एक IAS अधिकारी पर सरकारी जुल्म की अनोखी दास्तान, जिसे ‘केट’ ने अपने फैसले से सुधारा!

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एक IAS अधिकारी पर सरकारी जुल्म की अनोखी दास्तान, जिसे ‘केट’ ने अपने फैसले से सुधारा!

 

Bhopal : मध्यप्रदेश की प्रशासनिक सेवाओं के इतिहास में IAS अधिकारी जे एन मालपानी का प्रकरण अनोखा ही कहा जाएगा। अभी तक आम लोगों के साथ सरकारी लापरवाहियों के सैकड़ों उदाहरण दिए जाते हैं। यह संभवतः पहला मामला है जब सरकार ने एक IAS अधिकारी के साथ यह सब किया। संदिग्ध वायरल ऑडियो पर उन्हें निलंबित कर दिया। विभागीय जांच बैठा दी। जब जांच में मालपानी बेदाग बरी हुए तो उसके बकाया का भुगतान रोक दिया और आदेश में यह शर्त जोड़ दी कि भविष्य में किसी भी कार्य या नियुक्ति के लिए उनका नाम विचार में न लिया जाए। केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (केट) जबलपुर ने हाल ही में इस मामले पर फैसला करते हुए सरकार की यह टिप्पणी विलोपित करने और 90 दिन में सभी बकाया का भुगतान करने के निर्देश दिए।

पूरा मामला यह है कि बिना किसी शिकायत या कदाचार के केवल एक अस्पष्ट एवं संदिग्ध ऑडियो के आधार पर IAS संवर्ग के एक सुपर टाइम स्केल के अधिकारी के विरुद्ध निलम्बन जैसी कार्यवाही की गई। जबकि, कुछ प्रशासनिक अधिकारियों के आर्थिक दुराचार एवं चारित्रिक पतन के ऑडियो एवं वीडियो भी मीडिया में समय में प्रसारित होते रहे थे। सप्रमाण शिकायतों के बाद भी इन प्रकरणों को अनदेखा किया गया। दरअसल सरकार में बैठे जिम्मेदार वरिष्ठ IAS अधिकारी की व्यक्तिगत खुन्नस का नतीजा मालपानी को भुगतना पड़ा।

जेएन मालपानी भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1994 बैच के अधिकारी है। वे वर्ष 1995 में आयुक्त आदिवासी विकास के पद पर कार्यरत थे। नवंबर 1995 में कतिपय शरारती तत्वों ने मालपानी का एक ऑडियो वायरल करते हुए उल्लेख किया कि बातचीत में रिश्वत मांगने की भावना परिलक्षित हो रही है।

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राज्य शासन ने इसी अपुष्ट एवं संदिग्ध ऑडियो के आधार पर मालपानी को 28 दिसम्बर 2015 को निलंबित कर दिया। 23 जनवरी 2016 को विभागीय जांच आदेशित कर आरोप पत्र जारी किया गया। विभागीय जांच के दौरान ही मालपानी सेवानिवृत्त हो गए। जांच अधिकारी ने अपनी विभागीय जांच रिपोर्ट 23 फरवरी 2017 को प्रस्तुत की, जिसमें कोई आरोप प्रमाणित नहीं पाया गया। इस रिपोर्ट के आधार पर राज्य शासन ने 14 जून 2017 को बिना किसी दंड के विभागीय जांच समाप्त करने का निर्णय ले लिया। साथ ही अवैधानिक रूप से आदेश में यह शर्त भी जोड़ दी, कि जेएन मालपानी का नाम भविष्य में किसी भी कार्य या नियुक्ति के लिए विचार में न लिया जाए।

इस अवैधानिक शर्त आरोपण के विरुद्ध मालपानी ने 3 जुलाई 2017 को एक अभ्यावेदन प्रस्तुत किया, जिस पर राज्य शासन ने कोई निर्णय नहीं लिया।

विभागीय जांच में कोई आरोप प्रमाणित नहीं पाए जाने के बाद भी राज्य शासन ने 7 दिसम्बर 2017 को एक आदेश पारित करते हुए निलम्बन अवधि 28 दिसम्बर 2015 से 31 अगस्त 2016 तक का वेतन न देने का निर्णय लिया। इस पर मालपानी ने राज्य शासन के ध्यान में य़ह तथ्य लाया गया कि जांच में जब कोई आरोप प्रमाणित ही नहीं हुआ, तब इस प्रकार की कार्यवाही सर्वथा अनुचित है। इसके बाद राज्य शासन ने अपनी गलती मानते हुए पुनः 4 जून 2018 को यह आदेश पारित किया कि निलम्बन अवधि को कार्य अवधि माना जाए एवं बकाया वेतन भत्तों का भुगतान किया जाए।

इन्हीं समस्त अनियमित कार्यवाहियों को समाप्त करने के संबंध में राज्य शासन द्वारा कोई संज्ञान न लिए जाने पर मालपानी ने एक याचिका अप्रैल 2018 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (केट) जबलपुर के समक्ष प्रस्तुत की थी। तीन-चार साल तक राज्य शासन ने कोई न्यायालय के समक्ष कोई जवाब प्रस्तुत नहीं किया। राज्य शासन पर न्यायालय ने शास्ति भी आरोपित की। लगभग 6 साल से प्रचलित इस मामले में न्यायालय ने 20 जून 2024 को आदेश पारित करते हुए यह निर्णय दिया कि इस मामले में न तो कोई शिकायत थी और न कोई शिकायतकर्ता। विभागीय जांच में भी कोई आरोप प्रमाणित नहीं पाया गया। राज्य शासन द्वारा बिना किसी पुष्ट आधारों के यंत्रवत कार्यवाही अवैधानिक रूप से की गई। न्यायालय द्वारा य़ह भी उल्लेख किया गया है कि लघु एवं दीर्घ शास्ति के नियमों में भी यह प्रावधान कहीं भी नहीं है कि याचिकाकर्ता को भविष्य में किसी भी पद पर नियुक्ति के लिए प्रतिबंधित किया जा सके। इन्हीं समस्त आधारों पर न्यायालय द्वारा राज्य शासन के आदेश 7 दिसम्बर 2017 में आरोपित इस शर्त को अवैधानिक मानकर निरस्त कर दिया गया है। यह भी निर्देश दिए गए कि यदि जेएन मालपानी को देय किसी भी मद की राशि का भुगतान यदि नहीं किया गया, तो आदेश पारित होने के दिनांक से 90 दिन की अवधि में भुगतान किया जाना सुनिश्चित किया जाए।