
पति को लट्टू न समझे पत्नी: वैवाहिक विवाद पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी. वी. नागरत्ना की टिप्पणी
विक्रम सेन की रिपोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि; “पत्नी को अपने पति को ‘लट्टू’ समझने का रवैया नहीं अपनाना चाहिए।”
यह टिप्पणी जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की द्विसदस्यीय पीठ ने तब की जब अदालत एक विवाहित दंपति के बीच चल रहे विवाद की सुनवाई कर रही थी। अदालत ने यह मामला फिलहाल मध्यस्थता (Mediation) के लिए भेज दिया है ताकि दंपति आपसी सहमति से समाधान खोज सकें।
मामले की पृष्ठभूमि
मामला उस समय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया जब पत्नी ने अपने विवाह संबंधी मुकदमे को स्थानांतरित (Transfer Petition) करने के लिए याचिका दायर की।
जानकारी के अनुसार, पति-पत्नी दोनों सरकारी कर्मचारी हैं। उनकी शादी वर्ष 2018 में हुई थी, और उनके दो बच्चे — पाँच वर्ष की बेटी और तीन वर्ष का बेटा — हैं।
दोनों साल 2023 से अलग रह रहे हैं, जहाँ पति दिल्ली में जबकि पत्नी बच्चों के साथ पटना में अपने मायके में रह रही है।
पति की दलीलें
पति ने अदालत में कहा कि; “प्रत्येक बार बच्चों से मिलने के लिए पटना जाकर रहना संभव नहीं है।”
उसने अदालत को यह प्रस्ताव दिया कि वह पटना में एक अलग मकान किराए पर लेकर सप्ताहांत (Weekend) में बच्चों से मिलने को तैयार है।
पत्नी का इंकार और अदालत की प्रतिक्रिया
अदालत ने इस प्रस्ताव को उचित और व्यावहारिक बताते हुए पत्नी से इसे स्वीकार करने का कहा, परंतु पत्नी ने इंकार कर दिया।
पत्नी ने ससुराल पक्ष से मतभेदों के कारण पति के दिल्ली स्थित घर जाने में भी असहमति व्यक्त की।
इस पर अदालत ने सुझाव दिया कि; “पति त्योहारों के दौरान बच्चों से मिलने के लिए एक सप्ताह तक पटना में रह सकता है, या अपने माता-पिता को किसी गेस्टहाउस या होटल में ठहराकर पत्नी को बच्चों सहित दिल्ली लाने की व्यवस्था कर सकता है।”
स्थिति पर खेद व्यक्त करते हुए जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने कहा; “देखिए माता-पिता की स्थिति क्या हो गई है, अब उन्हें घर से बाहर जाना पड़ेगा क्योंकि बहू उनके साथ नहीं रह सकती।
एक कहावत है — पत्नी को पति को ‘लट्टू’ नहीं समझना चाहिए।”
जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि अहंकार और अनम्यता (ego & rigidity) वैवाहिक संबंधों को नष्ट कर देती है।
अदालत ने दंपति को बच्चे के भविष्य और मानसिक भलाई (welfare and mental health) को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की सलाह दी।
न्यायिक दृष्टिकोण
हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट में वैवाहिक विवादों से जुड़े मामलों में तेजी आई है।
अदालत लगातार यह प्रयास कर रही है कि पति-पत्नी अपने व्यक्तिगत मतभेदों को संवाद, सहयोग और मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाएँ, ताकि परिवार और बच्चों पर उसके नकारात्मक प्रभाव न पड़ें।
अदालत ने अंततः इस मामले को मध्यस्थता केंद्र भेजते हुए कहा कि; “विवाह सिर्फ कानूनी अनुबंध नहीं, बल्कि पारस्परिक सम्मान और संवेदना पर आधारित संबंध है।
दंपति को चाहिए कि वे अपने अहं को एक ओर रखकर बच्चों के हित में समाधान की दिशा में आगे बढ़ें।”





