखक – पत्रकार अपनी महती भूमिका निभा सकते हैं।
वे गत दिवस भोपाल स्थित पत्रकारिता एवं संचार माध्यमों के ज्ञान तीर्थ माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान में आयोजित ” भारतीय भाषा महोत्सव” के शुभारंभ अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
सत्र की अध्यक्षता गुजराती के लब्ध प्रतिष्ठ संपादक-लेखक और इतिहासविद् पद्मश्री विष्णु पण्ड्या कर रहे थे। मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखदेव प्रसाद दुबे तथा मंत्री संचालक कैलाशचंद्र पंत विशेष रूप से उपस्थित थे।
राज्यपाल ने आगे कहा कि सभी भारतीय भाषाएं अपने आप में समृद्ध हैं, इनके बीच में यदि तादात्मय स्थापित होता है तो हमारी हिंदी ही मजबूत होगी। उन्होंने विश्वास जताया कि आज का यह आयोजन इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
🔸भारतीय भाषाओं में विपुल साहित्य संपदा
अध्यक्षीय उद्बोधन में पद्मश्री विष्णु पण्ड्या ने कहा कि देश में बोली जाने वाली हर भाषा और बोली में विपुल साहित्य संपदा तो है ही साथ ही इनमें जीवन दर्शन भी है। इस तरह के आयोजन इस संपदा को एक-दूसरे से परीचित कराने में सहायक होते हैं। उन्होंने इस आयोजन को विविध भारती की संज्ञा दी।
विशिष्ट अतिथि मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के मंत्री संचालक कैलाशचंद्र पंत ने कहा कि भाषाओं के बीच समन्वय स्थापित होना आपसी एकता के भाव को जगाएगा। इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि यह आयोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं में विपुल मात्रा में ज्ञान छिपा है। इस तरह के आयोजनों से हम हमारी इस ज्ञान परंपरा को सामने ला सकते हैं। श्री पंत ने सुझाव दिया कि भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाने में प्रदेश के विश्वविद्यालय भूमिका निभायें। इसके पूर्व स्वागत् वक्तव्य तथा आयोजन के उद्येश्यों पर प्रकाश डालते हुए संग्रहालय के संस्थापक निदेशक पद्मश्री श्रीविजयदत्त श्रीधर ने कहा कि भाषाओं के बीच ‘अपनापा और बहनापा’बढ़े इस आयोजन के मूल में यही भाव है। सभी भाषाएं श्रेष्ठ हैं लेकिन इस श्रेष्ठता के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित होना चाहिए। इस महोत्सव में विमर्श सत्रों के माध्यम से यही प्रयास किए जाएंगे कि इस दिशा में वातावरण बने।
इस अवसर पर पूर्व राज्यसभा सदस्य एवं मानस भवन के कार्यकारी अध्यक्ष रघुनंदन शर्मा को मानस भवन को नई ऊंचाई देने के लिए नगर की सामाजिक संस्थाओं की ओर से सम्मानित किया गया। आरंभ में संग्रहालय की ओर से संग्रहालय समिति के उपाध्यक्ष चंद्रकांत नायडू, डॉ. रत्नेश, डॉ. अल्पना त्रिवेदी, प्रो. योगेश पटेल तथा अनु सक्सेना ने स्वागत् किया। आयोजन में एलएनसीटी विवि, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि, रवीन्द्रनाथ टैगोर विवि आदि संस्थानों की सहभागिता रही।
शुभारंभ सत्र का संचालन आकाशवाणी के समाचार संपादक संजीव शर्मा ने किया।
🔸पुस्तकों का हुआ लोकार्पण
कार्यक्रम में कुछ पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया। इनमें विष्णु पण्ड्या एवं आरती पण्ड्या की पुस्तक ‘क्रान्ति की खोज में पण्डित श्यामजी कृष्ण वर्मा’ और डा. मंगला अनुजा द्वारा संपादित संदर्भ ग्रंथ कैलाशचंद्र पंत हिन्दी जीवन व्रती’ तथा पत्रिका ‘अक्षरा’ के भारतीय भाषा विशेषांक , आकाशवाणी के समाचार संपादक संजीव शर्मा की पुस्तक अयोध्या 22 जनवरी तथा पत्रकार अजय बोकिल की पुस्तक लाजवाब शख्सियतें: कुछ लाइक्स शामिल हैं।
🔸भाषा और संस्कृति को लेकर मन में न रखें हीनता का भाव: प्रो. सुरेश
भारतीय भाषाओं के बीच ‘अपनापा और बहनापा’ बढ़े इस मंशा से माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान भोपाल ने भारतीय भाषा महोत्सव का आयोजन किया। मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सहयोग से आयोजित महोत्सव में भारतीय भाषाओं को केंद्र में रखकर विमर्श के सत्र हुए। जिसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं के विद्वान लेखकों के वक्तव्य हुए।
‘हिन्दी और भारतीय भाषाएं’ विषय पर हुए विमर्श सत्र में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि के कुलपति प्रो. केजी सुरेश की अध्यक्षता में वक्तव्य हुए। उन्होंने ‘मलयालम और दक्षिण भारत की भाषाओं की समृद्ध परंपरा पर वक्तव्य भी दिया। उन्होंने अपने धारदार वक्तव्य में कहा कि दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत में अपनी भाषा और संस्कृति को लेकर हीनता का भाव है। यही हमारी भाषा की समृद्धता में बाधक है। उन्होंने प्रश्नात्मक लहजे में कहा कि हम अपनी भाषा को मान नहीं दे पाये तो फिर कौन देगा? उन्होंने कहा कि यदि हम हमारी भाषा को समृद्ध करना और सम्मान देना चाहते हैं तो जरूरी है कि बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जाये। अपने कथन के संदर्भ में उन्होंने जर्मनी का उदाहरण भी दिया।
कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि आमतौर पर यह कहा जाता है कि अंगे्रजी पढ?र हमें अच्छा रोजगार मिल सकता है। यह सही भी है। इसके लिए यह हो सकता है कि हम ‘अंग्रेजी’ को एक भाषा नहीं, ‘कौशल’ के रूप में अपनायें। इससे बहुत हद तक हम इस समस्या से निजात पा सकते हैं।
उन्होंने लोगों को सुझाव दिया कि एक न एक अतिरिक्त भारतीय भाषा सीखें और उसका साहित्य पढ़ें। हम अनुवाद पढकर उस रचना के मर्म तक नहीं जा सकते। प्रो. सुरेश ने सुझाव दिया कि विवि में भारतीय भाषाओं के अध्ययन केंद्र स्थापित होने चाहिए। पत्रकारिता विवि में यह शुरुआत हो चुकी है।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि के प्रो. डॉ.कृपाशंकर चौबे ने कहा कि बांगला का हिंदी पर काफी असर है। हिंदी में गद्य लेखन की शुरूआत ही कोलकाता से हुई। हिंदी का पहला साप्ताहिक अखबार ‘उदंत मार्तंड’ भी वहीं से निकला।
कन्नड भाषी और हिंदी की विदवान प्रो. उषा रानी राव ने कहा आज देश में सांस्कृतिक नवजागरण का समय है। भारतीय भाषाएं हीनता के बोध से उबर रही हैं। उन्होंने कहा कि लोकभाषा नदी की तरह बहती हैं। प्रो. राव ने कर्नाटक में हिंदी के प्रसार और प्रभाव पर प्रकाश डाला।
गुजराती साहित्यकार व पत्रकार विष्णु पंड्या ने गुजराती और हिंदी भाषा के गहन रिश्तों को रेखांकित करते हुए कहा कि हिंदीतर प्रांतों के लोगों को अहिंदी भाषी कहना गलत है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा से ही बच्चों को ताकत मिलती है। हमे अंग्रेजी न जानने को लेकर अपराध बोध पालने की जरूरत नहीं है।
हिंदी को समृद्ध करने में मैथिली भाषा की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि की शोधार्थी एवं मैथिली भाषी शानू झा ने कहा कि हिंदी और मैथिली में कोई टकराव नहीं है। हिंदी आगे बढ़ेगी तो मैथिली भी मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि अब मैथिली को देवनागरी में लिखने का प्रयास हो रहा है।
विदेशों में हिंदी पत्रकारिता पर लंबे समय से शोध कर रहे डॉ. जवाहर कर्नावट ने जापान सहित कई देशो में हिंदी के साहित्य लेखन व प?त्रकारिता पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि जापान में बहुत काम हो रहा है।
आरंभ में बीज वक्तव्य देते हुए मीडिया शिक्षक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि हिंदी के विचारकों चिंतकों ने जैसा कार्य किया था वैसा हम नहीं कर पाये। यही वजह है कि आज से कुछ समय पहले तक जैसा अंतर संवाद भारतीय भाषाओं में था अब वैसा नहीं रहा है। इसे पुन: स्थापित करने की जरूरत है।
इस सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल ने किया।
संस्कृति की संवाहक भी हैं भाषाएं
‘हिंदी और लोकभाषाएं’ विषय पर हुए विमर्श सत्र में मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखदेव प्रसाद दुबे की अध्यक्षता में वक्तव्य हुए।
बीज वक्तव्य देते हुए सुप्रसिद्ध ललित निबंधकार डॉ. श्रीराम परिहार ने कहा कि भाषा मनुष्य के भावनात्मक आदान- प्रदान का माध्यम ही नहीं बल्कि संस्कृति की संवाहक भी है। एक शब्द जब आपके पास आता है तब वह हजारों साल की परंपरा लेकर ही आता है। हम साहित्य की तरफ लोक से ही आये हैं। पणिनी ने भी व्याकरण की रचना लोक भाषा में ही की थी।
सत्र में विचार रखते हुए डॉ. रामबहादुर मिश्र ने कहा कि अवधि भाषा ने दुनिया को सबसे बड़ा कवि दिया है। बघेली और छत्तीसगढ़ी अवधि की ही उपबोली है। ब्रज भाषा को केंद्र में रखकर वक्तव्य देते हुए सोमदत्त शर्मा ने कहा कि खड़ी बोली का उद्भव ही ब्रज भाषा से हुआ है। उन्होंने प्रो. रामानुज को कोड करते हुए कहा कि भारत की दो भाषाएं हैं, एक है श्रीराम और दूसरी है कृष्ण। एक उत्तर से दक्षिण की ओर प्रचलित है तो दूसरी पूर्व से पश्चिम की ओर बोली जाती है। बुंदेली भाषा पर अपने विचार रखते हुए डॉ. सरोज गुप्ता ने कहा कि बुंदेलखंड की जड़ें वैदिक काल से ही हैं। बुंदेली संस्कृति अत्यंत ही समृद्ध संस्कृति है, यही कारण है कि बुंदेली बोली लोक के बहुत करीब है।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे सुखदेव प्रसाद दुबे ने कहा कि बोलियों में एक तरह से वात्सल्य का भाव समाया हुआ है। हमें अपनी भाषाओं की तरफ ध्यान देना होगा तभी हम ‘इंडियन’ से ‘भारतीय’ हो पाएंगे।
सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार शिवकुमार विवेक ने किया।
आरंभ में आयोजन के उद्येश्यों पर प्रकाश डालते हुए संग्रहालय के संस्थापक निदेशक पद्मश्री श्रीविजयदत्त श्रीधर ने कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय पैदा हो, यही इस महोत्सव के मूल में है। उन्होंने कहा कि हमारी अंग्रेजी से कोई दुराव नहीं है लेकिन जैसे हमारी आपसी बोलचाल की भाषा में अंग्रेजी के शब्द समाहित हो गये हैं, वैसे ही भारतीय भाषाओं के शब्द आने चाहिए। इससे भाषाएं एक-दूसरे के करीब आएंगी।
इस अवसर पर लेखक , पत्रकार , साहित्यकार , विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य जन उपस्थित थे ।
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