AAP, Central Ordinance and politics: केंद्रीय अध्यादेश के खिलाफ आप का राजनीतिक गठजोड़

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AAP, Central Ordinance and politics: केंद्रीय अध्यादेश के खिलाफ आप का राजनीतिक गठजोड़

 

अजय कुमार चतुर्वेदी की रिपोर्ट

तबादले और पोस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केन्द्र सरकार के अध्यादेश ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप की बैचेनी बढा दी है। इसके खिलाफ राजनीतिक समर्थन जुटाने के लिए केजरीवाल पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री के साथ विरोधी दलों की सरकार वाले नेताओं से जा जा कर मिल रहे हैं। वे चाहते हैं कि राज्य सभा में इस अध्यादेश को न पास होने दिया जाए। उच्चतम न्यायालय ने एक पखवाड़े पहले दिल्ली की सरकार को अधिकारियों के तबादले और पोस्टिंग के आदेश दे दिए थे और मुख्यमंत्री ने ताबड़तोड़ कार्रवाई भी शुरू कर दी। इससे अधिकारी वर्ग न सिर्फ़ नाराज हुआ बल्कि भयभीत होने लगा। कई अधिकारियों ने डेपुटेशन के लिए आवेदन भी दे दिया। गृह मंत्रालय ने एक सप्ताह बाद ही अध्यादेश जारी करके स्थिति बदल। एक प्राधिकरण का गठन किया और तबादला पोस्टिंग के मामले उसके हवाले कर दिए और प्राधिकरण की सिफारिश पर उप राज्यपाल आदेश जारी करेंगे। इसमें अब मुख्यमंत्री का सीधा दखल बंद हो गया।

*दिल्ली और केंद्र सरकार की लडाई पुरानी है।*

इन दोनों सरकारों के बीच तनातनी पिछले कई सालों से है। हालांकि केजरीवाल पिछले आठ साल से दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं लेकिन वे अभी तक इस सच्चाई को नहीं स्वीकार कर पा रहे कि वे पूर्ण राज्य के नहीं संघ शासित राज्य के मुख्यमंत्री हैं। हर बार वे एक चुनी हुई सरकार का हल्ला मचा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि केजरीवाल के पहले दिल्ली में चार मुख्यमंत्री रहे लेकिन किसी के भी कार्यकाल में तबादले, पोस्टिंग तथा अन्य मुद्दों को लेकर ऐसी फजीहत और तनाव कभी नही हुआ। वे इसे केजरीवाल की अतिमहत्वाकांक्षा को ही झगडे की जड़ मानते हैं।

*जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाया, उन्ही के साथ खडे हो गये*

राजनीतिक हल्कों में इस बात को लेकर काफी चर्चा है कि जिन दलों को वे भ्रष्टाचार का दोषी बता कर जनता के बीच गये और चुनाव जीता, उन्ही से घूम घूम कर सहयोग मांग रहे हैं। हालांकि राजनीति में दोस्त और दुश्मनी का कोई स्थान नहीं होता, लेकिन केजरीवाल के लिए कई चुनौतियां हैं और इसीलिए कांग्रेस ने उनके साथ जाने का अभी तक फैसला नहीं लिया है।

केजरीवाल का यह भी मानना है कि राजनीतिक दबाव बना कर केंद्र सरकार पर अध्यादेश लेने को मजबूर किया जाय। इस बीच आप सरकार ने फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाया है। केंद्र सरकार ने भी अध्यादेश के समर्थन में कयी तर्क दिए हैं। अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट के अगले कदम पर है। लेकिन यह लगभग तय है यह अध्यादेश राज्य सभा में अटकने वाला नहीं है।