प्रिय भैया के नाम बहना की पाती: कब तक मासूम बच्चे लापरवाही का शिकार होते रहेंगे !

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प्रिय भैया के नाम  बहना की पाती: कब तक मासूम बच्चे लापरवाही का शिकार होते रहेंगे!

स्वाति तिवारी की सवाल करती चिठ्ठी 

कब तक प्रदेश में मासूम बच्चे लापरवाही का शिकार होते रहेंगे ,कब तक बच्चे यूँ ही अकाल मृत्यु की और धकेले जाते रहेंगे। कोई नियम ,कोई कानून क्यों लोगों को भय पैदा नहीं कर पा रहे है?

सरकार केवल बोलती है लेकिन क्या किसी बोरवेल के मालिक को या बोरवेल कंपनी को कड़ी सजा की खबर सुनने में आई अब तक ? अब प्रदेश में फिर एक बच्ची अपनी साँसों का संघर्ष कर रही है।

खुले बोरवेल मतलब मौत के कुंए ! मामाजी, इन बच्चों को केवल तिलक लगा कर आरती उतारने या लाडली बेटी कहने  के साथ ही इनकी सुरक्षा की भी जरुरत है। हर दो चार माह में कोई भांजी या भांजा बोरवेल में अपनी जान गंवा देता है या एक एक साँसों के लिए प्रशासन का कर्जदार होता जाता है ? लाखों रुपये और मानव संसाधन बच्चों को निकालने में खर्च हो जाते है .क्या इस और प्रशासन ध्यान नहीं दे सकता कि बोरिंग करवाने के पहले सरकारी अनुमति अनिवार्य कर दी जाय और कार्य होने या ना होने पर सूचना अनिवार्य रूप से दी जाय।
प्रशासन का कोई व्यक्ति जाकर खातरी करे बोरिंग को कवर करके एक सुरक्षा  बाउंड्री बनायी गयी है या नहीं ? हमें भूलने की आदतें है ,हमने हादसों से सबक लिए क्या? पिछले प्रकरणों पर ह्त्या के केस चलाये गए ? क्या उनका कोई मुक़दमा फास्ट ट्रैक के तहत चलाया गया ?
आज फिर एक सृष्टि जीवन मृत्यु के बीच फंसी है। 50 फीट के गहरे अँधेरे धूल भरी  भयावह सुरंग में। ये बच्ची आपकी लाडली बहना के आँचल की सुरक्षा में महफूज क्यूँ नहीं है ? गोद भराई करने वाली सरकारें भरी गोद के बच्चे बचाने की दिशा में क्या कर रही है ? सरकारों का ध्यान चुनावों पर ज्यादा होता है।
आम जनता तो उनके लिए रेल हादसों में मरने वाली एक संख्या मात्र है .दो चार दिन का रंगमंच पर मातम बस ?
उनसे पूछिये जिनके घरों से कोई मरा है इन हादसों में। दस लाख के मुआवजे फिर गोद नहीं भर सकते ? सुहाग नहीं लौटा सकते ? हम हादसों को दुर्भाग्य कह कर अपनी ही कचोटती आत्मा को तुष्ट करा रहे होते है ?
सीहोर के मुंगावली गांव में ढाई साल की सृष्टि 300 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई है। मौके पर पहुंची NDRF,SDRF    की टीम के राहत बचाव के कार्य सतत जारी है ,सोलह घंटे से प्रयास जारी है। खबर है कि बच्चे की कोई हलचल नहीं है ,तमाम  टेक्नोलोजी का उपयोग होने के बावजूद क्या बच्चा बच पायगा ?

naidunia
अभी विदिशा के जख्म भरे भी नहीं थे ,आपके ही विदिशा क्षेत्र में बोरवेल में गिरने से हुई सात साल के बच्चे की मौत का घाव अभी रिस रहा होगा उन माँ -बाप का ! ग्राम खेरखेड़ी पठार स्थित खेत के कब्जेदार रमको बाई और नीरज अहिरवार ने लापरवाही और उपेक्षापूर्ण तरीके से बोरवेल के गड्ढे को खुला छोड़ दिया.लोकेश अहिरवार की मौत और अब राहुल कुशवाहा की बेटी सृष्टि कुशवाहा ? प्रशासन बौखला जाता है रेस्क्यू ओपरेशन में पत्रकारों के सवालों पर लेकिन परिणाम सो दिन चले अढाई कोस ? नतीजे हमेशा की तरह ढाक के तीन पात ?

Vidisha Borewell Accident rescue operation continues to save 8 year old boy lokesh ndrf sdrf Anandpur Lateri । Vidisha Borewell Accident: लोकेश की जान के बीच आया पत्थर, रेस्क्यू के लिए मंगाईं
सृष्टि अगर सुरक्षित नहीं तो स्मरण रहे  यह  कहावत जिसके अनुसार पाप और पुण्य में विश्वास करने वाले धर्म में  एक भांजी या एक भानेज 100 ब्राह्मण कही जाती है हमारे सनातनी शास्त्रों में . लव जिहाद , धर्मान्तरण,जियो मेरी बहना जैसेमुद्दों से भी बहुत ज्यादा जरुरी मुद्दे है देश -प्रदेश में।
हम बहनों को अपने बच्चों की हर तरह की सुरक्षा चाहिए। हमें हमारे बच्चों को लिए एक लेपटोप से भी ज्यादा जरूरी है रोजगार। हमें हजार रुपये की खैरात नहीं, घरेलू रोजगार का मार्केट चाहिए। हमें भाषणों की नहीं भरोसों की जरुरत है ।हमें लोकेश और सृष्टि के जीवन की जरुरत है। कठोर कानून बना दीजिये पोक्सो जैसा बोरवेल या कोई भी अधूरे कच्चे निर्माण के साथ हुए हादसे के लिए मालिक , निर्माता कंपनी और सम्बन्धित अनुमति दाता जिम्मेदार माना जायगा। भले ही फिर वह घर के बाहर एक नाली ही क्यों ना बनानी हो,तत्काल जिम्मेदारी निर्धारित की जाय।
हादसों की मौत को  दुर्घटना नहीं ह्त्या के मुकदमें चलाये जाए .और रेल मंत्री जी से कहिये मगरमछ के आंसू नहीं इस्तीफा दीजिये। माना की रेल मंत्री जी एक ब्यूरोकेसी से निकले समझदार व्यक्ति है लेकिन सदी के सबसे बड़े हादसे के अप्रत्यक्ष जिम्मेदार तो है ही ,नैतिकता के तकाजे भी होते है।
बोरवेल में अब तक कितने बच्चे गिरे और सरकारों ने कौन से नियम प्रसारित किये? जिस तरह से नयी योजनाओं के विज्ञापन जारी होते है क्या किसी मीडिया में किसी कानून का पालन ना करने पर सजा के विज्ञापन बने ? जानती हूँ ,जनता नाराज हो जायगी, यह समय नाराज करने का नहीं है नाजुक समय है, मुझे नजाकत को समझाना चाहिए।

बिहार में एक नदी पर करोड़ों का पूल ताश के पत्ते सा गिरते हुए देख कर भी हमारा खून नहीं खौलता ,तो एक बच्चे के गिरने पर मुझे बवाल नहीं करना चाहिए ,पर कल्पना तो करिए एक माँ के दर्द की जो 9 माह एक एक पल उस बच्चे के आने के इन्तजार में सब सह लेती है, गर्भ में भी उसकी हलचल को जीती है, उसकी बच्ची 17 घंटे से बिना हलचल के मौत के अँधेरे कुंए में फंसी है, उस लाडली बहना को सर्टिफिकेट नहीं उनके जीवन की सृष्टि चाहिए, मेरा हाथ जोड़कर निवेदन है अपनी दृष्टि बदलिए मामाजी! मुझे विश्वास है एक बहन की यह चिठ्ठी आपके दिल हो जरुर छुएगी।